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________________ १४७६ ३०-३३. जाव केवइया फासिंदियोवउत्ता उववज्जति? ३४. केवइया नोइंदियोवउत्ता उववज्जंति? ३५. केवइया मणजोगी उववज्जति? ३६. केवइया वइजोगी उववज्जति? ३७. केवइया कायजोगी उववज्जति? ३८. केवइया सागारोवउत्ता उववज्जंति? ३९. केवइया अणागारोवउत्ता उववति? उ. गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावास सयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसुनेरइएसु१. जहण्णेणं एक्को वा, दो वा, तिण्णि वा उक्कोसेणं संखेज्जा नेरइया उववज्जंति। २. जहण्णेणं एक्को वा, दो वा, तिण्णि वा उक्कोसेणं संखेज्जा काउलेस्सा उववज्जति। ३. जहण्णेणं एक्को वा, दो वा, तिण्णि वा उक्कोसेणं संखेज्जा कण्हपक्खिया उववज्जंति। ४. एवं सुक्कपक्खिया वि। ५. एवं सन्नी। ६. एवं असन्नी। ७. एवं भवसिद्धिया। ८. एवं अभवसिद्धिया। ९. आभिणिबोहियनाणी, १०. सुयनाणी, ११. ओहिनाणी, १२. मईअन्नाणी, १३. सुयअन्नाणी, १४. विभंगनाणी, १५. चक्खुदंसणी न उववज्जति, १६. जहण्णेणं एक्को वा, दो वा, तिण्णि वा उक्कोसेणं संखेज्जा अचक्खुदंसणी उववज्जति। १७. एवं ओहिदंसणी वि, १८-२१. एवं आहारसण्णोवउत्ता वि जाव परिग्गहसण्णोवउत्ता द्रव्यानुयोग-(२) ३०-३३. यावत् कितने स्पर्शेन्द्रिय उपयोगयुक्त उत्पन्न होते हैं? ३४. कितने नो इन्द्रियोपयोग (मन) जीव उत्पन्न होते हैं? ३५. कितने मनोयोगी जीव उत्पन्न होते हैं ? ३६. कितने वचनयोगी जीव उत्पन्न होते हैं? ३७. कितने काययोगी जीव उत्पन्न होते हैं? ३८. कितने साकारोपयोग युक्त जीव उत्पन्न होते हैं ? ३९. कितने अनाकारोपयोग युक्त जीव उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से संख्यात विस्तृत नरकों में एक समय में१. जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात नैरयिक उत्पन्न होते हैं। २. जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात कापोतलेश्यी जीव उत्पन्न होते हैं। ३. जघन्य एक, दो या तीन और ____उत्कृष्ट संख्यात कृष्णपाक्षिक उत्पन्न होते हैं। ४. इसी प्रकार शुक्ल पाक्षिक जीव उत्पन्न होते हैं। ५. इसी प्रकार संज्ञी जीव उत्पन्न होते हैं। ६. इसी प्रकार असंज्ञी जीव उत्पन्न होते हैं। ७. इसी प्रकार भवसिद्धिक जीव उत्पन्न होते हैं। ८. इसी प्रकार अभवसिद्धिक जीव उत्पन्न होते हैं। ९. आभिनिबोधिक ज्ञानी जीव उत्पन्न होते हैं। १०. श्रुतज्ञानी जीव उत्पन्न होते हैं। ११. अवधिज्ञानी जीव उत्पन्न होते हैं। १२. मति-अज्ञानी जीव उत्पन्न होते हैं। १३. श्रुत-अज्ञानी जीव उत्पन्न होते हैं। १४. विभंगज्ञानी जीव उत्पन्न होते हैं। १५. चक्षुदर्शनी जीव उत्पन्न नहीं होते हैं। १६. अचक्षुदर्शनी जीव जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं। १७. इसी प्रकार अवधिदर्शनी के लिए जानना चाहिए। १८-२१. इसी प्रकार आहारसंज्ञोपयुक्त से परिग्रह- संज्ञोपयुक्त पर्यन्त के लिए जानना चाहिए। २२. स्त्री वेदी जीव उत्पन्न नहीं होते हैं। २३. पुरुषवेदी जीव भी उत्पन्न नहीं होते हैं। २४. नपुंसकवेदी जीव जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं। २५-२८. इसी प्रकार क्रोध कषायी से लोभकषायी पर्यन्त जीवों (की उत्पत्ति) के विषय में जानना चाहिए। २९-३३. इसी प्रकार श्रोत्रेन्द्रियोपयुक्त से स्पर्शेन्द्रियोपयुक्त पर्यन्त जीव वहाँ उत्पन्न नहीं होते हैं। ३४. नो इन्द्रियोपयुक्त जीव जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं। वि। २२. इथिवेदगा न उववज्जति। २३. पुरिसवेदगा न उववज्जति। २४. जहण्णेणं एक्को वा, दो वा, तिण्णि वा उक्कोसेणं संखेज्जा नपुंसगवेदगा उववति। २५-२८. एवं कोहकसायी जाव लोभकसायी। २९-३३. एवं सोइंदियोवउत्ता जाव फासिंदियोवउत्ता न उववज्जंति। ३४. जहण्णेणं एक्को वा, दो वा, तिण्णि वा उक्कोसेणं संखेज्जा नोइंदियोवउत्ता उववज्जंति।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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