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________________ १५७० द्रव्यानुयोग-(३) प. ते णं भंते ! जीवा किं आयप्पयोगेणं उववजंति, प्र. भंते ! वे जीव अपने प्रयोग से उत्पन्न होते हैं या परप्रयोग से परप्पयोगेणं उववज्जति? उत्पन्न होते हैं? उ. गोयमा ! आयप्पयोगेणं उववज्जति, नो परप्पयोगेणं उ. गौतम ! वे अपने प्रयोग (आत्म व्यापार) से उत्पन्न होते हैं, उववज्जति। परप्रयोग से उत्पन्न नहीं होते हैं। प. रयणप्पभापुढवि-खुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते ! प्र. भंते ! क्षुद्रकृतयुग्म-राशि वाले रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक कहाँ ___कओहिंतो उववज्जति? से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गोयमा ! एवं जहा ओहियनेरइयाणं वत्तव्वया सच्चेव उ. गौतम ! नैरयिकों के लिए जो औधिक कथन किया है वही रयणप्पभाए वि भाणियव्या जाव नो परप्पयोगेणं रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के लिए परप्रयोग से उत्पन्न उववज्जंति। नहीं होते हैं पर्यन्त कहना चाहिए। एवं जाव अहेसत्तमाए। इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी पर्यन्त जानना चाहिए। एवं उववाओ जहा वक्कंतीए। व्युत्क्रान्ति अध्ययन में कहे अनुसार उपपात कहना चाहिए। प. खुड्डागतेयोए नेरइया णं भंते ! कओहिंतो उदवज्जति? प्र. भंते ! क्षुद्रत्र्योज नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? किं नेरइएहिंतो उववज्जति जाव देवेहिंतो उववज्जति? - क्या (वे) नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गोयमा ! नो नेरइएहिंतो उववज्जति, उ. गौतम ! वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति, वे तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, मणुस्सेहिंतो उववज्जति, मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, नो देवेहिंतो उववज्जति, देवों से आकर भी उत्पन्न नहीं होते हैं। उववाओ जहा वकंतीए। इनके उपपात का विशेष वर्णन व्युत्क्रान्तिपद के अनुसार जानना चाहिए। प. ते णं भंते ! जीवा एगसमए णं केवइया उववज्जति ? प्र. भंते ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? उ. गोयमा ! तिन्नि वा, सत्त वा, एक्कारस वा, पन्नरस वा, उ. गौतम ! वे एक समय में तीन, सात, ग्यारह, पन्द्रह, संख्यात संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा उववज्जति। या असंख्यात उत्पन्न होते हैं। सेसंजहा कडजुम्मस्स। शेष सब कथन कृतयुग्म नैरयिक के समान जानना चाहिए। एवंजाव अहेसत्तमाए। इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी पर्यन्त जानना चाहिए। प. खुड्डागदावरजुम्मनेरइया णं भंते ! कओहितो प्र. भंते ! क्षुद्रद्वापरयुग्म-राशि वाले नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न उववज्जंति? होते हैं? उ. गोयमा ! एवं जहेव खुड्डागकडजुम्मे, उ. गौतम ! क्षुद्रकृतयुग्मराशि के अनुसार इनका उत्पाद जानना चाहिए। णवरं-परिमाणं , दो वा, छ वा, दस वा, चोद्दस वा, विशेष-परिमाण में-दो, छह, दस, चौदह, संख्यात या संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा उववज्जति। असंख्यात उत्पन्न होते हैं सेसंतं चेव जावर अहेसत्तमाए। शेष कथन पूर्ववत् अधःसप्तमपृथ्वी पर्यन्त जानना चाहिए। प. खुड्डागकलिओए नेरइया णं भंते ! कओहिंतो प्र. भंते ! क्षुद्रकल्योज-राशि वाले नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न उववज्जति? होते हैं? उ. गोयमा ! एवं जहेवखुड्डागकडजुम्मे, उ. गौतम ! क्षुद्रकृतयुग्मराशि के अनुसार इनकी उत्पत्ति जानना चाहिए। णवर-परिमाणं एक्को वा, पंच वा, नव वा, तेरस वा, विशेष-परिमाण में-एक, पाँच, नौ, तेरह, संख्यात या संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा उववज्जति। सेसंतंचेव। असंख्यात उत्पन्न होते हैं ऐसा कहना चाहिए शेष पूर्ववत् है। एवं जाव अहेसत्तमाए। -विया. स.३१, उ.१, सु. ३-१४ इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी पर्यन्त जानना चाहिए। १४. खुड्डाग कडजुम्माई पडुच्च कण्हलेस्स नेरइयाणं उववायाइ १४. क्षुद्रकृतयुग्मादि की अपेक्षा कृष्णलेश्यी नैरयिकों के उत्पातादि का प्ररूपणप. कण्हलेस्सखुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते ! कओहिंतो प्र. भंते ! क्षुद्रकृतयुग्मराशि वाले कृष्णलेश्यी नैरयिक कहाँ से उववज्जति? आकर उत्पन्न होते हैं, १-२. पण्ण.प.६,सु.६४०-६४७ परूवणं
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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