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________________ युग्म अध्ययन प. २.ते णं भंते ! जीवा एगसमए णं केवइया उववज्जंति ? उ. गोयमा ! सोलस वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा उववज्जति। प. ३. ते णं भंते ! जीवा समए-समए अवहीरमाणा अवहीरमाणा केवइ कालेणं अवहीरंति? उ. गोयमा ! ते णं अणंता समए-समए अवहीरमाणा अवहीरमाणा अणंताहिं ओसप्पिणिउस्सप्पिणीहिं अवहीरंति,नो चेवणं अवहिया सिया। प. ४. तेसि णं भंते ! जीवाणं के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं साइरेगं जोयणसहस्सं। प. ५. ते णं भंते ! जीवा नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधगा,अबंधगा? उ. गोयमा ! बंधगा, नो अबंधगा। एवं सव्वेसिं आउयवज्जाणं, आउयस्स बंधगा वा, अबंधगा वा। प. ६. ते णं भंते ! जीवा नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं वेदगा वा,अवेदगा वा? उ. गोयमा ! वेदगा, नो अवेदगा। एवं सव्वेसिं। प. ते णं भंते !जीवा किं सायावेयगा असायावेयगा? उ. गोयमा ! सायावेयगा वा,असायावेयगा वा। प. ७. ते णं भंते ! जीवा नाणावरणिज्जाइ कम्माणं किं उदई अणुदई? उ. गोयमा ! सव्वेसिं कम्माणं उदई,नो अणुदई। - १५७७ ) प्र. २. भंते ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! वे (एक समय में) सोलह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं। प्र. ३.भंते ! वे अनन्त जीव समय-समय में एक-एक अपहृत किये जाए तो कितने काल में अपहृत (रिक्त) होते हैं ? उ. गौतम ! यदि वे अनन्त जीव समय-समय में अपहृत किये जाएँ और ऐसा करते हुए अनन्त अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी बीत जाएँ तो भी वे अपहृत (रिक्त) नहीं होते हैं। प्र. ४. भंते ! उन जीवों के शरीर की अवगाहना कितनी ऊँची कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट कुछ अधिक एक हजार योजन की अवगाहना कही गई है। प्र. ५. भंते ! वे एकेन्द्रिय जीव ज्ञानावरणीयकर्म के बंधक है या अबन्धक हैं? उ. गौतम ! वे जीव बन्धक हैं, अबन्धक नहीं हैं। आयु कर्म को छोड़कर वे जीव शेष सभी कर्मों के बन्धक है किन्तु आयुकर्म के वे बन्धक भी हैं और अबन्धक भी हैं। प्र. ६. भंते ! वे जीव ज्ञानावरणीयकर्म के वेदक है या अवेदक हैं? उ. गौतम ! वे वेदक हैं, अवेदक नहीं हैं। इसी प्रकार सभी कर्मों के वेदन के विषय में जानना चाहिए। प्र. भंते ! वे जीव साता के वेदक हैं या असाता के वेदक है? उ. गौतम ! वे सातावेदक भी हैं और असातावेदक भी हैं। प्र. ७. भंते ! वे जीव ज्ञानावरणीय आदि कर्मों के उदय वाले हैं या अनुदय वाले हैं ? . उ. गौतम ! वे जीव सभी कर्मों के उदय वाले हैं, अनुदय वाले नहीं हैं। प्र. ८. भंते ! वे जीव ज्ञानावरणीय आदि सभी कर्मों के उदीरक हैं या अनुदीरक हैं ? उ. गौतम ! वे छह कर्मों के उदीरक हैं, अनुदीरक नहीं हैं। विशेष-वेदनीय और आयुकर्म के उदीरक भी हैं और अनुदीरक भी हैं। प्र. ९. भंते ! वे एकेन्द्रिय जीव क्या कृष्णलेश्या वाले यावत् तेजोलेश्या वाले हैं ? उ. गौतम ! वे जीव कृष्णलेश्यी भी हैं, नीललेश्यी भी हैं, कापोतलेश्यी भी हैं और तेजोलेश्यी भी हैं। १०. वे सम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि नहीं होते किन्तु मिथ्यादृष्टि होते हैं। ११. वे ज्ञानी नहीं होते किन्तु अज्ञानी होते हैं। वे नियमतः दो अज्ञान वाले होते हैं, यथा१. मतिअज्ञान, २. श्रुतअज्ञान। १२. वे मनोयोगी और वचनयोगी नहीं होते किन्तु काययोगी होते हैं। प. ८. ते णं भंते ! जीवा नाणावरणिज्जाइ कम्माणं किं उदीरगा अणुदीरगा? उ. गोयमा ! छण्हं कम्माणं उदीरगा, नो अणुदीरगा। __णवरं-वेयणिज्जाउयाणं उदीरगा वा, अणुदीरगा वा। प. ९. ते णं भंते ! जीवा किं कण्हलेस्सा वा जाव तेउलेस्सा वा? उ. गोयमा ! कण्हलेस्सा वा, नीललेस्सा वा, काउलेस्सा वा, तेउलेस्सा वा। १०.नो सम्मदिट्ठी, मिच्छद्दिट्ठी, नो सम्ममिच्छद्दिट्ठी। ११. नो नाणी, अन्नाणी, नियमं दुअन्नाणी, तं जहा १. मइअन्नाणी य, २. सुयअन्नाणी य। १२. नो मणजोगी, नो वइजोगी, कायजोगी।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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