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________________ वुक्कंति अध्ययन ४. जे णं नेरइयाऽणेगेहिं चुलसीईएहिं पवेसणगं पविसंति ते णं नेरइया चुलसीईहिं समज्जिया । ५. जेणं नेरइयाऽणेगेहिं चुलसीईएहिं अन्नेण य जहन्नेणं एक्केण वा, दोहिं वा, तीहिं वा, उक्कोसेणं तेसीयएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया चुलसीईए य समज्जिया । से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ "नेरइया चुलसीइसमज्जिया वि जाव चुलसीईहिं य नो चुलसीईए समज्जिया वि।” दं. २- ११. एवं असुरकुमारा जाव थणियकुमारा । दं. १२ . पुढविकाइया तहेव पच्छिल्लएहिं दोहिं, णवरं - अभिलावो चुलसीइईओ । दं. १३-१६. एवं जाव वणस्सइकाइया । दं. १७-२४. बेइंदिया जाव वेमाणिया जहा नेरइया । प. सिद्धाणं भंते! किं चुलसीइसमज्जिया जाव चुलसीहिं य चुलसीईए य समज्जिया ?. उ. गोयमा ! सिद्धा १ चुलसीइ समज्जिया वि, २. नो चुलसीइ समज्जिया वि, ३. चुलसीईए य नो चुलसीईए य समज्जिया वि, ४. नो चुलसीईहिं समज्जिया, ५. नो चुलसीईहिं य नो चुलसीईए य समज्जिया । प से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ “सिद्धा चुलसीइ समज्जिया वि जाव नो चुलसीईहिं य नो चुलसीईए य समज्जिया ? उ. गोयमा ! १. जेणं सिद्धा चुलसीईएणं पवेसणएणं पविसंति, ते णं सिद्धा चुलसीइ समज्जिया । २. जेणं सिद्धा जहन्नेणं एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा, उक्कोसेणं तेसीईएणं पवेसणएणं पविसंति, ते णं सिद्धा नो चुलसीइ समज्जिया । ३. जेणं सिद्धा चुलसीयेणं अन्त्रेण य जहन्त्रेणं एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा, उक्कोसेणं (चउवीसएणं) तेसीयएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं सिद्धा चुलसीईए य नो चुलसीईए य समज्जिया । से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ‘“सिद्धा चुलसीइ समज्जिया जाव नो चुलसीईहिं य नो चुलसीईए य समज्जिया। - विया. स. २०, उ.१०, सु. ४९-५४ १४९३ ४. जो नैरयिक एक साथ एक समय में अनेक चौरासी प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे अनेक चतुरशीति- समर्जित हैं। ५. जो नैरयिक एक-एक समय में अनेक चौरासी तथा जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट तेयासी प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे अनेक चतुरशीति नो चतुरशीति-समर्जित हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि‘“नैरयिक चतुरशीति-समर्जित भी हैं यावत् अनेक चतुरशीति नो चतुरशीति समर्जित भी हैं। दं. २- ११. इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमार पर्यन्त कहना चाहिए।" दं. १२. पृथ्वीकायिक जीवों के लिए (अनेक चतुरशीतिसमर्जित और अनेक चतुरशीति नो चतुरशीति-समर्जित) ये दो पिछले भंग समझने चाहिए। विशेष - यहाँ " चौरासी" ऐसा अभिलाप करना चाहिए। दं. १३-१६. इसी प्रकार वनस्पतिकायिकों पर्यन्त (पूर्वोक्त दो भंग) जानने चाहिए। दं. १७- २४. द्वीन्द्रिय जीवों से वैमानिकों पर्यन्त नैरयिकों के समान कहना चाहिए। प्र. भंते ! क्या सिद्ध चतुरशीति समर्जित हैं यावत् अनेक चतुरशीति नो चतुरशीति समर्जित हैं ? उ. गौतम ! १. सिद्ध भगवान् चतुरशीति-समर्जित भी हैं, २. नो चतुरशीति समर्जित भी हैं, ३. चतुरशीति नो चतुरशीति-समर्जित भी हैं, ४. वे अनेक चतुरशीति समर्जित नहीं हैं, ५. वे अनेक चतुरशीति नो चतुरशीति समर्जित भी नहीं हैं। प्र. भंते! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "सिद्ध चतुरशीति समर्जित भी हैं यावत् अनेक चतुरशीति नो चतुरशीति समर्जित नहीं हैं। " उ. गौतम ! १. जो सिद्ध एक साथ, एक समय में चौरासी संख्या प्रवेश करते हैं वे सिद्ध चतुरशीति-समर्जित हैं। २. जो सिद्ध एक समय में, जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट तिरासी प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे सिद्ध नो चतुरशीति समर्जित हैं। ३. जो सिद्ध एक समय में एक साथ चौरासी और अन्य जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट (चौबीस) तिरासी प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे सिद्ध चतुरशीति समर्जित और नो चतुरशीति-समर्जित हैं। इस कारण से गौतम! ऐसा कहा जाता है कि"सिद्ध भगवान् चतुरशीति समर्जित भी हैं यावत् अनेक चतुरशीति नो चतुरशीति-समर्जित नहीं हैं।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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