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________________ गर्भ अध्ययन एवं खेत्ताइयंतियमरणे विजाव भावाइयंतियमरणे वि। .प. बालमरणे णं भंते ! कइविहे पण्णते? उ. गोयमा ! दुवालसविहे पण्णत्ते,तं जहा १. वलयमरणे, २. वसट्टमरणे, ३. अंतोसल्लमरणे, ४. तब्भवमरणे, ५. गिरिपडणे, ६. तरुपडणे, ७. जलप्पवेसे, ८. जलणप्पवेसे, ९. विसभक्खणे, १०. सत्थोवाडणे, ११.वेहाणसे, १२. गिद्धपढें। प. पंडिय मरणे णं भंते !कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १. पाओवगमणे य २. भत्तपच्चक्खाणे य। प. पाओवगमणे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १. णीहारिमे य, २. अणीहारिमे य नियम अप्पडिकम्मे। । १५६१ इसी प्रकार क्षेत्रात्यन्तिकमरण से भावात्यन्तिकमरण पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. भंते ! बालमरण कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह बारह प्रकार का कहा गया है, यथा १. वलय मरण, २. वसात मरण, ३. अन्तःशल्यमरण, ४. तद्भव मरण, ५. गिरिपतन, ६. तरुपतन, ७. जलप्रवेश, ८. जलण (अग्नि) प्रवेश, ९. विषभक्षण, १०. शस्त्रावपाटण, ११. वैहानस, १२. गृद्धपृष्ट मरण। प्र. भंते ! पंडितमरण कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. पादोपगमन, २. भक्त प्रत्याख्यान। प्र. भंते ! पादोपगमन कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. निर्हारिम (आहार रहित), २. अनिर्झरिम (आहार सहित) नियमतः अप्रतिकर्म सेवा शुश्रूषा रहित है। प्र. भंते ! भक्तप्रत्याख्यान कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! यह पूर्ववत् जानना चाहिए। विशेष-सप्रतिकर्म (सेवा शुश्रूषा सहित) है। २३. मरण समय जीव के पाँच निर्याण स्थान और तनिमित्तक गति का प्ररूपणजीव का निर्याण मार्ग (मृत्यु के समय शरीर से जीव प्रदेशों के निकलने का मार्ग) पाँच प्रकार का कहा गया है, यथा१. पैर, २. ऊरू-(जांघ), ३. हृदय, ४. सिर, ५. सर्वांग। १. पैरों से निर्याण करने वाला जीव नरकगामी होता है। २. ऊरू (जंघा) से निर्माण करने वाला जीव तिर्यगामी होता है। ३. हृदय से निर्याण करने वाला जीव मनुष्यगामी होता है। ४. सिर से निर्माण करने वाला जीव देवगामी होता है। ५. सर्वांग से निर्याण करने वाला जीव अंतिम स्थान सिद्धगति प्राप्त करता है। २४. अन्तिम शरीर वालों के मरण का प्रमाण अन्तिम शरीर वालों का मरण एक कहा गया है। प. भत्तपच्चक्खाणे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! एवं तं चेव। ___णवर-सप्पडिकम्मे,२ -विया. स. १३, उ.७, सु. २३-४४ २३. मरणकाले जीवस्स पंच निज्जाणठाणा तन्निमित्तगे गई परूवण यपंचविहे जीवस्स निज्जाणमग्गे पण्णत्ते,तं जहा १. पाएहिं, २. ऊरूहिं, ३. उरेणं, ४. सिरेणं, ५. सव्वंगेहिं। १. पाएहिं निज्जायमाणे निरयगामी भवइ, २. ऊरूहिं निज्जायमाणे तिरियगामी भवइ, ३. उरेणं निज्जायमाणे मणुयगामी भवइ, ४. सिरेणं निज्जायमाणे देवगामी भवइ, ५. सव्वंगेहिं निज्जायमाणे सिद्धिगइपज्जवसाणे पण्णत्ते। -ठाणं अ.५, उ.३,सु.४६१ २४. अंतिम सरीरियाणं मरण पमाणं एगे मरणे अंतिमसारीरियाणं। -ठाणं.अ.१,सु.२६ १. विया.स.२, उ.१.सु.२६ २. विया.स.२,उ.१, सु. २७-२९
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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