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________________ गर्भ अध्ययन ७. तब्भवमरणे, ८. बालमरणे, ९. पंडितमरणे, १०. बालपंडितमरणे, ११. छउमत्थमरणे, १२. केवलिमरणे, १३. वेहाणसमरणे, १४. गिद्धपुट्ठमरणे, १५. भत्तपच्चक्खाणमरणे, १६. इंगिणिमरणे, १७. पाओवगमणमरणे। -सम. सम.१७,सु.१ प. कइविहे णं भंते ! मरणे पन्नते? उ. गोयमा ! पंचविहे मरणे पन्नत्ते,तं जहा १. आवीचियमरणे, २. ओहिमरणे, ३. आइयंतियमरणे, ४. बालमरणे, ५. पंडियमरणे। प. आवीचियमरणे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते,तं जहा १. दव्वावीचियमरणे, २. खेत्तावीचियमरणे, ३. कालावीचियमरणे, ४. भवावीचियमरणे, ५. भावावीचियमरणे। प. दवावीचियमरणे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! चउब्विहे पण्णत्ते,तं जहा १. नेरइय-दव्वावीचियमरणे, २. तिरिक्खजोणिय-दव्यावीचियमरणे, ३. मणुस्स-दव्यावीचियमरणे, ४. देव-दव्वावीचियमरणे। प. से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ "नेरइयदव्यावीचियमरणे, नेरइयदव्वावीचियमरणे?" उ. गोयमा ! जे णं नेरइया नेरइयदब्वे वट्टमाणा जाई दव्वाइं नेरइयाउयत्ताए गहियाइं बद्धाइं पुट्ठाई कडाई पट्ठवियाई निविट्ठाइं अभिनिविट्ठाई अभिसमन्नागयाइं भवंति ताई दव्वाइं आवीचीअणुसमय निरंतरं मरंतीति कटु, १५५९ ) ७. तद्भव-मरण, ८. बाल-मरण, ९. पंडित-मरण, १०. बाल-पंडित-मरण, ११. छद्मस्थ-मरण, १२. केवलि-मरण, १३. वेहाणस-मरण, १४. गृद्धस्पृष्ट-मरण, १५. भक्तप्रत्याख्यान-मरण, १६. इंगिनी-मरण, १७. पादोपगमन-मरण। प्र. भंते ! मरण कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! पाँच प्रकार का मरण कहा गया है, यथा १. आवीचिक-मरण, २. अवधिमरण, ३. आत्यन्तिकमरण, ४. बालमरण, ५. पण्डित-मरण। प्र. भंते ! आवीचिकमरण कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह पाँच प्रकार का कहा गया है, यथा १. द्रव्यावीचिकमरण, २. क्षेत्रावीचिकमरण, ३. कालावीचिकमरण, ४. भवावीचिक मरण, ५. भावावीचिकमरण, प्र. भंते ! द्रव्यावीचिकमरण कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह चार प्रकार का कहा गया है, यथा १. नैरयिक-द्रव्यावीचिकमरण, २. तिर्यञ्चयोनिक-द्रव्यावीचिकमरण, ३. मनुष्य-द्रव्यावीचिकमरण, ४. देव-द्रव्यावीचिकमरण, प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "नैरयिक-द्रव्यावीचिकमरण-नैरयिक द्रव्यावीचिकमरण है?" उ. गौतम ! नारकद्रव्य (नारकजीव) रूप से विधमान जिस नैरयिक ने जिन द्रव्यों को नरकायु के रूप में ग्रहण किया है, बाँधा है, प्रदेशों में स्पृष्ट किया है, विशिष्ट अनुभाव (फलदान सामर्थ्य) से युक्त किया है, दीर्घ स्थिति से स्थापित किया है, जीव प्रदेशों में निविष्ट किया है, अभिनिविष्ट (अत्यन्त गाढ रूप से निविष्ट) किया है तथा जो द्रव्य अभिसमन्वागत (उदयावलिका में प्रविष्ट हो गये हैं), उन द्रव्यों को (भोग कर) वह प्रतिसमय निरन्तर छोड़ता (मरता) रहता है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"नैरयिक द्रव्यावीचिकमरण-नैरयिक द्रव्यावीचिक मरण है।" इसी प्रकार (तिर्यञ्चयोनिक-द्रव्यावीचिकमरण, मनुष्यद्रव्यावीचिकमरण) देव-द्रव्यावीचिक मरण पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. भंते ! क्षेत्रावीचिकमरण कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह चार प्रकार का कहा गया है, यथा १. नैरयिक क्षेत्रावीचिकमरण यावत् ४. देव क्षेत्रावीचिकमरण। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "नैरयिक क्षेत्रावीचिकमरण-नैरयिक क्षेत्रावीचिकमरण है।" से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"नेरइय-दव्यावीचियमरणे, नेरइयदव्यावीचियमरणे।" एवं जाव देव-दव्वावीचियमरणे। प. खेत्तावीचियमरणे णं भंते ! कइविहे पन्नते? उ. गोयमा ! चउव्विहे पण्णत्ते,तं जहा १. नेरइय खेत्तावीचियमरणे जाव ४. देवखेत्तावीचियमरणे। प. से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ "नेरइयखेत्तावीचियमरणे, नेरइयखेत्तावीचियमरणे?"
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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