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________________ १४४० द्रव्यानुयोग-(२) प्र. भन्ते ! मनुष्यगति कितने काल तक उपपात से विरहित कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य एक समय, उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक। प्र. भन्ते! देवगति कितने काल तक उपपात से विरहित कही प. मणुयगईणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता। प. देवगईणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता? उ. गोयमा ! जहण्णेणं एगं समय, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता। -पण्ण.प.६, सु. ५६०-५६३ ८. चमरचंचाईसु उप्पायविरहकाल परूवणं चरमचंचा णं रायहाणी उक्कोसेणं छम्मासा विरहिया उववाएणं। एगमेगेणं इंदट्ठाणं उक्कोसेणं छम्मासा विरहिया उववाएणं। अहेसत्तमाणं पुढवी उक्कोसेणं छम्मासा विरहिया उववाएणं। सिद्धिगईणं उक्कोसेणं छम्मासा विरहिया उववाएणं। -ठाणं.अ.६,सु.५३५ ९. सिद्धगईस्स सिज्झणा विरहकाल परवणंप. सिद्धगईणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया सिज्झणयाए पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेणं एगं समय, उक्कोसेणं छम्मासा। -पण्ण. प.६, सु.५६४ १०.चउगईणं उव्वट्टण-विरहकाल परूवर्णप. निरयगईणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उव्वट्टणयाए पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता। प. तिरियगईणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उव्वट्टणयाए पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता। प. मणुयगईणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उव्वट्टणयाए पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता। प. देवगईणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उव्वट्टणयाए पण्णत्ता? उ. गोयमा !जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस महुत्ता।३ -पण्ण.प.६, सु.५६५-५६८ उ. गौतम ! जघन्य एक समय, उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक उपपात से विरहित रहती है। ८. चमरचंचा आदि में उपपात विरह काल का प्ररूपण चमरचंचा राजधानी उत्कृष्ट रूप से छह महीनों तक उपपात से विरहित रह सकती है। प्रत्येक इन्द्र स्थान उत्कृष्ट रूप से छह महीनों तक उपपात से विरहित रह सकता है। अधःसप्तम पृथ्वी उत्कृष्ट रूप से छह महीनों तक उपपात से विरहित रह सकती है। सिद्धगति उत्कृष्ट रूप से छह महीनों तक उपपात से विरहित रह सकती है। ९. सिद्धगति के सिद्ध विरह काल का प्ररूपणप्र. भन्ते ! सिद्धगति कितने काल तक सिद्धि से रहित कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छह महीनों तक विरहित रहती है। १०. चार गतियों के उद्वर्तन विरहकाल का प्ररूपण प्र. भन्ते ! नरकगति कितने काल तक उद्वर्तना से विरहित कही __गई है? उ. गौतम ! जघन्य एक समय, उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक। प्र. भन्ते ! तिर्यञ्चगति कितने काल तक उद्वर्तना से विरहित कही गई है? उ. गौतम ! जघन्य एक समय, उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक। प्र. भन्ते ! मनुष्यगति कितने काल तक उद्वर्तना से विरहित कही उ. गौतम ! जघन्य एक समय, उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक। प्र. भन्ते ! देवगति कितने काल तक उद्वर्तना से विरहित कही उ. गौतम ! जघन्य एक समय, उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक। १. विया.स.१, उ.१०,सु.३ २. (क) सम.सु.१५४/६ (ख) पण्ण. प. ६, सु. ६०६ (ग) सम. सु. १५५/६ ३. सम.सु. १५४ (८)
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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