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________________ १३४२ ३. गंभीरे णाममेगे उत्ताणोदही, ४. गंभीरे णाममेगे गंभीरोदही। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. उत्ताणे णाममेगे उत्ताणहियए, २. उत्ताणे णाममेगे गंभीरहियए, ३. गंभीरे णाममेगे उत्ताणहियए, ४. गंभीरे णाममेगे गंभीरहियए। (२) चत्तारि उदही पण्णत्ता,तं जहा१. उत्ताणे णाममेगे उत्ताणोभासी, २. उत्ताणे णाममेगे गंभीरोभासी, ३. गंभीरेणाममेगे उत्ताणोभासी, ४. गंभीरे णाममेगे गंभीरोभासी, एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. उत्ताणे णाममेगे उत्ताणोभासी, २. उत्ताणे णाममेगे गंभीरोभासी, - द्रव्यानुयोग-(२)) ३. समुद्र के कुछ भाग पहले गंभीर होते हैं और बाद में छिछले हो जाते हैं, ४. समुद्र के कुछ भाग पहले भी गंभीर होते हैं और बाद में भी ___गंभीर हो जाते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष आचरण से भी तुच्छ होते हैं और हृदय से भी तुच्छ होते हैं, २. कुछ पुरुष आचरण से तुच्छ होते हैं परन्तु उनका हृदय गंभीर होता है, ३. कुछ पुरुष आचरण से गंभीर होते हैं परन्तु हृदय से तुच्छ होते हैं, ४. कुछ पुरुष आचरण से भी गंभीर होते हैं और उनका हृदय भी गंभीर होता है। (२) समुद्र चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. समुद्र के कुछ भाग छिछले होते हैं और छिछले ही दिखाई देते हैं, २. समुद्र के कुछ भाग छिछले होते हैं परन्तु गंभीर दिखाई देते हैं, ३. समुद्र के कुछ भाग गंभीर होते हैं परन्तु छिछले दिखाई देते हैं, ४. समुद्र के कुछ भाग गंभीर होते हैं और गंभीर ही दिखाई देते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष आचरण से हीन होते हैं और वैसे ही दिखाई देते हैं। २. कुछ पुरुष आचरण से हीन होते हैं परन्तु आचरण का प्रदर्शन करते हैं, ३. कुछ पुरुष आचरण युक्त होते हैं परन्तु आचरण हीन दिखाई देते हैं, ४. कुछ पुरुष आचरण युक्त होते हैं और आचरण युक्त ही दिखाई देते हैं। ६२. शंख के दृष्टांत द्वारा पुरुषों के चतुर्भगों का प्ररूपण(१) शंख चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ शंख वाम होते हैं (टेढ़े) और वामावर्त (बाई और घुमाव वाले) होते हैं, २. कुछ शंख वाम होते हैं और दक्षिणावर्त (दाईं ओर घुमाव वाले) होते हैं, ३. कुछ शंख दक्षिण होते हैं (सीधे) और वामावर्त होते हैं, ४. कुछ शंख दक्षिण होते हैं और दक्षिणावर्त होते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष वाम और वामावर्त होते हैं, वे स्वभाव से भी वक्र . होते हैं और प्रवृत्ति से भी वक्र होते हैं, २. कुछ पुरुष वाम और दक्षिणावर्त होते हैं, वे स्वभाव से वक्र होते हैं किन्तु कारणवश प्रवृत्ति में सरल होते हैं, ३. कुछ पुरुष दक्षिण और वामावर्त होते हैं, वे स्वभाव से सरल होते हैं किन्तु कारणवश प्रवृत्ति में वक्र होते हैं। ४. कुछ पुरुष दक्षिण और दक्षिणावर्त होते हैं, वे स्वभाव से भी सरल होते हैं और प्रवृत्ति से भी सरल होते हैं। ३. गंभीरे णाममेगे उत्ताणोभासी, ४. गंभीरे णाममेगे गंभीरोभासी। -ठाणं. अ.४, उ.४, सु.३५८ ६२. संख दिळेंतेण पुरिसाणं चउभंग परूवणं(१) चत्तारि संवुक्का पण्णत्ता,तं जहा१. वामे णाममेगे वामावत्ते, २. वामेणाममेगे दाहिणावत्ते, ३. दाहिणे णाममेगे वामावत्ते, ४. दाहिणे णाममेगे दाहिणावत्ते। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. वामे णाममेगे वामावत्ते, २. वामे णाममेगे दाहिणावत्ते, ३. दाहिणे णाममेगे वामावत्ते, ४. दाहिणे णाममेगे दाहिणावत्ते। -ठाणं.अ.४, उ.२.सु.२८९
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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