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________________ युग्म अध्ययन १५७९ प. ३१.ते णं भंते ! जीवा अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति, कहिं उववज्जंति, किं नेरइएसु उववज्जति जाव देवेसु उववजंति? उ. गोयमा ! नो नेरइएसु गच्छंति,उववज्जति, तिरिक्खजोणिएसु गच्छंति, उववजंति, मणुस्सेसु गच्छंति, उववज्जति, नो देवेसु गच्छंति, उववज्जति। प. ३२. अह भंते ! सव्वपाणा जाव सव्वसत्ता कडजुम्मकडजुम्म एगिदियत्ताए उव्वन्नपुव्वा? उ. हंता, गोयमा ! असई अदुवा अणंतखुत्तो। प. १. कडजुम्मतेओयएगिंदिया णं भंते ! कओहितो उववज्जति? उ. गोयमा ! उववाओ तहेव। प. २.ते णं भंते !जीवा एगसमएणं केवइया उववज्जति? उ. गोयमा ! एक्कूणवीसा वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा उववज्जति। सेसंजहा कडजुम्मकडजुम्माणं जाव अणंतखुत्तो। प्र. ३१. भंते ! वे जीव उद्वर्तना करके कहां जाते हैं और कहां उत्पन्न होते हैं? क्या वे नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं यावत् देवों में उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! वे नैरयिकों में जाते भी नहीं और उत्पन्न भी नहीं होते हैं। वे तिर्यञ्चयोनिकों में जाते भी हैं और उत्पन्न भी होते हैं। वे मनुष्यों में जाते भी हैं और उत्पन्न भी होते हैं। वे देवों में जाते भी नहीं और उत्पन्न भी नहीं होते हैं। प्र. ३२. भंते ! समस्त प्राण यावत् सर्व सत्व क्या कृतयुग्म कृतयुग्म-एकेन्द्रियरूप से पहले उत्पन्न हुए हैं ? उ. हां, गौतम ! वे अनेक बार या अनन्त बार उत्पन्न हो चुके हैं। प्र. १. भंते ! कृतयुग्म-त्र्योजराशि वाले एकेन्द्रिय जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! उनका उपपात पूर्ववत् कहना चाहिए। प्र. २. भंते ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! वे एक समय में उन्नीस, संख्यात, असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं। शेष पूर्ववत् कृतयुग्म-कृतयुग्मराशि वाले एकेन्द्रियों के समान अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. ३. भंते ! कृतयुग्म-द्वापरयुग्मराशि वाले एकेन्द्रिय जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! इनका उपपात पूर्ववत् जानना चाहिए। प्र. भंते ! वे एकेन्द्रिय जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! वे एक समय में अठारह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं। शेष सब पूर्ववत् अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं पर्यन्त कहना प. ३. कडजुम्मदावरजुम्मएगिंदिया णं भंते ! कओहितो उववज्जति?, उ. गोयमा ! उववाओ तहेव। । । प. तेणं भंते !जीवा एगसमएणं केवइया उववज्जति? उ. गोयमा ! अट्ठारस वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा उववज्जति। सेसं तहेव जाव अणंतखुत्तो। चाहिए। प. ४. कडजुम्मकलिओयएगिंदिया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जंति? उ. गोयमा ! उववाओ तहेव। परिमाणं सत्तरस वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा। सेसंतहेव जाव अणंतखुत्तो। प्र. ४. भंते ! कृतयुग्म-कल्योजराशि वाले एकेन्द्रिय जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! इनका उपपात पूर्ववत् जानना चाहिए। इनका परिमाण-सत्रह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त है। प. ५. तेओयकडजुम्मएगिंदिया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा ! उववाओ तहेव। परिमाणं बारस वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा। सेसं तहेव जाव अणंतखुत्तो। शेष सब पूर्ववत् अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. ५. भंते ! योज-कृतयुग्मराशि वाले एकेन्द्रिय जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! इनका उपपात भी पूर्ववत् जानना चाहिए। परिमाण-बारह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त हैं। प. ६. तेओगतेयोयएगिदिया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जंति? उ. गोयमा ! उववाओ तहेव। शेष सब पूर्ववत् अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. ६. भंते ! योज-त्र्योजराशि वाले एकेन्द्रिय जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! इनका उपपात भी पूर्ववत् जानना चाहिए।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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