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________________ मनुष्य गति अध्ययन एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. आमे णाममेगे आममहुरफलसमाणे, २. आमे णाममेगे पक्कमहुरफलसमाणे, ३. पक्के णाममेगे आममहुरफलसमाणे, ४. पक्के णाममेगे पक्कमहुरफलसमाणे। -ठाणं. अ.४, उ.१,सु.२५३ ६०. उत्ताण गंभीरोदए दिद्रुतेण पुरिसाणं चउभंग परूवणं (१) चत्तारि उदगा पण्णत्ता,तं जहा१. उत्ताणे णाममेगे उत्ताणोदए, २. उत्ताणे णाममेगे गंभीरोदए, ३. गंभीरे णाममेगे उत्ताणोदए, ४. गंभीरे णाममेगे गंभीरोदए। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. उत्ताणे णाममेगे उत्ताणहियए, [ १३४१ । इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष वय और श्रुत से अपक्व होते हैं और अपक्व मधुर फल के समान अल्प उपशम वाले होते हैं, २. कुछ पुरुष वय और श्रुत से अपक्व होते हैं और पक्व मधुर फल के समान प्रबल उपशम वाले होते हैं. ३. कुछ पुरुष वय और श्रुत से पक्व होते हैं और अपक्व मधुर फल के समान अल्प उपशम वाले होते हैं, ४. कुछ पुरुष वय और श्रुत से पक्व होते हैं और पक्व मधुर फल के समान प्रबल उपशम वाले होते हैं। ६०. उत्तान और गंभीर उदक के दृष्टांत द्वारा पुरुषों के चतुर्भगों का प्ररूपण(१) उदक चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. एक उदग (जल) प्रतल (छिछला) भी होता है और स्वच्छ होने के कारण उसका तल भी दीखता है, २. एक जल छिछला होता है परन्तु स्वच्छ नहीं होने के कारण उसका तल भाग नहीं दीखता है, ३. एक जल गंभीर होता है परन्तु स्वच्छ होने के कारण उसका तल भाग दीखता है, ४. एक जल गंभीर होता है परन्तु स्वच्छ नहीं होने के कारण उसका तल भाग नहीं दीखता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष आकृति से भी गंभीर नहीं होते हैं और हृदय से भी गंभीर नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष आकृति से गंभीर नहीं होते हैं किन्तु हृदय से गंभीर होते हैं, ३. कुछ पुरुष आकृति से गंभीर होते हैं किन्तु हृदय से गंभीर नहीं होते हैं, ४. कुछ पुरुष आकृति से भी गंभीर होते हैं और हृदय से भी गंभीर होते हैं। (२) उदक चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. एक उदक (जल) छिछला है और छिछला ही दिखाई देता है, २. एक उदक छिछला है परन्तु गंभीर दिखाई देता है, ३. एक उदक गंभीर है परन्तु छिछला दिखाई देता है, ४. एक उदक गंभीर है और गंभीर ही दिखाई देता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष तुच्छ होते हैं और तुच्छता का प्रदर्शन करते हैं, २. कुछ पुरुष तुच्छ होते हैं परन्तु गंभीरता का प्रदर्शन करते हैं, ३. कुछ पुरुष गंभीर होते हैं परन्तु तुच्छता का प्रदर्शन करते हैं, ४. कुछ पुरुष गंभीर होते हैं और गंभीरता का ही प्रदर्शन करते हैं। ६१. समुद्र के दृष्टांत द्वारा पुरुषों के चतुर्भगों का प्ररूपण(१) समुद्र चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. समुद्र के कुछ भाग पहले भी प्रतल (छिछले) होते हैं और बाद में भी छिछले हो जाते हैं, २. समुद्र के कुछ भाग पहले छिछले होते हैं और बाद में गंभीर हो जाते हैं, २. उत्ताणे णाममेगे गंभीरहियए, ३. गंभीरे णाममेगे उत्ताणहियए, ४. गंभीरे णाममेगे गंभीरहियए, (२) चत्तारि उदगा पण्णत्ता,तं जहा१. उत्ताणे णाममेगे उत्ताणोभासी, २. उत्ताणे णाममेगे गंभीरोभासी, ३. गंभीरे णाममेगे उत्ताणोभासी, ४. गंभीरे णाममेगे गंभीरोभासी, एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. उत्ताणे णाममेगे उत्ताणोभासी, २. उत्ताणे णाममेगे गंभीरोभासी, ३. गंभीरे णाममेगे उत्ताणोभासी, ४. गंभीरे णाममेगे गंभीरोभासी। -ठाण. अ.४, उ.४, सु.३५८ ६१. उदही दिळंतेण पुरिसाणं चउभंग परूवणं(१) चत्तारि उदही पण्णत्ता,तं जहा१. उत्ताणे णाममेगे उत्ताणोदही, २. उत्ताणे णाममेगे गंभीरोदही,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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