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________________ १४३६ द्रव्यानुयोग-(२) ३८. वुक्कंति-अज्झयणं ३८. व्युत्क्रान्ति-अध्ययन सूत्र सूत्र १. उप्पायाई विवक्खया एगत्त परूवणंएगा उप्पा,एगा वियई। -ठाणं.अ.१,सु.१४-१५ एगा गइ,एगा आगइ, एगे चयणे,एगे उववाए। -ठाणं.अ.१.सु.१७-१८ २. उववायाई पदाणं सामित्त परूवणं दोण्हं उववाए पण्णत्ते,तं जहा१. देवाणं चेव, २. नेरइयाणं चेव। दोण्हं उववट्टणं पण्णत्ता,तं जहा१. जेरइयाणं चेव, २. भवणवासीणं चेव। दोण्हं चयणे पण्णत्ते,तं जहा१. जोइसियाणं चेव, २. वेमाणियाणं चेव। -ठाणं.अ.२, उ.३,सु.७९ ३. संसार समावन्नगजीवाणं गइ-आगइ परवणं(१) णिरयगइप. णेरइयाणं भंते ! जीवा कइ गइया, कइ आगइया? १. उत्पाद आदि की विवक्षा से एकत्व का प्ररूपण उत्पत्ति एक है, विगति (विनाश) एक है। गति एक है, आगति एक है, च्यवन एक है, उपपात एक है। २. उत्पाद आदि पदों के स्वामित्व का प्ररूपण दो का उपपात कहा गया है, यथा१. देवताओं का, २. नैरयिकों का, दो का उद्वर्तन कहा गया है, यथा१. नैरयिकों का, २. भवनवासी देवताओं का, दो का च्यवन कहा गया है, यथा१. ज्योतिष्क देवों का, २. वैमानिक देवों का, उ. गोयमा ! दुगइया, दुआगइया। -जीवा पडि. १, सु.३२ (२) तिरियगइप. सुहुमपुढविकाइया णं भंते ! जीवा कइ गइया, कइ आगइया? उ. गोयमा ! दुगइया, दुआगइया, -जीवा. पडि.१, सु.१३, (२३) प. बायर पुढविकाइया णं भंते ! जीवा कइ गइया, कइ आगइया? उ. गोयमा ! दुगइया, तिआगइया। -जीवा. पडि. १, सु.१५ ३. संसार समापन्नक जीवों की गति आगति का प्ररूपण(१) नरकगतिप्र. भंते ! नैरयिक जीव कितनी गति से आते हैं और कितनी गति में जाते हैं ? उ. गौतम ! दो गति (मनुष्य-तिर्यञ्च) से आते हैं और दो गति (मनुष्य-तिर्यञ्च) में जाते हैं। (२) तिर्यञ्चगतिप्र. भंते ! सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक जीव कितनी गति से आते हैं और कितनी गति में जाते हैं? उ. गौतम ! दो गति (मनुष्य-तिर्यञ्च) से आते हैं, और दो गति (मनुष्य-तिर्यञ्च) में जाते हैं। प्र. भंते ! बादर पृथ्वीकायिक जीव कितनी गति से आते हैं और कितनी गति में जाते हैं? उ. गौतम ! तीन गति (मनुष्य-तिर्यञ्च व देव) से आते हैं और दो गति (मनुष्य-तिर्यञ्च) में जाते हैं। सूक्ष्म अकायिक जीव सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों के समान दो गति से आते हैं और दो गति में जाते हैं। बादर अप्कायिक जीव बादर पृथ्वीकायिकों के समान तीन गति से आते हैं और दो गति में जाते हैं। सूक्ष्म वनस्पतिकायकि जीव सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों के समान दो गति से आते हैं और दो गति में जाते हैं। प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकायिक जीव बादर पृथ्वीकायिक के समान तीन गति से आते हैं और दो गति में जाते हैं। साधारण शरीर बादर वनस्पतिकायिक की गति आगति भी इसी प्रकार है। विशेष यह है कि ये दो गति से आते हैं। सुहुम आउकाइया दुगइया, दुआगइया जहा सुहुमपुढविकाइया। बायर आउकाइया दुगइया, तिआगइया जहा बायर पुढविकाइया। सुहुमवणस्सइकाइया दुगइया, दुआगइया जहा सुहमपुढविकाइया। -जीवा. पडि.१,सु.१६-१८ पत्तेय-सरीर-बायर-वणस्सइकाइया दुगइया, ति आगइया, जहा बायरपुढविकाइया, साहारणसरीर-बायर-वणस्सइकाइया वि एवं चेव। णवरं-दुआगइया। -जीवा. पडि.१, सु.२०-२१ सुहुमतेउकाइया एगगइया, दुआगइया। सूक्ष्म तेजस्कायिक जीव दो गति से आते हैं और एक गति में जाते हैं
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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