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________________ १४५६ संजयासंजय-सम्मदिट्ठि-पज्जत्तय-संखेज्जवासाउय गब्भवक्कंतिय-मणुस्सेहिंतो उववजंति? उ. गोयमा ! तीहिंतो वि उववज्जति। एवं जाव अच्चुओ कप्पो। एवं गेवेज्जगदेवा वि। णवरं-असंजय-संजयासंजएहिंतो एएपडिसेहेयव्या। एवं जहेव गेवेज्जगदेवा तहेव अणुत्तरोववाइया वि। णवरं-इमंणाणत्तं-संजया चेव। द्रव्यानुयोग-(२) या संयतासंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! वे (आनत देव) तीनों में से ही आकर उत्पन्न होते हैं। अच्युतकल्प तक के देवों के उपपात का कथन इसी प्रकार करना चाहिए। इसी प्रकार (नौ) अवेयक देवों के उपपात के विषय में भी समझना चाहिए। विशेष-असंयतों और संयतासंयतों से इनकी उत्पत्ति का निषेध करना चाहिए। इसी प्रकार जैसे ग्रैवेयक देवों की उत्पत्ति के विषय में कहा, वैसे ही पांच अनुत्तरोपपातिक देवों की उत्पत्ति समझनी चाहिए। विशेष-यह भिन्नता है कि संयत ही अनुत्तरोपपातिक देवों में उत्पन्न होते हैं। प्र. यदि (वे) संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों में से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या वे प्रमत्तसंयत-सम्यग्दृष्टि पर्याप्तकों में से आकर उत्पन्न होते हैं या अप्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तकों में से आकर उत्पन्न होते हैं? उ. गौतम ! अप्रमत्तसंयतों में से आकर (वे) उत्पन्न होते हैं। (किन्तु) प्रमत्तसंयतों में से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं। प्र. यदि वे (अनुत्तरोपपातिक देव) अप्रमत्तसंयतों में से आकर उत्पन्न होते हैं? तो क्या ऋद्धि प्राप्त-अप्रमत्तसंयतों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? या अऋद्धि प्राप्त-अप्रमत्तसंयतों में आकर उत्पन्न होते हैं ? उ. गौतम ! (वे) दोनों मे से ही आकर उत्पन्न होते हैं। प. जइ संजय-सम्मदिट्ठि-पज्जत्तय-संखेज्जवासाउय कम्मभूमग-गब्भवक्कंतिय-मणुस्सेहिंतो उववज्जति, किं पमत्त-संजय-सम्मदिट्ठि-पज्जत्तएहिंतो उववज्जति? अपमत्तसंजएहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा ! अपमत्त-संजएहिंतो उववज्जति, नो पमत्त-संजएहिंतो उववज्जति। प. जइ अपमत्त-संजएहिंतो उववज्जंति, किं इड्ढिपत्त-अपमत्त-संजएहिंतो उववज्जति? अणिड्ढिपत्त अपमत्त-संजएहिंतो उववज्जति? उ. गोयमा ! दोहिंतो वि उववज्जति। -पण्ण.प.६.सु.६५७-६६५ १२. तिरिय मिस्सोववण्णग अट्ठ कप्पाणं णामाणि अट्ठ कप्पा तिरियमिस्सोववण्णगा पण्णत्ता,तं जहा १२. तिर्यक् मिश्रोपपत्रक आठ कल्पों के नाम आठ कल्प वैमानिक (देवलोक) तिर्यक् मिश्रोपपन्नक (तिर्यञ्च और मनुष्य दोनों के उत्पन्न होने योग्य) कहे गए हैं, यथा१. सौधर्म, २. ईशान, ३. सनत्कुमार, ४. माहेन्द्र, ५. ब्रह्मलोक, ६.लान्तक,७. महाशुक्र,८. सहस्रार। १३. चौबीस दंडकों में एक समय में उत्पन्न होने वालों की संख्या प्र. द.१. भंते ! एक समय में कितने नैरयिक उत्पन्न होते हैं ? १. सोहम्मे, २. ईसाणे, ३. सणंकुमारे, ४. माहिंदे, ५.बंभलोगे, ६.लंतए,७. महासुक्के, ८.सहस्सारे। -ठाणं.अ.८,सु.६४४ १३. चउवीसदंडएसुएगसमए उववज्जमाणाणं संखाप. दं. १. नेरइया णं भंते ! एगसमए णं केवइया उववज्जंति? उ. गोयमा ! जहण्णेणं एगो वा, दो वा, तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा,असंखेज्जा वा उववति। एवं जाव अहेसत्तमाए। प. दं. २. असुरकुमारा णं भंते ! एगसमए णं केवइया उववज्जति? उ. गौतम ! वे जघन्य एक, दो या तीन, उत्कृष्ट संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार अधःसप्तम पृथ्वी पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. दं.२. भंते ! असुरकुमार एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? १. जीवा. पडि.३, सु.८६ (२)
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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