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________________ १४७७ ३५. मनोयोगी जीव वहाँ उत्पन्न नहीं होते हैं। ३६. इसी प्रकार वचनयोगी भी समझना चाहिए। ३७. काययोगी जीव जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं। ३८-३९. इसी प्रकार साकारोपयोग युक्त एवं अनाकारोपयोग युक्त जीवों के विषय में भी कहना चाहिए। ३२. रलप्रभापृथ्वी के संख्यात विस्तृत नरकावासों में उद्वर्तन करने वाले नारकों के ३९ प्रश्नों का समाधानप्र. भंते ! इस रलप्रभापृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से संख्यात योजन विस्तार वाले नारकों में एक समय में [ वुक्कंति अध्ययन ३५. मणजोगी न उववज्जति। ३६. एवं वइजोगी वि। ३७. जहण्णेणं एक्को वा, दो वा, तिण्णि वा उक्कोसेणं संखेज्जा कायजोगी उववज्जति। ३८-३९. एवं सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि। -विया. स. १३, उ.१, सु. ४-६ ३२. रयणप्पभापुढवीए खेज्जवित्थडेसु निरयावासेसु उव्वट्टगाणं नारगाणं एगूणचत्तालाणं पण्हाणं समाहाणंप. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु नेरइएसु एगसमएणं, १. केवइया नेरइया उव्वटंति ? २. केवइया काउलेस्सा उव्वटंति? ३-३९. जाव केवइया अणागारोवउत्ता उव्वटैति? उ. गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु नेरइएसु एगसमएणं१. जहण्णेणं एक्को वा, दो वा, तिण्णि वा उक्कोसेणं संखेज्जा नेरइया उव्वटंति। २. जहण्णेणं एक्को वा, दो वा, तिण्णि वा उक्कोसेणं संखेज्जा काउलेस्सा उव्वटंति। ३-५. एवं जाव सण्णी १. कितने नैरयिक उद्वर्तन करते (मरते-निकलते) हैं ? २. कितने कापोतलेश्यी नैरयिक मरते हैं? ३-३९. यावत् कितने अनाकारोपयुक्त नैरयिक मरते हैं ? उ. गौतम ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से संख्यात योजन विस्तार वाले नरकों में और ६. असण्णी न उव्वटंति। ७. जहण्णेणं एक्को वा, दो वा, तिण्णि वा____उक्कोसेणं संखेज्जा भवसिद्धिया उव्वटंति। ८-१३. एवं जाव सुयअन्नाणी। १४. विभंगनाणी न उव्वटंति। १५. चक्खुदंसणी न उव्वटंति। १६. जहण्णेणं एक्को वा, दो वा, तिण्णि वा उक्कोसेणं संखेज्जा अचक्खुदंसणी उव्वटंति। १७-२८. एवं जाव लोभकसाई। १. एक समय में जघन्य एक, दो या तीन उत्कृष्ट संख्यात नैरयिक मरते हैं। २. जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात कापोतलेश्यी नैरयिक मरते हैं। ३-५. इसी प्रकार संज्ञी पर्यन्त नैरयिकों की उद्वर्तना कहनी चाहिए। ६. असंज्ञी जीव मरते नहीं हैं। ७. जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात भवसिद्धिक नैरयिक जीव मरते हैं। ८-१३. इसी प्रकार श्रुत-अज्ञानी पर्यन्त उद्वर्तना कहनी चाहिए। १४. विभंगज्ञानी मरते नहीं हैं। १५. चक्षुदर्शनी भी मरते नहीं हैं। १६. जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात अचक्षुदर्शनी जीव मरते हैं। १७-२८. इसी प्रकार लोभकषायी पर्यन्त नैरयिक जीवों की उद्वर्तना कहनी चाहिए। २९. श्रोत्रेन्द्रियोपयोगयुक्त जीव मरते नहीं हैं। ३०-३३. इसी प्रकार स्पर्शेन्द्रियोपयोगयुक्त पर्यन्त के नैरयिक जीव भी मरते नहीं हैं। ३४. जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात नोइन्द्रियोपयोगयुक्त नैरयिक मरते हैं। ३५. मनोयोगी नहीं मरते हैं। ३६. इसी प्रकार वचनयोगी भी नहीं मरते हैं। ३७. जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात काययोगी मरते हैं। २९. सोइंदियोवउत्ता न उव्वटंति। ३०-३३. एवं जाव फासिंदियोवउत्तान उव्वटंति। ३४. जहण्णेणं एक्को वा, दो वा, तिण्णि वा उक्कोसेणं संखेज्जा नोइंदियोवउत्ता उव्वट्टति। ३५. मणजोगी न उव्वटंति। ३६. एवं वइजोगी वि। ३७. जहणणेणं एक्को वा, दो वा, तिण्णि वा उक्कोसेणं संखेज्जा कायजोगी उव्वट्टति।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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