SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 720
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वुक्कंति अध्ययन ३. नो सब्वेण देसं उववण्णे, १४५९ ३. सर्व भागों से एक भाग को आश्रित करके उत्पन्न नहीं हुआ है। ४. सर्वभागों से सर्वभागों को आश्रित करके उत्पन्न हुआ है। द.२-२४. इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए। ४. सव्वेण सव्वं उववण्णे। दं.२-२४ एवं जाव वेमाणिए। -विया, स.१, उ.७, सु.५(१) प. दं.१.नेरइए णं भंते ! नेरइएसु उववज्जमाणे, १. किं अद्धेण अद्धं उववज्जइ, २. अद्धेण सव्वं उववज्जइ, ३. सव्वेण अद्धं उववज्जइ, ४. सव्वेण सव्वं उववज्जइ? उ. गोयमा ! १.नो अद्धेण अद्धं उववज्जइ, प्र. दं.१. भंते ! नैरयिकों में उत्पन्न होता हुआ नारक जीव१. क्या अर्धभाग से अर्धभाग को आश्रित करके उत्पन्न होता है? २. अर्धभाग से सर्वभागों को आश्रित करके उत्पन्न होता है? ३. सर्वभागों से अर्धभाग को आश्रित करके उत्पन्न होता है? ४. सर्वभाग से सर्वभाग को आश्रित करके उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! १. अर्धभाग से अर्धभाग को आश्रित करके उत्पन्न नहीं होता है। २. अर्धभाग से सर्वभागों को आश्रित करके उत्पन्न नहीं होता है। ३. सर्वभागों से अर्धभाग को आश्रित करके उत्पन्न नहीं होता है। ४. सर्वभागों से सर्वभागों को आश्रित करके उत्पन्न होता है। द.२-२४. इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए। इसी प्रकार उत्पन्न के लिए भी वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए। २. नो अद्धेण सव्वं उववज्जइ, ३. नो सब्वेण अद्धं उववज्जइ, ४. सव्वेण सव्वं उववज्जइ। दं.२-२४ एवं जाव वेमाणिए। एवं उववण्णे विजाव वेमाणिए। -विया.स.१, उ.७.सु.६ १७. चउवीसदंडएसुसंतर-निरंतर-उववज्जण परूवणं- प. दं. १. रयणप्पभापुढविनेरइया णं भंते ! किं संतरं उववज्जंति, निरतरं उववज्जति? उ. गोयमा ! संतरं पि उववज्जंति, निरंतर पि उववति । एवं जाव अहेसत्तमाए संतरं पि उववज्जति, निरंतर पि उववज्जति। प. दं.२.असुरकुमारा णं भंते ! देवा किं संतरं उववजंति, निरंतरं उववज्जति ? उ. गोयमा ! संतरं पि उववज्जति, निरंतरं पि उववज्जंति। प. दं.३-११. एवं जाव थणियकुमारा संतरं पि उववज्जंति, निरंतर पि उववज्जति। प. दं. १२. पुढविकाइया णं भंते ! किं संतरं उववज्जंति, निरंतरं उववज्जति? उ. गोयमा ! नो संतरं उववजंति, निरंतर उववति । १७. चौबीस दंडकों में सान्तर निरन्तर उत्पत्ति का प्ररूपणप्र. द.१.भंते ! क्या रलप्रभापृथ्वी के नारक सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम !(वे) सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी उत्पन्न __होते हैं। इसी प्रकार अधःसप्तम पृथ्वी पर्यन्त के नैरयिक सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी उत्पन्न होते हैं। प्र. दं.२. भंते ! असुरकुमार देव क्या सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! वे सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी उत्पन्न होते हैं। द.३-११. इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त के देव सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी उत्पन्न होते हैं। प्र. दं. १२. भंते ! पृथ्वीकायिक जीव क्या सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम !(वे) सान्तर उत्पन्न नहीं होते हैं किन्तु निरन्तर उत्पन्न होते हैं। दं. १३-१६ इसी प्रकार वनस्पतिकायिक पर्यन्त के जीव सान्तर उत्पन्न नहीं होते हैं किन्तु निरन्तर उत्पन्न होते हैं। प्र. दं. १७. भंते ! द्वीन्द्रिय जीव क्या सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम !(वे) सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी उत्पन्न होते हैं। दं. १३-१६ एवं जाव वण्णस्सइकाइया नो संतर उववज्जंति, निरंतरं उववज्जति। प. दं.१७. बेइंदिया णं भंते ! किं संतरं उववज्जंति, निरंतर उववज्जति? उ. गोयमा ! संतरं पिउववति, निरंतरं पि उववज्जति।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy