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________________ १५६० उ. गोयमा ! जंणं नेरइया नेरइयलेते वट्टमाणा जाई दव्याई नेरइयाउयत्ताएगहियाई, एवं जहेव दव्वावीचियमरणे तहेव खेत्तावीचियमरणे वि। एवं जाय भावावीचियमरणे। प. ओहिमरणे णं भंते! कडविहे पण्णत्ते ? उ. गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते तं जहा " २. खेत्तोहिमरणे, १. दव्वोहिमरणे, ३. कालोहिमरणे, ४. भवोहिमरणे, ५. भावोहिमरणे। प. दव्वोहिमरणे णं भंते! कहविहे पण्णत्ते ? उ. गोयमा ! चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा १. नेरइयदव्योहिमरणे जाव ४. देवदव्वोहि मरणे। प. से केणट्ठेणं मते ! एवं बुच्चइ "नेरइयदव्वोहिमरणे - नेरइयदव्वोहिमरणे ?" उ. गोयमा ! जंणं नेरइया नेरइयदव्ये वट्टमाणा जाई दव्वाई संपर्व मरंति तं णं नेरइया ताई दव्याई अणागए काले पुणोऽवि मरिस्सति । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"नेरइयदव्वोहिमरणे-नेरइयदव्वोहिमरणे ।” एवं तिरिक्खजोणिय मणुस्स देव-दव्वोहिमरणे वि एवं एएणं गमएणं खेतोहिमरणे वि, कालोहिमरणे वि. भवोहिमरणे वि, भावोहिमरणे वि। प. आइयतियमरणे णं भंते! कद्रविहे पण्णत्ते ? उ. गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा १. दव्वाइयंतियमरणे, २. खेत्ताइयंतियमरणे, ३. कालाइयंतियमरणे ४. भवाइयंतियमरणे, ५. भावाइयतियमरणे। , प. दव्वाइयंतियमरणे णं भंते ! कहविहे पण्णत्ते ? उ. गोयमा ! चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा १. नेरइयदव्वाइयंतियमरणे जाव २. देवदव्वाइयंतियमरणे । प से केणट्ठेण भंते! एवं बुच्चइ "नेरइय दव्याइयंतियमरणे, नेरइयदव्याइयंतियमरणे ?" उ. गोयमा ! जं णं नेरइया नेरइय दव्वे वट्टमाणा जाई दव्वाई संपर्व मरति, जे गं नेरइया ताई दव्वाई अणागए कानो पुणोऽवि मरिस्संति । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"नेरइयदव्वाइयंतियमरणे-नेरइयदव्वाइयंतियमरणे ।” एवं तिरिक्ख मणुस्स-देव- दव्बाइयतियमरणे । द्रव्यानुयोग - (३) उ. गौतम ! नैरयिक क्षेत्र में रहे हुए जिन द्रव्यों को नरकायुरूप में नैरयिक जीव ने स्पर्श रूप से ग्रहण किया है। इत्यादि जैसा कथन द्रव्यावीचिकमरण में किया है उसी प्रकार क्षेत्रावीचिक मरण में भी करना चाहिए। इसी प्रकार ( कालावीचिकमरण भावावीचिकमरण) भावावीचिकमरण पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. भंते! अवधिमरण कितने प्रकार का कहा गया है ? उ. गौतम ! वह पाँच प्रकार का कहा गया है, यथा २. क्षेत्रावधिमरण, ४. भवावधिमरण, १. द्रव्यावधिमरण, ३. कालावधिमरण, ५. भावावधिमरण । प्र. भंते! द्रव्यावधिमरण कितने प्रकार का कहा गया है ? उ. गौतम ! वह चार प्रकार का कहा गया है, यथा १. नैरयिक द्रव्याधिमरण यावत् ४. देव-द्रव्यावधिमरण। प्र. भंते! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि"नैरधिक द्रव्यावधिमरण-नैरयिक द्रव्यावधिमरण है।" " उ. गौतम नैरधिक द्रव्य के रूप में रहे हुए नैरयिक जीव जिन द्रव्यों को इस (वर्तमान) समय में भोग कर मरते हैं, वे ही जीव पुनः नैरयिक होकर उन्हीं द्रव्यों को ग्रहण कर भविष्य काल में भोगकर मरेंगे। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"नैरयिकद्रव्यावधिमरण - नैरयिक द्रव्यावधिमरण है।" इसी प्रकार तिर्यञ्चयोनिक मनुष्य और देव-द्रव्यावधिमरण भी कहना चाहिए। इसी प्रकार के आलापक द्वारा क्षेत्रावधिमरण, कालावधिमरण, भवावधिमरण और भावावधिमरण का भी कथन करना चाहिए। प्र. भंते! आत्यन्तिकमरण कितने प्रकार का कहा गया है ? उ. गौतम ! वह पाँच प्रकार का कहा गया है, यथा१. द्रव्यात्यन्तिकमरण, २. क्षेत्रात्यन्तिकमरण, ४. भवात्यन्तिकमरण, ३. कालात्यन्तिक मरण, ५. भावात्यन्तिकमरन । प्र. भंते! द्रव्यात्यन्तिकमरण कितने प्रकार का कहा गया है ? उ. गौतम ! वह चार प्रकार का कहा गया है, यथा १. नैरयिक द्रव्यात्यन्तिकमरण यावत् २. देव-द्रव्यात्यन्तिक मरण । प्र. भंते! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "नैरयिक द्रव्यात्यन्तिकमरण-नैरयिक- द्रव्यात्यन्तिकमरण है ?" उ. गौतम ! नैरयिक द्रव्य रूप में रहे हुए नैरयिक जीव जिन द्रव्यों को वर्तमान में भोग कर मरते हैं वे ही नैरयिक पुनः उन द्रव्यों को भविष्यकाल में भोगकर नहीं मरेंगे। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"नैरविक द्रव्यात्यन्तिकमरण - नैरविक द्रव्यात्यन्तिकमरण है।" इसी प्रकार तिर्यञ्चयोनिक मनुष्य और देवद्रव्यात्यन्तिकमरण के लिए भी कहना चाहिए।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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