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________________ १५६३ युग्म अध्ययन ४०. जुम्मऽज्झयणं ४०. युग्म अध्ययन सूत्र सूत्र १. जुम्मस्स भेया तेसिं लक्खणाण य परूवणं प. कइ णं भंते ! जुम्मा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! चत्तारि जुम्मा पण्णत्ता,तं जहा १. कडजुम्मे, २. तेयोए, ३. दावरजुम्मे, ४. कलियोए। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ 'कडजुम्मे जाव कलियोए?' उ. गोयमा ! १. जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे चउपज्जवसिए।से तं कडजुम्मे। २. जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे तिपज्जवसिए। से तं तेयोए। ३. जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे दुपज्जवसिए। से तं दावरजुम्मे। ४. जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे एगपज्जवसिए। से तं कलियोए। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ "कडजुम्मे जाव कलियोए"। -विया. स. १८, उ.४, सु.४ २. चउवीसदंडएसु सिद्धेसु य जुम्म भेय परूवणं प. द.१.नेरइयाणं भंते ! कइ जुम्मा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! चत्तारि जुम्मा पण्णत्ता,तं जहा १. कडजुम्मे जाव ४. कलियोए। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ "नेरइयाणं चत्तारि जुम्मा पण्णत्ता,तं जहा १. कडजुम्मे जाव ४. कलियोए। उ. गोयमा ! अट्ठो तहेव। दं.२-१५ एवं जाव वाउकाइयाणं। प. दं.१६. वणस्सइकाइया णं भंते ! कइ जुम्मा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! वणस्सइकाइया सिय कडजुम्मा, सिय तेओया, सिय दावरजुम्मा, सिय कलिओया। १. युग्म के भेद और उनके लक्षणों का प्ररूपण प्र. भन्ते ! युग्म कितने कहे गए हैं? उ. गौतम ! युग्म चार कहे गए हैं, यथा १. कृतयुग्म, २. व्योज, ३. द्वापरयुग्म, ४. कल्योज। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि 'युग्म चार हैं- कृतयुग्म यावत् कल्योज।' गौतम ! १.जिस राशि में से चार-चार निकालने पर अन्त में चार शेष रहें, वह राशि “कृतयुग्म" है।' २. जिस राशि में से चार-चार निकालने पर अन्त में तीन शेष रहें, वह राशि "त्र्योज" है। ३. जिस राशि में से चार-चार निकालने पर अन्त में दो शेष रहें, वह राशि "द्वापरयुग्म" है। ४. जिस राशि में से चार-चार निकालने पर अन्त में एक शेष रहे, वह राशि "कल्योज" है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि "युग्म चार हैं-कृतयुग्म यावत् कल्योज"। २. चौबीस दण्डकों और सिद्धों में युग्म भेदों का प्ररूपण प्र. दं.१. भन्ते ! नैरयिकों में कितने युग्म कहे गए हैं? उ. गौतम ! उनमें चार युग्म कहे गए हैं, यथा १. कृतयुग्म यावत् ४. कल्योज। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि नैरयिकों में चार युग्म होते हैं, यथा १. कृतयुग्म यावत् ४. कल्योज।" उ. गौतम ! कारण पूर्ववत् जानना चाहिए। दं.२-१५ इसी प्रकार वायुकायिक पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. दं.१६. भन्ते ! वनस्पतिकायिकों में कितने युग्म कहे गए हैं ? उ. गौतम ! वनस्पतिकायिक कदाचित् कृतयुग्म होते हैं, कदाचित् योज होते हैं, कदाचित् द्वापरयुग्म होते हैं और कदाचित् कल्योज होते हैं। प्र. भन्ते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "वनस्पतिकायिक कदाचित् कृतयुग्म होते हैं यावत् कदाचित् कल्योज होते हैं ?" उ. गौतम ! उपपात (जन्म) की अपेक्षा ऐसा कहा जाता है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"वनस्पतिकायिक कदाचित् कृतयुग्म होते हैं यावत् कदाचित् कल्योज होते हैं। दं. १७. द्वीन्द्रिय जीवों का कथन नैरयिकों के समान है। प. सेकेणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ “वणस्सइकाइया सिय कडजुम्मा जाव कलिओया? गोयमा ! उववायं पडुच्च। से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"वणस्सइकाइया सिय कडजुम्मा जाव कलिओया?" द.१७. बेइंदिया जहा नेरइयाणं। १. विया. स.२५, उ, ४, सु.१
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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