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________________ ( १४९४ - द्रव्यानुयोग-(२) ५३. चुलसीइसमज्जियाइ विसिट्ठ चउवीसदंडगाणं सिद्धाण य ५३. चतुरशीति-समर्जितादि विशिष्ट चौबीस दंडक और सिद्धों का अप्पबहुत्तं अल्प बहुत्वप. एएसि णं भंते ! नेरइयाणं चुलसीइ समज्जियाणं जाव प्र. भंते ! इन चतुरशीति-समर्जित यावत् अनेक चतुरशीति नो चुलसीइहिं य नो चुलसीईए य समज्जियाणं कयरे चतुरशीति-समर्जित नैरयिकों में से कौन किनसे अल्प कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया? यावत् विशेषाधिक हैं? उ. गोयमा ! सव्वेसिं अप्पाबहुगंजहा छक्कसमज्जियाणं जाव उ. गौतम ! जिस प्रकार षट्क समर्जित आदि जीवों का वेमाणियाणं, अल्पबहुत्व कहा उसी प्रकार चतुरशीति समर्जित आदि जीवों का वैमानिक-पर्यन्त अल्पबहुत्व कहना चाहिए। णवरं-अभिलावो चुलसीयओ। विशेष-यहाँ “षट्क" के स्थान में "चतुरशीति" शब्द कहना चाहिए। प. एएसिणं भंते ! सिद्धाणं चुलसीइ समज्जियाणं, प्र. भंते ! चतुरशीति समर्जित, नो चुलसीइ समज्जियाणं, नो चतुरशीति-समर्जित तथा चुलसीइए य नो चुलसीईए य समज्जियाणं कयरे चतुरशीति नो चतुरशीति-समर्जित सिद्धों में कौन किनसे अल्प कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? यावत् विशेषाधिक हैं? उ. गोयमा !१. सव्वत्थोवा सिद्धा चुलसीईए य नो चुलसीईए उ. गौतम ! १. सबसे अल्प चतुरशीति नो चतुरशीति-समर्जित य समज्जिया, सिद्ध हैं, २. चुलसीइ समज्जिया अणंतगुणा, २. (उनसे) चतुरशीति-समर्जित सिद्ध अनन्तगुणे हैं, ३. नो चुलसीइ समज्जिया अणंतगुणा। ३. (उनसे) नो चतुरशीति-समर्जित सिद्ध अनन्तगुणे हैं। -विया.स.२०, उ.१०,सु.५५-५६ ५४. सत्तण्हं नरयपुढवीणं सम्मदिट्ठिआईणं उववाय-उव्वट्टण- ५४. सात नरक पृथ्वियों में सम्यग्दृष्टियों आदि का उत्पाद उद्वर्तन अविरहियत्त परूवणं और अविरहितत्व का प्ररूपणप. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए प्र. भंते ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से निरयावाससय सहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु नरएसु संख्यात योजन विस्तार वाले नरकावासों मेंकिं सम्मदिट्ठी नेरइया उववज्जति? क्या सम्यग्दृष्टि नैरयिक उत्पन्न होते हैं? मिच्छादिट्ठी नेरइया उववज्जति, मिथ्यादृष्टि नैरयिक उत्पन्न होते हैं ? सम्मामिच्छद्दिट्ठी नेरइया उववज्जति? सम्यग्मिथ्यादृष्टि नैरयिक उत्पन्न होते हैं ? उ. गोयमा ! सम्मदिट्ठी वि नेरइया उववज्जंति, उ. गौतम ! इनमें सम्यग्दृष्टि नैरयिक भी उत्पन्न होते हैं, मिच्छाद्दिट्ठी वि नेरइया उववज्जति, मिथ्यादृष्टि नैरयिक भी उत्पन्न होते हैं, नो सम्मामिच्छद्दिट्ठी नेरइया उववज्जति। किन्तु सम्यग्मिध्यादृष्टि नैरयिक उत्पन्न नहीं होते हैं। प. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए प्र. भंते ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से निरयावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु नरएसु, संख्यात योजन विस्तृत, किं सम्मदिट्ठी नेरइया उव्वस॒ति ? नरकावासों में क्या सम्यग्दृष्टि नैरयिक उद्वर्तन करते हैं ? मिच्छादिट्ठी नेरइया उव्वहृति, मिथ्यादृष्टि नैरयिक उद्वर्तन करते हैं ? सम्मामिच्छद्दिट्ठी नेरइया उव्वटुंति? सम्यग्मिथ्यादृष्टि नैरयिक उद्वर्तन करते हैं ? उ. गोयमा ! एवं चेव। उ. गौतम ! पूर्ववत् कहना चाहिए। प. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए प्र. भंते ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से निरयावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडा नरगा किं संख्यात योजन-विस्तृत नरकावास क्या सम्यग्दृष्टि नैरयिकों सम्मदिट्ठीहिं नेरइएहिं अविरहिया? से अविरहित (सहित) हैं, मिच्छद्दिट्ठीहिं नेरइएहिं अविरहिया, मिथ्यादृष्टि नैरयिकों से अविरहित हैं, सम्मामिच्छद्दिट्ठीहिँ नेरइएहिं अविरहिया? सम्यग्मिथ्यादृष्टि नैरयिकों से अविरहित हैं? उ. गोयमा ! सम्मदिट्ठीहिं वि नेरइएहिं अविरहिया, उ. गौतम ! सम्यग्दृष्टि नैरयिकों से भी अविरहित हैं, मिच्छद्दिट्ठीहिं विनेरइएहिं अविरहिया, मिथ्यादृष्टि नैरयिकों से भी अविरहित हैं, सम्मामिच्छद्दिट्ठीहिं नेरइएहिं अविरहिया, विरहिया वा। सम्यग्मिथ्यादृष्टि नैरयिकों से कदाचित् अविरहित हैं और कदाचित् विरहित हैं।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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