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________________ मनुष्य गति अध्ययन ३. जीमूए णं महामेहे एगेणं वासेणं दसवासाई भावेइ। ४. जिम्मे णं महामेहे बहूहिं वासेहिं एगं वासं भावेइ वा ण वा भावे | - ठाणं. अ. ४, उ. ४, सु. ३४७ 7 ८५. मेह दिट्ठतेण पुरिसाणं चउभंग परूवणं(१) चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा१. गज्जित्ता णाममेगे, णो वासित्ता, २. वासित्ता णाममेगे, णो गज्जित्ता, ३. एगे गज्जित्ता वि, वासित्ता वि, ४. एगे णो गज्जित्ता, णो वासित्ता । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा१. गज्जित्ता णाममेगे, णो वासित्ता, २. वासित्ता णाममेगे, णो गज्जित्ता, ३. एगे गज्जित्ता वि, वासित्ता वि, ४. एमे णो गज्जित्ता, णो वासित्ता । (२) चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा १. गज्जित्ता णाममेगे, णो विजुधाइत्ता, २. विज्जुयाइत्ता णाममेगे, णो गज्जित्ता, ३. एगे गज्जित्ता वि, विज्जुपाइता वि ४. एगे णो गज्जित्ता, णो विज्जुयाइत्ता । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा१. गज्जित्ता णाममेगे, णो विज्जुयाइत्ता, २. विज्जुयाइत्ता णाममेगे, णो गज्जित्ता, ३. एगे गज्जित्ता वि, विज्जुयाइत्ता वि ४. एगे णो गज्जित्ता, णो विज्जुयाइत्ता । (३) चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा१. वासित्ता णाममेगे, णो विज्जुयाइत्ता, २. विज्जुयाइत्ता णाममेगे, णो वासित्ता, ३. एगे वासित्ता वि, विजुयाइता वि ४. एगे णो वासित्ता, णो विज्जुयाइत्ता । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा१. वासिता णाममेगे, णो विज्जुवाइत्ता, १३६३ ३. जीमूत महामेघ एक बार बरसकर दस वर्ष तक पृथ्वी को स्निग्ध कर देता है, ४. जिम्ह महामेघ अनेक बार बरस कर एक वर्ष तक पृथ्वी को स्निग्ध करता है और नहीं भी करता है। ८५. मेघ के दृष्टांत द्वारा पुरुषों के चतुर्थंगों का प्ररूपण (१) मेघ चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ मेघ गरजने वाले होते हैं, बरसने वाले नहीं होते, २. कुछ मेघ बरसने वाले होते हैं, गरजने वाले नहीं होते, ३. कुछ मेघ गरजने वाले भी होते हैं और बरसने वाले होते हैं. ४. कुछ मेघ न गरजने वाले होते हैं और न बरसने वाले होते । इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ पुरुष गरजने वाले होते हैं, किन्तु बरसने (कार्य करने) वाले नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष बरसने वाले होते हैं, किन्तु गरजने वाले नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष गरजने वाले भी होते हैं और बरसने वाले भी होते हैं, ४. कुछ पुरुष न गरजने वाले होते हैं और न बरसने वाले होते हैं। (२) मेघ चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ मेघ गरजने वाले होते हैं, चमकने वाले नहीं होते हैं, २. कुछ मेघ चमकने वाले होते हैं, किन्तु गरजने वाले नहीं होते हैं, ३. कुछ मेघ गरजने वाले भी होते हैं और चमकने वाले भी होते हैं, ४. कुछ मेघ न गरजने वाले होते हैं और न चमकने वाले होते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ पुरुष गरजने (देने आदि की प्रतिज्ञा करने) वाले होते हैं। किन्तु चमकने (प्रदर्शन करने वाले नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष चमकने वाले होते हैं किन्तु गरजने वाले नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष गरजने वाले भी होते हैं और चमकने वाले भी होते हैं, ४. कुछ पुरुष न गरजने वाले होते हैं और न चमकने वाले होते हैं। (३) मेघ चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा 9. कुछ मेघ बरसने वाले होते हैं, चमकने वाले नहीं होते, २. कुछ मेघ चमकने वाले होते हैं, बरसने वाले नहीं होते, ३. कुछ मेघ बरसने वाले भी होते हैं और चमकने वाले भी होते हैं, ४. कुछ मेघ न बरसने वाले होते हैं और न चमकने वाले होते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, यथा १. कुछ पुरुष बरसने (दान देने वाले होते हैं, किन्तु चमकने (प्रदर्शन करने वाले नहीं होते हैं,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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