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________________ १३३६ (३) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. गणसंगहकरे णाममेगे,णो माणकरे, २. माणकरे णाममेगे,णो गणसंगहकरे, ३. एगे गणसंगहकरे वि, माणकरे वि, ४. एगे णो गणसंगहकरे, णो माणकरे। (४) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. गणसोभकरे णाममेगे, णो माणकरे, २. माणकरेणाममेगे,णो गणसोभकरे, ३. एगे गणसोभकरे वि,माणकरे वि, द्रव्यानुयोग-(२) (३) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष गण के लिए संग्रह करते हैं परन्तु अभिमान नहीं करते हैं, २. कुछ पुरुष अभिमान करते हैं परन्तु गण के लिए संग्रह नहीं करते हैं, ३. कुछ पुरुष गण के लिए संग्रह भी करते हैं और अभिमान भी करते हैं, ४. कुछ पुरुष न गण के लिए संग्रह करते हैं और न अभिमान करते हैं। (४) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष गण की शोभा करने वाले होते हैं परन्तु अभिमान नहीं करते हैं, २. कुछ पुरुष अभिमान करते हैं परन्तु गण की शोभा करने वाले नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष गण की शोभा भी करने वाले होते हैं और अभिमान भी करने वाले होते हैं, ४. कुछ पुरुष न गण की शोभा करने वाले होते हैं और न अभिमान करते हैं। (५) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष गण की शुद्धि करने वाले होते हैं परन्तु अभिमान नहीं करते हैं, २. कुछ पुरुष अभिमान करते हैं परन्तु गण की शुद्धि करने वाले नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष गण की शुद्धि करने वाले भी होते हैं और अभिमान भी करते हैं, ४. कुछ पुरुष न गण की शुद्धि करने वाले होते हैं और न अभिमान करते हैं। ४९. वैयावृत्य करने की विवक्षा से पुरुषों के चतुर्भगों का प्ररूपण(१) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष दूसरों की वैयावृत्य करते हैं, परन्तु कराते नहीं, २. कुछ पुरुष दूसरों की वैयावृत्य नहीं करते हैं, परन्तु कराते हैं, ३. कुछ पुरुष दूसरों की वैयावृत्य करते भी हैं और कराते भी हैं, ४. कुछ पुरुष न दूसरों की वैयावृत्य करते हैं और न कराते हैं। ४. एगे णो गणसोभकरे,णो माणकरे। (५) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. गणसोहिकरे णाममेगे,णो माणकरे, २. माणकरे णाममेगे,णो गणसोहिकरे, ३. एगे गणसोहिकरे वि, माणकरे वि, ४. एगे णो गणसोहिकरे,णो माणकरे। -ठाण. अ.४, उ.३,सु.३१९ ४९. वेयावच्च करण विवक्खया पुरिसाणं चउभंग परूवणं(१) चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा१. करेइ णाममेगे वेयावच्चं, णो पडिच्छइ, २. पडिच्छइणाममेगे वेयावच्चं,णो करेइ, ३. एगे करेइ विवेयावच्चं पडिच्छइ वि, ४. एगेणो करेइ वेयावच्चं,णो पडिच्छइ। -ठाणं.अ.४,उ.३.स.३१९ ५०. पुरिसाणं चउव्विहत्त परूवणं(१) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. तहे णाममेगे, २. नो तहे णाममेगे, ३. सोवत्थी णाममेगे, ४. पहाणे णाममेगे। -ठाणं. अ.४, उ.२, सु.२८७ ५१.वण दिद्रुतेण पुरिसाणं चउभंग परूवणं(१) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. वणकरे णाममेगे,णो वणपरिमासी, ५०. पुरुषों के चार प्रकारों का प्ररूपण(१) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. तथा-आदेश को मानकर चलने वाला, २. नो तथा अपनी स्वतंत्र भावना से चलने वाला, ३. सौवस्तिक-मंगल पाठक (स्तुति प्रशंसा करने वाला) ४. प्रधान-स्वामी (गुरु) ५१. व्रण दृष्टांत के द्वारा पुरुषों के चतुर्भगों का प्ररूपण(१) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष व्रण (घाव) करते हैं, किन्तु उसका परिमर्श (उपचार) नहीं करते हैं, १. वव. उ.१०,सु. ४-८
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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