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________________ देव गति अध्ययन २. भयिदव्वदेवाइ पंचविहदेवाणं कायट्ठिई परूवणं प. भवियदव्वदेवे णं भंते ! भवियदव्वदेवे त्ति कालओ केवचिर होड ? उ. गोयमा ! जहणं अतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिष्णि पलिओवमाई । एवं जच्चेव ठिई' सच्चेव संचिट्ठणा वि जाव भावदेवस्स । , णवरं-धम्मदेवस्स जहन्नेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी | - विया. स. १२, उ. ९, सु. २६ ३. भवियदव्यदेवाह पंचविहदेवाणं अंतरं परूवर्ण प. १. भवियदव्वदेवस्स णं भंते! केवइयं कालं अंतरं होइ ? उ. गोयमा ! जहन्त्रेण दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं अणतं कालं वणरसइकालो । प. २. नरदेवाणं भंते ! केवइयं कालं अंतरं होइ ? उ. गोयमा ! जहन्त्रेण साइरेगं सागरोवमं, उक्कोसेणं अणतं कालं अवड्ढ पोग्गलपरियहं देखूणं । प. ३. धम्मदेवस्स णं भंते! केवइयं कालं अंतर होड ? उ. गोयमा ! जहन्त्रेण पलिओयमपुहतं, उक्कोसेणं अनंतकालं जाय अवढं पोम्गलपरिय देसूणं । प. ४. देवाहिदेवाणं भंते! केवइयं कालं अंतर होड़? उ. गोयमा ! नत्थि अंतरं । प. उ. गोयमा ! जहन्त्रेणं अंतोमुहुत्तं, ५. भावदेवस्स णं भंते! केवइयं कालं अंतरं होइ ? उक्को सेणं अनंत कालं वणस्सइकालो । - विया. स. १२, उ. ९, सु. २७-३१ ४. भवियदव्य-देवाइ पंचविहदेवाणं अप्पाबहुयं प. एएसि णं भंते । भवियदव्यदेवाणं जाय भावदेवाण य कघरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाय विसेसाहिया था ? उ. गोधमा १ सव्वत्थोवा नरदेवा, २. देवाहिदेवा संखेज्जगुणा, ३. धम्मदेवा संखेज्जगुणा, ४. भवियदव्वदेवा असंखेज्जगुणा, ५. भावदेवा असंखेज्जगुणा । प. एएसि णं भंते! भावदेवाणं भवनवासीणं, वाणमंतराणं, जोइसियाणं वेमाणियाणं, सोहम्मगाणं जाव अच्चुयगाणं, गेवेज्जगाणं, अणुत्तरोववाइयाण व कपरे कपरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा ? उ. गोयमा ! १. सव्यत्योवा अणुत्तरोववाइया भावदेवा, २. उवरिमगेवेज्जा भावदेवा संखेज्जगुणा, १. स्थिति अध्ययन में देखें। १३८७ २. भव्यद्रव्य देवादि पांच प्रकार के देवों की कायस्थिति का प्ररूपण प्र. भंते ! भव्यद्रव्यदेव, भव्यद्रव्यदेव के रूप में कितने काल तक रहता है ? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम तक रहता है। ३. भव्यद्रव्यदेवादि पांच प्रकार के देवों के अंतरकाल का प्ररूपणप्र. १. भंते ! भव्यद्रव्यदेव का अन्तर कितने काल का होता है ? उ. गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष, उत्कृष्ट अनन्तकाल वनस्पतिकाल का होता है। २. भंते! नरदेवों का अंतर कितने काल का होता है? प्र. उ. इसी प्रकार भावदेव पर्यन्त जिसकी जो भव स्थिति कही है वही उसकी (संचिणा) कायस्थिति कहनी चाहिए। विशेष धर्म देव की (संस्थिति) जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि वर्ष की है। प्र. उ. ३. भंते ! धर्मदेव का अन्तर कितने काल का होता है ? गौतम! जधन्य पत्योपम पृथक्त्व, उत्कृष्ट अनन्तकाल यावत् देशोन अपार्द्ध पुद्गल परावर्त काल जितना होता है। ४. भंते! देवाधिदेवों का अन्तर कितने काल का होता है ? गौतम ! देवाधिदेवों का अन्तर नहीं होता है। प्र. ५. भंते ! भावदेव का अन्तर कितने काल का होता है ? उ. गौतम | जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट अनन्तकाल वनस्पतिकाल जितना होता है। प्र. उ. गौतम ! जघन्य साधिक सागरोपम, उत्कृष्ट अनंतकाल देशोन अपार्द्ध पुद्गल परावर्त्त काल जितना होता है। ४. भव्यद्रव्यदेवादि पंचविध देवों का अल्पबहुत्व प्र. भंते ! इन भव्यद्रव्यदेवों यावत् भावदेवों में से कौन किन (देवों) से अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? उ. गौतम ! १. सबसे अल्प नरदेव हैं, २. ( उनसे ) देवाधिदेव संख्यातगुणे हैं, ३. ( उनसे ) धर्मदेव संख्यातगुणे हैं. ४. ( उनसे) भव्यद्रव्यदेव असंख्यातगुणे हैं, ५. ( उनसे) भावदेव असंख्यातगुणे हैं ? प्र. भंते! इन भाव देवों में भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक तथा वैमानिकों में सौधर्म से अच्युत तथा ग्रैवेयक एवं अनुत्तरोपपातिक पर्यन्त के देवों में कौन किन से अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? उ. गौतम १. सबसे अल्प अनुत्तरोपपातिक भावदेव हैं, २. ( उनसे) उपरिम वैवेयक भावदेव संख्यातगुणे हैं,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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