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________________ १४३८ इहिंतो वा तिरिक्खजोणिएहिंतो वा, मणुस्सेहिंतो वा, देवहितो वा उबवज्जेज्जा, से चेव णं से पंचेंदियतिरिक्खजोणिए पंचेंदियतिरिक्खजोणियत्तं विप्पजहमाणे णेरइयत्ताए वा तिरिक्खजोणियत्ताए वा, मणुस्सयत्ताए वा देवताए वा गच्छेजा। - ठाणं अ. ४, उ. ४, सु. ३६७ मणुस्सा चउगइआ चउआगइआ पण्णत्ता, तं जहा 7 मणुस्से मणुस्सेसु उववज्जमाणे णेरइएहिंतो वा तिरिक्खजोणिहिंतो वा, मणुस्सेहिंतो वा, देवेहिंतो वा उववज्जेज्जा, से चेवणं से मणुस्से मणुसत्तं विप्पजहमाणे णेरइयत्ताए वा, तिरि-वजोणियत्ताए वा मणुस्ताए था, देवताए वा गच्छेज्जा । एगिंदिया पंचगइया पंचआगइया पण्णत्ता, तं जहा१. एगिंदिए एगिंदिएसु उववज्जमाणे, एगिंदिएहिंतो वा, बेइदिएहिंतो वा, तेइंदिएहिंतो वा चउरिदिएहिंतो वा, पंचिदिएहिंतो वा उववज्जेज्जा । - ठाणं. अ. ४, उ. ४, सु. ३६७ " से चेवणं से एगिंदिए एगिंदियत्तं विप्पजहमाणे एगिंदियत्ताए वा बेदियत्ताए वा तेईदियत्ताए वा चउरिदिवत्ताए वा पंचिंदियत्ताए वा गच्छेज्जा । " इंदिया पंच गइया पंच आगइया एवं चेव । एवं तेइंदिया- चउरिंदिया-पंचिंदिया पंच गइया पंचआगइया पण्णत्ता, - ठाणं. अ. ५, सु. ४५८ पुढविकाइयाछ गइयाछ आगइया पण्णत्ता, तं जहा पुढविकाइए पुढविकाइएसु उववजमाणे १. पुढविकाइएहिंतो वा, २. आउकाइएहितो या, ३. तेउकाइएहिंतो वा, ४. बाउकाइएहिंतो या, ५. वणस्सइकाइएहिंतो बा, ६. तसकाइएहितो या उपवज्जेज्जा से चेव णं से पुढविकाइए पुढविकाइयत्तं विप्पजहमाणे पुढविकाइयत्ताए वा जाय तसकाइयत्ताए वा गच्छेज्जा । आउकाइया विछ गइया छ आगइया एवं जाव तसकाइया । -ठाणं. अ. ६, सु. ४८२ पुढविकाइया नवगइया नवआगइया पण्णत्ता, तं जहापुढविकाइए पुढविकाइएसु उववज्जमाणे पुढविकाइएहिंतो वा जाव पंचेंदियहिंतो वा उववज्जेज्जा, से चेव णं से पुढविकाइए पुढविकाइयत्तं विप्पजहमाणे पुढविकाइयत्ताए वा जाव पंचेंदियत्ताए वा गच्छेज्जा । एवमाकाइया वि जाव पंचेदिय त्ति -ठाणं अ. ९, सु. ६६६/२-१० द्रव्यानुयोग - (२) नैरयिकों, तिर्यञ्चयोनिकों, मनुष्यों तथा देवों में से आकर उत्पन्न होता है। वही पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीव पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक को छोड़ता हुआ नैरयिकों तिर्यञ्चयोनिकों, मनुष्यों तथा देवों में जाता है। , मनुष्यों की चार स्थानों में गति और चार स्थानों में आगति कही गई है, यथा मनुष्य- मनुष्य में उत्पन्न होता हुआ नैरयिकों, तिर्यञ्चयोनिकों, मनुष्यों तथा देवों में से आकर उत्पन्न होता है। वही मनुष्य, मनुष्यत्व को छोड़ता हुआ नैरयिकों, तिर्यञ्चयोनिकों मनुष्यों तथा देवों में जाता है। एकेन्द्रिय जीव पांच गति तथा पांच आगति वाले कहे गए हैं, यथा१. एकेन्द्रिय एकेन्द्रियों में उत्पन्न होता हुआ एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय से उत्पन्न होता है। एकेन्द्रिय एकेन्द्रियत्व को छोड़ता हुआ एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय में जाता है। इसी प्रकार द्वीन्द्रिय जीव भी पांच गति और पांच आगति वाले होते हैं। इसी प्रकार त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पांच गति और पांच आगति वाले कहे गए हैं। पृथ्वीकायिक जीव छ स्थानों में गति और छः स्थानों से आगति करने वाले कहे गए हैं, यथा पृथ्वीकायिक जीव पृथ्वीकायिक में उत्पन्न होता हुआ १. पृथ्वीकायिकों, २. अप्कायिकों, ३. तेजस्कायिकों, ४. वायुकायिकों, ५. वनस्पतिकायिकों और ६. सकायिकों से आकर उत्पन्न होता है। वही पृथ्वीकायिक पृथ्वीकायिकपने को छोड़ता हुआ पृथ्वीकायिकों यावत् सकायिकों के रूप में उत्पन्न होता है। इसी प्रकार अप्कायिक से त्रसकायिक पर्यन्त छ गति और छ आगति वाले हैं। पृथ्वीकायिक जीवों की नौ गति और नौ आगति कही गई है, यथापृथ्वीकाय में उत्पन्न होने वाला पृथ्वीकायिक जीव पृथ्वीकायिक यावत् पंचेन्द्रियों से उत्पन्न होता है। वही जीव पृथ्वीकायिक पृथ्वीकायिकल्प को छोड़कर पृथ्वीकाय के रूप में यावत् पंचेन्द्रिय के रूप में जाता है। इसी प्रकार अप्कायिक से पंचेन्द्रिय पर्यन्त जीवों की नौ गति और नौ आगति जाननी चाहिए।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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