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________________ १४५८ उ. गोयमा ! नेरइया अणंतरोववण्णगा वि, परंपरोववण्णगा वि,अणंतरपरपंर अणुववण्णगा वि। प. से केणतुणं भंते ! एवं वुच्चइ "नेरइया अणंतरोववण्णगा वि, परंपरोववन्नगा वि, अणंतरपरंपर अणुववण्णगा वि?" उ. गोयमा ! जेणं नेरइया पढमसमयोववण्णगा ते णं नेरइया अणंतरोववण्णगा, जे णं नेरइया अपढमसमयोववण्णगा ते णं नेरइया परंपरोववण्णगा, जे णं नेरइया विग्गहगतिसमावण्णगा, ते णं नेरइया अणंतरपरंपर अणुववण्णगा। द्रव्यानुयोग-(२) उ. गौतम ! नैरयिक अनन्तरोपपन्नक भी हैं, परम्परोपपन्नक भी है, अनन्तरपरंपरानुपपन्नक भी हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "नैरयिक अनन्तरोपपन्नक भी हैं, परम्परोपपन्नक भी हैं और अनन्तर परम्परानुपपन्नक भी है? उ. गौतम ! जिन नैरयिकों को उत्पन्न हुए अभी प्रथम समय ही हुआ है वे (नैरयिक) अनन्तरोपपन्नक हैं। प्रथम समय के बाद उत्पन्न होने वाले नैरयिक परम्परोपपन्नक से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"नेरइया अणंतरोववण्णगा वि, परंपरोववण्णगा वि, अणंतरपरंपरअणुववण्णगा वि।" दं.२-२४ एवं निरंतरंजाव वेमाणिया। -विया.स. १४, उ.१,सु.८-९ १६. चउवीसदंडएसु उववज्जमाणेसु उप्पायस्स चउभंग परूवणं- प. दं.१ नेरइएणं भंते ! नेरइएसु उववज्जमाणे, १. किं देसेणं देसं उववज्जइ? २. देसेणं सव्वं उववज्जइ? ३. सव्वेणं देसं उववज्जइ? ४. सव्वेणं सव्वं उववज्जइ? उ. गोयमा !१.नो देसेणं देसं उववज्जइ, जो नैरयिक जीव नरक में उत्पन्न होने के लिए (अभी) विग्रहगति में चल रहे हैं, वे (नैरयिक) अनन्तरपरम्परानुपपन्नक हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"नैरयिक जीव अनंतरोपपन्नक भी हैं, परंपरोपपत्रक भी हैं और अनन्तरपरम्परानुपपन्नक भी हैं। दं. २-२४. इसी प्रकार निरन्तर वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए। १६. उत्पद्यमान चौबीस दंडकों में उत्पाद के चतुर्भगों का प्ररूपणप्र. दं. १. भंते ! नारकों में उत्पन्न होता हुआ जीव१. क्या एक भाग से एक भाग को आश्रित करके उत्पन्न होता है? २. एक भाग से सर्व भागों को आश्रित करके उत्पन्न होता है ? ३. सर्वभागों से एक भाग को आश्रित करके उत्पन्न होता है? ४. सर्वभागों से सर्वभागों को आश्रित करके उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! १.(नारक जीव) एक भाग से एक भाग को आश्रित करके उत्पन्न नहीं होता है, २. एक भाग से सर्वभागों को आश्रित करके उत्पन्न नहीं होता है। ३. सर्वभागों से एक भाग को आश्रित करके भी उत्पन्न नहीं होता है। ४. सर्वभागों से सर्वभागों को आश्रित करके उत्पन्न होता है। दं.२-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. दं.१. भंते ! नारकों में उत्पन्न हुआ नैरयिक १. क्या एक भाग से एक भाग को आश्रित करके उत्पन्न २. नो देसेणं सव्वं उववज्जइ, ३. नो सव्वेणं देसं उववज्जइ, ४. सव्वेणं सव्वं उववज्जइ। दं.२-२४ एवं जाव वेमाणिए। -विया. स. १, उ.७, सु. १ प. दं.१.नेरइए णं भंते ! नेरइएसु उववण्णे १. किं देसेण देसं उववण्णे, हुआ है? २. देसेण सव्वं उववण्णे, ३. सव्वेण देसं उववण्णे, ४. सव्वेण सव्वं उववण्णे? उ. गोयमा !१.नो देसेण देसं उववण्णे, २. एक भाग से सर्वभागों को आश्रित करके उत्पन्न हुआ है ? ३. सर्वभागों से एक भाग को आश्रित करके उत्पन्न हुआ है ? ४. सर्वभागों से सर्वभागों को आश्रित करके उत्पन्न हुआ है ? उ. गौतम !१. एक भाग से एक भाग को आश्रित करके उत्पन्न नहीं हुआ है। २. एक भाग से सर्वभागों को आश्रित करके उत्पन्न नहीं २. नो देसेण सव्वं उववण्णे, हुआ है।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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