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________________ दुक्कंति अध्ययन बायर उक्काइया वि एवं चेव । - जीवा. पडि. १, सु. २४-२५ सुहुम-वाउक्काइया, बायर-वाउक्काइया वि एवं चेव । - जीवा. पडि. १, सु. २६ बेदिया-दुगइया, दुआगइया, तेइंदिया चउरिंदिया वि एवं चेव । - जीवा. पडि. १, सु. २८-३० समुच्छिम पंचेदिय-तिरिक्खजोणिया जलयरा चउगइया दुआगइया । समुच्छिम थलयरा चउप्पया भुयग-परिसप्पा खपरा एवं चैव। उरगपरिसप्पा, - जीवा. पडि. १, सु. ३५-३६ जलयरा गब्भवक्कंतिय-पंचेंदियतिरिक्खजोणिया चउगइया चउआगइया, गव्भवक्कंतिय-धलयरा, भुजगपरिसप्पा, खहयरा एवं चैव । (३) मणुयगइ चउप्पया उरगपरिसप्पा, - जीवा. पडि. १, सु. ३८-४० संमुच्छिम मणुस्सा दुगइया, दुआगइया, गमवक्कतिय-मणुस्सा पंचगड्या, चउआगइया - जीवा. पडि. १, सु. ४१ (४) देवगइ देवा दुगइया, दुआगइया। ४. ठाणंगानुसारेण चउगइसु जीवेसु गइ-आगइ परूवणं - जीवा. पडि. १, सु. ४२ नेरइया दुगइया दुआगइया पण्णत्ता, तं जहा १. नेरइए नेरइएसु उववज्जमाणे मणुस्सेहिंतो वा पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिएहिंतो वा उववज्जेज्जा, से चेवणं से नेरइए णेरइयत्तं विप्पज्जहमाणे मणुस्सत्ताए वा पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियत्ताए वा गच्छेजा। एवं असुरकुमारा वि वरं - से चेव असुरकुमारे असुरकुमारत्तं विप्पजहमाणे मनुस्सत्ताए या तिरिक्खजोणिवत्ताए वा गच्छेज्जा । एवं सव्वदेवा । -ठाणं. अ. २, उ. २, सु. ६८ पुढविकाइया दुगइया दुआगइया पण्णत्ता, तं जहापुढविकाइए पुढविकाइएसु उववज्जमाणे पुढविकाइएहिंतो वा णो पुढविकाइएहिंतो वा उववज्जेज्जा, से चेवणं से पुढविकाइए पुढविकाइयत्तं विप्पजहमाणे पुढविकाइयत्ताए वा णो पुढविकाइयत्ताए वा गच्छेज्जा । एवं जाय मणुस्सा। -ठाणं. अ. २, उ. २, सु. ६८ पंचेंद्रिय तिरिक्खजोणिया चउगइया बउआगइया पण्णत्ता, तं जहापंचेदियतिरिक्खजोणिए उचचज्जमाणे पंचेंदियतिरिक्खजोणिएसु १४३७ बादर तेजस्कायिक जीवों की गति आगति इसी प्रकार है। सूक्ष्म वायुकाधिक एवं बादर बायुकाधिक की गति आगति भी इसी प्रकार है। द्वीन्द्रिय जीव दो गति से आते हैं और दो गति में जाते हैं। त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रियों की गति आगति भी इसी प्रकार है। सम्मूर्च्छिम पंचेंद्रिय तिर्यञ्चयोनिक जलचर दो गति (मनुष्य- तिर्यञ्च) से आते हैं और चार गति (नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य एवं देव) में जाते हैं। सम्मूर्च्छिम स्थलचर चतुष्पद उरपरिसर्प, भुजग परिसर्प और खेचरों की गति आगति भी इसी प्रकार है। गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जलचर चार गति से आते हैं और चार गति में जाते हैं।. गर्मज स्थलचर चतुष्पद उरपरिसर्प भुजगपरिसर्प और खेचरों की गति आगति भी इसी प्रकार है। (३) मनुष्यगति सम्मूर्च्छिम मनुष्य दो गति से आते हैं दो गतियों में जाते हैं। गर्भज मनुष्य चार गति से आते हैं पांच गतियों में जाते हैं। (४) देवगति देव दो गति से आते हैं और दो गति में जाते हैं। ४. स्थानांग के अनुसार चार्तुगतिक जीवों की गति आगति का प्ररूपण नैरयिक जीवों की दो गति और दो आगति कही गई है. यथा १. नरक में उत्पन्न होने वाले नैरयिक, मनुष्य या पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनि से आकर उत्पन्न होते हैं। वे ही नैरधिक नारक अवस्था को छोड़कर मनुष्य या पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनि में जाते हैं। इसी प्रकार असुरकुमारों के लिए भी जानना चाहिए। विशेष- वे ही असुरकुमारदेव असुरकुमारत्व को छोड़कर मनुष्य या पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनि में आकर उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार सब देवों के लिए समझना चाहिए। पृथ्वीकायिक जीवों की दो गति और दो आगति कही गई है, यथापृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने वाले जीव पृथ्वीकायिक से या पृथ्वीकायिक से भिन्न जीवों से उत्पन्न नहीं होते हैं। वेही पृथ्वीकायिक जीव पृथ्वीकायिकत्व को छोड़कर पृथ्वीकायिक या नो पृथ्वीकायिक में जाते हैं। इसी प्रकार मनुष्य पर्यन्त दो गति और दो आगति कही गई है। पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों की चार स्थानों में गति और चार स्थानों में आगति कही गई है, यथा पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकजीव पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनि में उत्पन्न होता हुआ
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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