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________________ १५६४ द्रव्यानुयोग-(३) दं. १८-२४ इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। सिद्धों का कथन वनस्पतिकायिकों के समान है। दं. १८-२४ एवं जाव वेमाणियाणं। सिद्धाणं जहा वणस्सइकाइयाणं। -विया. स. २५, उ, ४, सु.२-७ ३. जहण्णाइ पयं पडुच्च चउवीसदंडएसु सिद्धेसु य कडजुम्माइ परूवणंप. दं.१. नेरइया णं भन्ते ! किं १. कडजुम्मा, २. तेओया, ३.दावरजुम्मा, ४. कलिओया? उ. गोयमा !जहन्नपए कडजुम्मा, उक्कोसपए तेओया, अजहन्नमणुक्कोसपदे सिय कडजुम्मा जाव सिय कलिओया। दं.२-११ एवं असुरकुमारा जाव थणियकुमारा। करवा प. दं. १२. पुढविकाइया णं भन्ते ! किं कडजुम्मा जाव कलिओया? उ. गोयमा !जहन्नपए कडजुम्मा, उक्कोसपए दावरजुम्मा, अजहन्नमणुक्कोसपए सिय कडजुम्मा जाव सिय कलिओया। दं.१३-१५ एवं जाव वाउकाइया। प. दं.१६. वणस्सइकाइया णं भन्ते ! किं कडजुम्मा जाव कलिओया? उ. गोयमा !१.जहन्नपए अपदा,२.उक्कोसपए अपदा, ३. अजहन्नमणुक्कोसपए सिय कडजुम्मा जाव सिय कलिओया। दं.१७-१९ बेइंदिया जाव चउरिदिया जहा पुढविकाइया। ३. जघन्यादि पद की अपेक्षा चौबीस दण्डकों में और सिद्धों में कृतयुग्मादि का प्ररूपणप्र. दं. १. भन्ते ! नैरयिक क्या १. कृत युग्म हैं, २. योज हैं, ३. द्वापरयुग्म हैं या ४ कल्योज हैं? उ. गौतम ! वे जघन्यपद में कृतयुग्म हैं, उत्कृष्ट पद में ज्योज हैं, तथा अजघन्योत्कृष्ट पद में कदाचित् कृतयुग्म हैं यावत् कदाचित् कल्योज हैं। दं.२-११ इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमारों पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. दं. १२. भन्ते ! पृथ्वीकायिक जीव क्या कृतयुग्म हैं यावत् कल्योज हैं ? उ. गौतम ! वे जघन्यपद में कृतयुग्म हैं, उत्कृष्ट पद में द्वापरयुग्म हैं, किन्तु अजघन्योत्कृष्ट पद में कदाचित् कृतयुग्म हैं यावत् कदाचित् कल्योज हैं। दं. १३-१५ इसी प्रकार वायुकायिक पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. द.१६. भन्ते ! वनस्पतिकायिक जीव क्या कृतयुग्म हैं यावत् कल्योज हैं? उ. गौतम ! वे जघन्यपद में अपद हैं और उत्कृष्टपद में भी अपद हैं, किन्तु अजघन्योत्कृष्ट पद में कदाचित् कृतयुग्म हैं यावत् कदाचित् कल्योज हैं। दं. १७-१९ द्वीन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय पर्यन्त पृथ्वीकायिकों के समान हैं। दं. २०-२४ पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च-योनिकों से वैमानिकों पर्यन्त का कथन नैरयिकों के समान करना चाहिए। सिद्धों का कथन वनस्पतिकायिकों के समान जानना चाहिए। दं.२०-२४ पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जाव वेमाणिया जहा नेरइया। सिद्धा जहा वणस्सइकाइया। -विया. स. १८, उ.४, सु.५-१२ जहण्णाइपयं पडुच्च इत्थीसु कडजुम्माइ परूवणंप. इत्थीओ णं भन्ते ! किं कडजुम्माओ जाव कलिओयाओ? उ. गोयमा !जहन्नपदे कडजुम्माओ, उक्कोसपदे वि कडजुम्माओ, अजहन्नमणुक्कोसपदे सिय कडजुम्माओ जाव सिय कलिओयाओ। एवं असुरकुमारित्थीओ विजाव थणियकुमारित्थीओ। ४. जघन्यादि पद की अपेक्षा स्त्रियों में कृतयुग्मादि का प्ररूपण प्र. भन्ते ! क्या स्त्रियाँ कृतयुग्म हैं यावत् कल्योज हैं ? उ. गौतम ! वे जघन्यपद में कृतयुग्म हैं और उत्कृष्टपद में भी कृतयुग्म हैं, किन्तु अजघन्योत्कृष्ट पद में कदाचित् कृतयुग्म हैं यावत् कदाचित् कल्योज हैं। असुरकुमार स्त्रियों (देवियों) से स्तनितकुमार स्त्रियों पर्यन्त इसी प्रकार जानना चाहिए। तिर्यञ्चयोनिक स्त्रियों का कथन भी इसी प्रकार कहना चाहिए। मनुष्य-स्त्रियों के लिए भी इसी प्रकार कहना चाहिए। एवं हि रक्खजोणित्थीओ। एवं मणुस्सित्थीओ। १. ठाणं.अ. ४, उ. ३, सु.३१६
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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