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________________ १५७६ द्रव्यानुयोग-(३) ११. जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे ११.चार की संख्या से अपहार करते हुए जिस राशि में से दो दुपज्जवसिए, जे णं तस्स रासिस्स अवहारसमया शेष रहें किन्तु उस राशि के अपहार समय द्वापर-युग्म (दो) दावरजुम्मा,से तं दावरजुम्म दावरजुम्मे। हों तो वह राशि 'द्वापरयुग्म-द्वापरयुग्म' कहलाती है। १२. जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे १२.चार की संख्या से अपहार करते हुए जिस राशि में से एक एगपज्जवसिए, जे णं तस्स रासिस्स अवहारसमया शेष रहे किन्तु उस राशि के अपहार-समय द्वापरयुग्म (दो) हों दावरजुम्मा, से तं दावरजुम्म-कलिओए। तो वह राशि 'द्वापरयुग्म कल्योज' कहलाती है। १३. जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे १३.चार की संख्या से अपहार करते हुए जिस राशि में से चउपज्जवसिए, जे णं तस्स रासिस्स अवहारसमया चार शेष रहें, किन्तु उस राशि के अपहार-समय कल्योज कलिओया,सेतं कलिओय-कडजुम्मे। (एक) हो तो वह राशि 'कल्योज कृतयुग्म' कहलाती है। १४. जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे १४.चार की संख्या से अपहार करते हुए जिस राशि में से तिपज्जवसिए, जे णं तस्स रासिस्स अवहारसमया तीन शेष रहें किन्त उस राशि के अपहार-समय कल्योज कलिओया, से तं कलिओयतेयोए। (एक) हो तो वह राशि 'कल्योज योज' कहलाती है। १५. जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे १५.चार की संख्या से अपहार करते हुए जिस राशि में से दो दुपज्जवसिए, जे णं तस्स रासिस्स अवहारसमया शेष रहें किन्तु उस राशि के अपहार समय कल्योज (एक) हो कलिओया,सेतं कलिओयदावरजुम्मे। तो वह राशि 'कल्योज द्वापरयुग्म' कहलाती है। १६. जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे १६.चार की संख्या से अपहार करते हुए जिस राशि में से एक एगपज्जवसिए, जे णं तस्स रासिस्स अवहार समया शेष रहे किन्तु उस राशि का अपहार-समय कल्योज (एक) हो कलिओया, से तं कलिओयकलियोए। तो वह राशि 'कल्योज-कल्योज' कहलाती है। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"सोलस महाजुम्मा पण्णत्ता,तं जहा "सोलह महायुग्म कहे गये हैं, यथा१. कडजुम्मकडजुम्मे जाव १. कृतयुग्मकृतयुग्म यावत् १६. कलिओयकलिओए।" १६. कल्योजकल्योज।" -विया. स. ३५, १/ए, उ. १ सु. १ (१-२) २२. सोलससु एगिदियमहाजुम्मेसु उववायाइ बत्तीसं दाराणंरे २२. सोलह एकेन्द्रिय महायुग्मों में उत्पातादि बत्तीस द्वारों का परूवणं प्ररूपणप. १. कडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते ! कओहिंतो प्र. १. भंते ! कृतयुग्म-कृतयुग्म वाले एकेन्द्रिय जीव कहाँ से उववज्जति? आकर उत्पन्न होते हैं? किनेरइहिंतो उववज्जति जाव देवेहिंतो उववज्जंति? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गोयमा ! नो नेरइहिंतो उववज्जति, उ. गौतम ! वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति, तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, मणुस्सेहिंतो उववज्जंति, मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, देवेहितो वि उववज्जंति। देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। १. इन सोलह महायुग्मों की जघन्य संख्या इस प्रकार है :१. सोलह आदि, २. उन्नीस आदि, ३. अठारह आदि, ४. सत्रह आदि, ५. बारह आदि, ६. पन्द्रह आदि, ७. चौदह आदि, ८. तेरह आदि, ९. आठ आदि, १०. ग्यारह आदि, ११. दस आदि, १२. नौ आदि, १३. चार आदि, १४. सात आदि, १५. छह आदि, १६. पांच आदि। २. उपपातादि बत्तीस द्वार :१. उपपात, २. परिमाण, ३. अपहार, ४. अवगाहना (ऊँचाई), ५. बन्धक, ६. वेद, ७. उदय, ८. उदीरणा, ९. लेश्या, १०. दृष्टि, ११. ज्ञान, १२. योग, १३. उपयोग, १४. वर्ण-रसादि, १५. उच्छ्वास, १६. आहार, १७. विरति, १८. क्रिया, १९. बन्धक, २०. संज्ञा, २१. कषाय, २२. स्त्रीवेदादि, २३. बन्ध, २४. संज्ञी, २५. इन्द्रिय, २६. अनुबन्ध, २७. संवेध, २८. आहार, २९. स्थिति, ३०. समुद्घात, ३१. च्यवन, ३२. सभी जीवों का मूलादि में उपपात। -व्या.स.११,उ.१.सु.१
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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