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________________ युग्म अध्ययन - १५७१ ) किं नेरइएहिंतो उववज्जति जाव देवेहिंतो उववज्जति? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गोयमा ! एवं चेव जहा ओहियगमो जाव नो परप्पयोगेणं उ. गौतम ! पूर्वोक्त औधिकगमक के अनुसार परप्रयोग से उत्पन्न उववज्जति, नहीं होते हैं पर्यन्त यहाँ भी कहना चाहिए। णवरं-उववाओ जहा वकंतीए धूमप्पभापुढविनेरइया णं,' विशेष-धूमप्रभापृथ्वी के नैरयिकों का उपपात व्युतक्रान्तिपद के अनुसार यहाँ कहना चाहिए। सेसंतं चेव। शेष सब कथन पूर्ववत् जानना चाहिए। प. धूमप्पभापुढवि कण्हलेस्स खुड्डागकडजुम्मनेरइया णं प्र. भंते ! धूमप्रभापृथ्वी के क्षुद्रकृतयुग्मराशि वाले कृष्णलेश्यी भंते ! कओहिंतो उववज्जति? नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गोयमा ! एवं चेव निरवसेसं। उ. गौतम ! इनके लिए समग्र वर्णन पूर्ववत् कहना चाहिए। एवं तमाए वि,अहेसत्तमाए वि, इसी प्रकार तमःप्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी पर्यन्त कहना चाहिए। णवरं-उववाओ सव्वत्थ जहा वक्तीए। विशेष-उपपात सर्वत्र व्युत्क्रान्तिपद के अनुसार जानना चाहिए। प. कण्हलेस्सखुड्डागतेयोगनेरइया णं भंते ! कओहिंतो प्र. भंते ! क्षुद्रत्र्योजराशि वाले कृष्णलेश्यी नैरयिक कहाँ से आकर उववज्जति, उत्पन्न होते हैं? किं नेरइएहिंतो उववज्जति जावदेवेहिंतो उववज्जंति? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गोयमा !जहा ओहियगमो एवं चेव। उ. गौतम ! औधिकगमक के अनुसार सब कहना चाहिए। णवर-तिण्णि वा, सत्त वा, एक्कारस वा, पण्णरस वा, विशेष-परिमाण में तीन, सात, ग्यारह, पन्द्रह, संख्यात या संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा उववति। सेसंतंचेव। असंख्यात उत्पन्न होते हैं ऐसा कहना चाहिए। शेष पूर्ववत् है। एवंजाव अहेसत्तमाए वि। इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी पर्यन्त जानना चाहिए। प. कण्हलेस्सखुड्डागदावरजुम्मनेरइया णं भंते ! कओहिंतो प्र. भंते ! कृष्णलेश्यी क्षुद्रद्वापरयुग्मराशिवाले नैरयिक कहाँ से उववज्जंति, आकर उत्पन्न होते हैं ? किं नेरइएहिंतो उववज्जति जाव देवेहिंतो उववज्जति? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गोयमा ! एवं चेव जहा ओहियगमो। उ. गौतम ! औधिकगमक के अनुसार यहां भी जानना चाहिए। णवरं-दो वा, छ वा, दस वा, चोद्दस वा, संखेज्जा वा, विशेष-परिमाण में-दो, छह, दस या चौदह, संख्यात या असंखेज्जा वा उववज्जति। सेसं तं चेव। असंख्यात उत्पन्न होते हैं ऐसा कहना चाहिए। शेष पूर्ववत् है। एवं धूमप्पभाए विजाव अहेसत्तमाए। इसी प्रकार धूमप्रभा से अधःसप्तमपृथ्वी पर्यन्त जानना चाहिए। प. कण्हलेस्सखुड्डागकलिओएनेरइया णं भंते ! कओहितो प्र. भंते ! क्षुद्रकल्योजराशि वाले कृष्णलेश्यी नैरयिक कहाँ से उववज्जति, आकर उत्पन्न होते हैं? किं नेरइएहिंतो उववजंति जाव देवेहिंतो उववति? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गोयमा ! एवं चेव जहा ओहेयगमो। उ. गौतम ! औधिकगमक के अनुसार यहाँ भी जानना चाहिए। णवर-एक्को वा, पंच वा, नव वा, तेरस वा, संखेज्जा वा, विशेष-परिमाण में-एक, पाँच, नौ, तेरह, संख्यात या असंखेज्जा वा उववज्जति।सेसं तं चेव। असंख्यात उत्पन्न होते हैं ऐसा कहना चाहिए। शेष पूर्ववत् है। एवं धूमप्पभाए वि, तमाए वि, अहेसत्तमाए वि। इसी प्रकार धूमप्रभा, तम प्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी के -विया. स.३१, उ.२, सु.१-९ नैरयिक के लिए कहना चाहिए। १५. खुड्डाग कडजुम्माइं पडुच्च नीललेस्स नेरइयाणं उववायाइ १५. क्षुद्रकृतयुग्मादि की अपेक्षा नीललेश्यी नैरयिकों के उत्पातादि परूवणं का प्ररूपणप. नीललेस्स खुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते ! कओहिंतो प्र. भंते ! क्षुद्रकृतयुग्म राशि वाले नीललेश्यी नैरयिक कहाँ से उववज्जंति, आकर उत्पन्न होते हैं?
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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