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________________ १३४० ३. खुरपत्ते, ४. कलंबचीरियापत्ते, एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा १. असिपत्तसमाणे, २. करपत्तसमाणे, ३. खुरपत्तसमाणे, ४. कलंबचीरियापत्तसमाणे । - ठाणं. अ. ४, उ. ४, सु. ३५० ५७. कोरव विट्ठतेण पुरिसाणं चउभंग परूवणं (१) चत्तारि कोरवा पण्णत्ता, तं जहा १. अंबपलंबकोरचे, ३. वल्लिपलंबकोरवे, एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा १. अंबपलंचकोरवसमाणे, २. तालपलंबकौरवसमाणे, ३. वल्लिपलंबकोरवसमाणे, ४. मेंढविसाणकोरवसमाणे । २. तालपलंबकोरवे, ४. मेंढविसाणकोरवे । - ठाणं. अ. ४, उ. १, सु. २४२ ५८. पुण्फ दिट्ठतेण पुरिसाणं रूव सील संपन्नस्स चउमंग परूवणं (१) चत्तारि पुष्का पण्णत्ता, तं जहा१. रूवसंपण्णे णाममेगे, णो गंधसंपण्णे, २. गंधसंपण्णे णाममेगे, णो रूवसंपण्णे, ३. एगे रूवसंपण्णे वि. गंधसंपणे वि ४. एगे णो रूवसंपण्णे णो गंधसंपण्णे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा १. रूपसंपणे णाममेगे, जो सीलसंपणे, २. सीलसंपन्ने नाममेगे, णो रूवसंपण्णे, ३. एगे रूपसंपणे वि सीलसपणे वि ४. एगे णो रूवसंपण्णे, णो सीलसंपण्णे - ठाणं अ. ४, उ. ३, सु. ३१९ ५९. पक्क आम फल दिट्ठतेण पुरिसाणं चउमंग परूवणं २. आमे णाममेगे पक्कमहुरे, ३. पक्के णाममेगे आममहुरे, ४. पक्के णाममेगे पक्कमहुरे । (१) चत्तारि फला पण्णत्ता, तं जहा१. आमे णाममेगे आममहुरे, द्रव्यानुयोग - (२) ३. सुरपत्र-सुरे जैसा पत्र, ४. कदम्बचीरिकापत्र - तीखी नोक वाला घास या शस्त्र जैसा पत्र । इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. असिपत्र के समान तुरन्त स्नेहपाश को छेद देने वाला, २. करपत्र के समान बार-बार के अभ्यास से स्नेह पाश को छेदने वाला, ३. क्षुरपत्र के समान थोड़े स्नेह पाश को छेदने वाला, ४. कदम्ब चीरिका पत्र के समान स्नेह छेदने की इच्छा रखने वाला । ५७. कोरक के दृष्टांत द्वारा पुरुषों के चतुर्भगों का प्ररूपण(१) कोरक (कली मंजरी) चार प्रकार की कही गई है, यथा २. ताड़ फल की मंजरी, १. आम्र फल की मंजरी, ३. बल्लि फल की मंजरी, मेष-शृंग की मंजरी । इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा ४. १. कुछ पुरुष आम्र फल की मंजरी के समान होते हैं, जो उचित समय पर उपकार करते हैं, २. कुछ पुरुष ताड़ फल की मंजरी के समान होते हैं, जो विलंब और कठिनता से उपकार करते हैं, ३. कुछ पुरुष बल्लि - फल की मंजरी के समान होते हैं, जो बिना विलंब और बिना कष्ट के उपकार करते हैं, ४. कुछ पुरुष मेष-शृंग की मंजरी के समान होते हैं जो उपकार नहीं करते हैं सिर्फ मीठे वचन बोलते हैं। ५८. पुष्प के दृष्टांत द्वारा पुरुषों के रूप शील संपन्नत्ता के चतुर्भगों का प्ररूपण - (१) पुष्प चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ पुष्प रूप सम्पन्न होते हैं, गन्ध सम्पन्न नहीं होते हैं, २. कुछ पुष्प गन्ध सम्पन्न होते हैं, रूप सम्पन्न नहीं होते हैं, ३. कुछ पुष्प रूप सम्पन्न भी होते हैं और गन्ध सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ पुष्प न रूप सम्पन्न होते हैं और न गन्ध सम्पन्न होते हैं। इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ पुरुष रूप सम्पन्न होते हैं, शील (आचार) सम्पन्न नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष शील सम्पन्न होते हैं, रूप सम्पन्न नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष रूप सम्पन्न भी होते हैं और शील सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ पुरुष न रूप सम्पन्न होते हैं और न शील सम्पन्न होते हैं। ५९. कच्चे पक्के फल के दृष्टांत द्वारा पुरुषों के चतुर्भंगों का प्ररूपण (१) फल चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ फल कच्चे होते हैं और कच्चे होने पर भी थोड़े मीठे होते हैं, २. कुछ फल कच्चे होने पर भी अत्यन्त मीठे होते हैं, ३. कुछ फल पक्के होने पर भी थोड़े मीठे होते हैं, ४. कुछ फल पक्के होने पर अत्यन्त मीठे होते हैं।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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