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________________ १४८० उ. गोयमा ! पणवीसं निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता। प. ते णं भंते ! किं संखेज्जवित्थडा,असंखेज्जवित्थडा? उ. गोयमा ! एवं जहा रयणप्पभाए तहा सक्करप्पभाए वि। णवर-असण्णी तिसु वि गमएसुन भण्णति, सेसं तं चेव। प. वालुयप्पभाए णं भंते ! केवइया निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! पन्नरस निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता। सेसं जहा सक्करप्पभाए। णाणत्तं लेस्सासुकाऊ दोसुतइयाइ मिसिया नीलिया चउत्थीए। पंचमियाए मीसा कण्हा, तत्तो परम कण्हा॥ द्रव्यानुयोग-(२) उ. गौतम !(उसमें) पच्चीस लाख नरकावास कहे गए हैं। प्र. भंते ! वे नरकावास क्या संख्यात योजन विस्तार वाले हैं या असंख्यात योजन विस्तार वाले हैं ? उ. गौतम ! जिस प्रकार रलप्रभापृथ्वी के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार शर्कराप्रभा पृथ्वी के विषय में भी कहना चाहिए। विशेष-उत्पाद, उद्वर्तना और सत्ता, इन तीनों ही आलापकों में “असंज्ञी" नहीं कहना चाहिए। शेष पूर्ववत् कहना चाहिए। प्र. भंते ! वालुकाप्रभापृथ्वी में कितने लाख नरकावास कहे गए हैं? उ. गौतम ! उस में पन्द्रह लाख नरकावास कहे गए हैं। शेष सब कथन शर्कराप्रभा के समान कहना चाहिए। विशेष-लेश्याओं में भिन्नता हैपहली और दूसरी में कापोतलेश्या, तीसरी में मिश्र (कापोत और नील),चौथी में नील, पाँचवीं में मिश्र (नील और कृष्ण), छठी में कृष्ण और सातवीं नरक में परम कृष्ण लेश्या है। प्र. भंते ! पंकप्रभापृथ्वी में कितने लाख नरकावास कहे गए हैं ? प. पंकप्पभाए णं भंते ! केवइया निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! दस निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता। एवं जहा सक्करप्पभाए। णवर-ओहिनाणी ओहिदंसणी य न उव्वट्टति, उ. गौतम ! उसमें दस लाख नरकावास कहे गए हैं। जिस प्रकार शर्कराप्रभा के विषय में कहा है उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए। विशेष-(इस पृथ्वी से) अवधिज्ञानी और अवधिदर्शनी उद्वर्तन नहीं करते। शेष सभी कथन पूर्ववत् समझना चाहिए। प्र. भंते ! धूमप्रभापृथ्वी में कितने लाख नरकावास कहे गए हैं ? सेसंतं चेव। प. धूमप्पभाए णं भंते ! केवइया निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! तिण्णि निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता। एवं जहा पंकप्पभाए। उ. गौतम ! उसमें तीन लाख नरकावास कहे गए हैं। जिस प्रकार पंकप्रभापृथ्वी के विषय में कहा उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए। प्र. भंते ! तमःप्रभापृथ्वी में कितने लाख नरकावास कहे गए हैं ? प. तमाए णं भंते ! पुढवीए केवइया निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! एगे पंचूणे निरयावाससयसहस्से पण्णत्ते। सेसं जहा पंकप्पभाए। प. अहेसत्तमाए णं भंते ! पुढवीए कइ अणुत्तरा महइमहालया निरया पण्णत्ता? उ. गोयमा ! पंच अणुत्तरा १.काले,२. महाकाले,३.रोरुए, ४.महारोरुए,५.अप्पईट्ठाणे। प. ते णं भंते ! किं संखेज्जवित्थडा, असंखेज्जवित्थडा? उ. गौतम !(उसमें) पाँच कम एक लाख नरकावास कहे गए हैं ? शेष सभी कथन पंकप्रभा के समान जानना चाहिए। प्र. भंते ! अधःसप्तमपृथ्वी में कितने अनुत्तर महानरकावास कहे गए हैं? उ. गौतम ! ये पाँच १. काल, २. महाकाल, ३. रौरव, ४. महा रौरव और ५. अप्रतिष्ठान अनुत्तर नरकावास कहे गए हैं। प्र. भंते ! वे नरकावास क्या संख्यात योजन विस्तार वाले हैं या असंख्यात योजन विस्तार वाले हैं ? उ. गौतम ! एक नरकावास संख्यात योजन विस्तार वाला है और शेष असंख्यात योजन विस्तार वाले हैं। प्र. भंते ! अधःसप्तमपृथ्वी के पाँच अनुत्तर नरकावासों में से संख्यात योजन विस्तार वाले (अप्रतिष्ठान) नरकावास में एक समय में कितने नैरयिक उत्पन्न होते हैं, कितने नैरयिक उद्वर्तन करते हैं और कितने नैरयिक कहे गये हैं ? उ. गोयमा ! संखेज्जवित्थडे य,असंखेज्जवित्थडाय। प. अहेसत्तमाए णं भंते ! पुढवीए पंचसु अणुत्तरेसु महइमहालएसु महानिरएसु संखेज्जवित्थडे नरए एगसमएणं केवइया नेरइया उववज्जति, केवइया नेरइया उव्वटंति, केवइया नेरइया पण्णत्ता?
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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