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________________ १३६४ २. विज्जुयाइत्ता णाममेगे, णो वासित्ता, ३. एगे वासित्ता वि, विज्जुयाइत्ता वि, ४. एगे णो वासित्ता, णो विज्जुयाइत्ता । (४) चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा १. कालवासी णाममेगे, णो अकालवासी २. अकालवासी णाममेगे, णी कालवासी, ३. एगे कालवासी वि, अकालवासी वि, ४. एगे णो कालवासी णो अकालवासी " एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा१. कालवासी णाममेगे, णो अकालवासी, २. अकालवासी णाममेगे, णो कालवासी, ३. एगे कालवासी वि, अकालवासी वि, ४. एगे णो कालवासी, णो अकालवासी । (५) चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा १. खेत्तवासी णाममेगे, णो अखेत्तवासी, २. अखेत्तवासी णाममेगे, णो खेत्तवासी, ३. एगे खेत्तवासी वि, अखेत्तवासी वि, ४. एगे णो खेत्तवासी, णो अखेत्तवासी । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा१. खेत्तवासी णाममेगे, णो अखेत्तवासी, २. अखेत्तवासी णाममेगे, णो खेत्तवासी, ३. एगे खेत्तवासी वि अखेत्तवासी वि ४. एगे णो खेत्तवासी णो अखेत्तवासी। 7 - ठाणं. अ. ४, उ. ४, सु. ३४६ द्रव्यानुयोग - (२) २. कुछ पुरुष चमकने वाले होते हैं, किन्तु बरसने वाले नहीं होते, ३. कुछ पुरुष बरसने वाले भी होते हैं और चमकने वाले भी होते हैं, ४. कुछ पुरुष न बरसने वाले होते हैं और न चमकने वाले होते हैं। (४) मेघ चार प्रकर के कहे गए हैं, यथा १. कुछ मेघ समय (काल) पर बरसने वाले होते हैं, असमय (अकाल) में बरसने वाले नहीं होते हैं, २. कुछ मेघ असमय में बरसने वाले होते हैं, समय पर बरसने वाले नहीं होते हैं, ३. कुछ मेघ समय पर भी बरसने वाले होते हैं और असमय में भी बरसने वाले होते हैं, ४. कुछ मेघ न समय पर बरसने वाले होते हैं और न असमय में बरसने वाले होते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए है, यथा १. कुछ पुरुष समय पर बरसने (अवसर में दान देने) वाले होते हैं, असमय में बरसने वाले (बिना अवसर दान देने वाले) नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष असमय में बरसने वाले होते हैं, समय पर बरसने वाले नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष समय पर भी बरसने वाले होते हैं और असमय में भी बरसने वाले होते हैं, ४. कुछ पुरुष न समय पर बरसने वाले होते हैं और न असमय में बरसने वाले होते हैं। मेघ चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ मेघ क्षेत्र (उपजाऊ भूमि) पर बरसने वाले होते हैं, ऊसर भूमि में बरसने वाले नहीं होते हैं, २. कुछ मेघ ऊसर भूमि में बरसने वाले होते हैं, उपजाऊ भूमि पर बरसने वाले नहीं होते हैं, ३. कुछ मेघ उपजाऊ भूमि पर भी बरसने वाले होते हैं और ऊसर भूमि पर भी बरसने वाले होते हैं, ४. कुछ मेघ न उपजाऊ भूमि पर बरसने वाले होते हैं और न ऊसर भूमि पर बरसने वाले होते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ पुरुष उपजाऊ भूमि पर बरसने (पात्र को दान देने) वाले होते हैं, ऊसर में बरसने (अपात्र को दान देने) वाले नहीं होते हैं. २. कुछ पुरुष अपात्र को दान देने वाले होते हैं, पात्र को दान देने वाले नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष पात्र को दान देने वाले भी होते हैं और अपात्र को दान देने वाले भी होते हैं, ४. कुछ पुरुष न पात्र को दान देने वाले होते हैं और न अपात्र को दान देने वाले होते हैं।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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