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________________ वुक्कंति अध्ययन १४७९ ३४. नोइंदियोवउत्ता जहा असण्णी। ३४. नो-इन्द्रियोपयोगयुक्त नारकों का कथन असंज्ञी नारक जीवों के समान है। ३५. संखेज्जा मणजोगी पण्णत्ता। ३५. मनोयोगी संख्यात कहे गए हैं। ३६-३९. एवं जाव अणागारोवउत्ता। ३६-३९. इसी प्रकार अनाकारोपयोगयुक्त पर्यन्त के नैरयिक संख्यात कहे गए हैं। ४०. अणंतरोववन्नगा सिय अस्थि, सिय नत्थि, ४०. अनन्तरोपपत्रक नैरयिक कदाचित् होते हैं, कदाचित् नहीं जइ अस्थि जहा असण्णी। होते हैं, यदि होते हैं तो असंज्ञी जीवों के समान है। ४१. संखेज्जा परंपरोववन्नगा। ४१. परम्परोपपन्नक नैरयिक संख्यात होते हैं। एवं जहा अणंतरोववनगा तहा जिस प्रकार अनन्तरोपपन्नक के विषय में कहा गया है उसी प्रकार ४२. अणंतरोवगाढगा, ४२. अनन्तरावगाढ, ४४. अणंतराहारगा, ४४. अनन्तराहारक और ४६. अणंतरपज्जत्तगा। ४६. अनन्तरपर्याप्तक के विषय में भी कहना चाहिए। ४३, ४५, ४७, ४८, ४९. परंपरोगाढगा जाव अचरिमा ४३, ४५, ४७,४८, ४९. जिस प्रकार परम्परोपपन्नक का जहा परंपरोववन्नगा। -विया. स. १३, उ.१,सु.८ कथन किया गया है, उसी प्रकार परम्परावगाढ, यावत् अचरम का कथन करना चाहिए। ३४. रयणप्पभापुढवीए असंखेज्जवित्थडेसु निरयावासेसु । ३४. रत्नप्रभापृथ्वी के असंख्यात विस्तृत नरकावासों में उत्पाद उववज्जणाइ पण्हाणं समाहाणं आदि के प्रश्नों का समाधानप. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए प्र. भंते ! इस रलप्रभापृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से निरयावाससयसहस्सेसु असंखेज्जवित्थडेसु नेरइएसु असंख्यात योजन विस्तार वाले नरकावासों मेंएगसमएणं१.केवइया नेरइया उववज्जंति जाव १. एक समय में कितने नैरयिक उत्पन्न होते हैं यावत् २-३९. केवइया अणागारोवउत्ता उववजंति? २-३९. कितने अनाकारोपयोगयुक्त नैरयिक उत्पन्न होते हैं? उ. गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए उ. गौतम ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से निरयावाससयसहस्सेसु असंखेज्जवित्थडेसु नेरइएसु असंख्यात योजन विस्तार वाले नरकावासों में एक समय में, एगसमएणं१.जहण्णेणं एक्को वा, दो वा, तिण्णि वा, १. जघन्य एक, दो या तीन और उक्कोसेणं असंखेज्जा नेरइया उववति। उत्कृष्ट असंख्यात नैरयिक उत्पन्न होते हैं। ४-५.एवं जहेव संखेज्जवित्थडेसु तिण्णि गमगा ४-५. जिस प्रकार संख्यात योजन विस्तार वाले नरकावासों तहा असंखेज्जवित्थडेसु वि तिण्णि गमगा भाणियव्या। के विषय में उत्पाद, उद्वर्तना और सत्ता के तीन आलापक कहे हैं, उसी प्रकार असंख्यात योजन विस्तार वाले नरकों के विषय में भी तीन आलापक कहने चाहिए। णवरं-असंखेज्जा भाणियव्वा, विशेष-“संख्यात" के स्थान पर “असंख्यात" कहना चाहिए। सेसं तं चेव जाव असंखेज्जा अचरिमा पण्णत्ता। असंख्यात अचरम कहे गए हैं पर्यन्त शेष सब कथन पूर्ववत् कहना चाहिए। णवर-संखेज्जवित्थडेसु वि, असंखेज्जवित्थडेसु वि, विशेष-संख्यात योजन और असंख्यात योजन विस्तार वाले ओहिनाणी ओहिदंसणी य संखेज्जा उव्वट्टावेयव्वा, नरकावासों में से अवधिज्ञानी और अवधिदर्शनी संख्यात ही उद्वर्तन करते हैं ऐसा कहना चाहिए। सेसंतं चेव। -विया. स. १३, उ.१, सु.९ शेष सब कथन पूर्ववत् करना चाहिए। ३५. सक्करप्पभाइ अहेसत्तम पज्जत्तं नरयपुढवीसु उववज्जणाइ ३५. शर्कराप्रभापृथ्वी से अधःसप्तम पृथ्वीपर्यन्त छः नरक पृथ्वियों पण्हाणं समाहाणं में उत्पाद आदि के प्रश्नों का समाधानप. सक्करप्पभाए णं भंते ! पुढवीए केवइया निरयावाससय- प्र. भंते ! शर्कराप्रभापृथ्वी में कितने लाख नरकावास कहे गए हैं ? सहस्सा पण्णत्ता?
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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