SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १५७२ - द्रव्यानुयोग-(३)] किं नेरइएहितो उववज्जति जाव देवेहितो उववजंति? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गोयमा ! एवं जहेव कण्हलेस्सखुड्डागकडजुम्मा, उ. गौतम ! कृष्णलेश्यी क्षुद्रकृतयुग्म नैरयिकों के समान इनका भी कथन करना चाहिए। णवर-उववाओ जहा वालुयप्पभाए। सेसं तं चेव। विशेष-इसका उपपात वालुकाप्रभा पृथ्वी के समान है। शेष पूर्ववत् है। प. वालुयप्पभापुढवि-नीललेस्स-खुड्डागकडजुम्मनेरइया णं प्र. भंते ! क्षुद्रकृतयुग्मराशि वाले नीललेश्यी वालुकाप्रभापृथ्वी के भंते !कओहिंतो उववज्जति, नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? किं नेरइएहिंतो उववज्जति जावदेवेहिंतो उववति? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गोयमा ! एवं चेव। उ. गौतम ! इनका उपपात पूर्ववत् जानना चाहिए। एवं पंकप्पभाए वि, एवं धूमप्पभाए वि। इसी प्रकार पंकप्रभा और धूमप्रभा के नैरयिकों के लिए भी कहना चाहिए। एवं चउसु विजुम्मेसु, इसी प्रकार चारों युग्मों के विषय में समझना चाहिए। णवर-परिमाणं जहा कण्हलेस्सउद्देसए। विशेष-जिस प्रकार कृष्णलेश्यी उद्देशक में परिमाण कहा है उसी प्रकार यहां भी समझना चाहिए। सेसंतंचेव। -विया.स.३१, उ.३, सु. १-४ शेष सब कथन पूर्ववत् है। १६. खुड्डागकडजुम्माई पडुच्च काउलेस्स नेरइयाणं उववायाइ १६. क्षुद्रकृतयुग्मादि की अपेक्षा कापोतलेश्यी नैरयिकों परूवणं के उत्पातादि का प्ररूपणप. काउलेस्स-खुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते ! कओहिंतो . प्र. भंते ! क्षुद्रकृतयुग्मराशि वाले कापोतलेश्यी नैरयिक कहाँ से उववज्जंति, आकर उत्पन्न होते हैं ? ___किं नेरइएहिंतो उववज्जति जाव देवेहितो उववज्जति? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गोयमा ! एवं जहेव कण्हलेस्सखुड्डागकडजुम्म तहेव उ. गौतम ! इनका उपपात भी कृष्णलेश्यी क्षुद्रकृतयुग्मराशि भाणियव्यं। वाले नैरयिकों के समान जानना चाहिए। णवर-उववाओ जे रयणप्पभाए। विशेष-इनका उपपात रलप्रभा पृथ्वी में होता है। सेसंतंचेव। शेष कथन पूर्ववत् है। रयणप्पभापुढवि-काउलेस्सखुड्डागकडजुम्मनेरइया णं प्र. भंते ! क्षुद्रकृतयुग्मराशि वाले कापोतलेश्यी रत्नप्रभापृथ्वी के भंते !कओहिंतो उववज्जति, नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? किं नेरइएहिंतो उववज्जति जाव देवेहिंतो उववज्जति? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गोयमा ! एवं चेव। उ. गौतम ! इनका कथन भी पूर्ववत् जानना चाहिए। एवं सक्करप्पभाए वि, एवं वालुयप्पभाए वि। इसी प्रकार शर्कराप्रभा और वालुकाप्रभा के नैरयिकों का कथन भी करना चाहिए। एवं चउसु वि जुम्मेसु, चारों युग्मों में इसी प्रकार कहना चाहिए। णवरं-परिमाणं जहा कण्हलेस्सुद्देसए। विशेष-कृष्णलेश्या उद्देशक के अनुसार परिमाण भिन्न-भिन्न जानना चाहिए। सेसंतंचेव। -विया. स. ३१, उ. ४, सु. १-४ शेष सब पूर्ववत् है। १७. खुड्डागकडजुम्माइ भवसिद्धिय अभवसिद्धिय नेरइयाणं १७. क्षुद्रकृतयुग्मादि भवसिद्धिक-अभवसिद्धिक नैरयिकों के उववायाइ परूवर्ण उत्पातादि का प्ररूपणप. भवसिद्धियखुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते ! कओहितो प्र. भंते ! क्षुद्रकृतयुग्मराशि वाले भवसिद्धिक नैरयिक कहाँ से उववज्जति, आकर उत्पन्न होते हैं? किं नेरइएहिंतो उववज्जति जाव देवेहिंतो उववति? . क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ?
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy