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( मनुष्य गति अध्ययन ४. एगे णो अप्पणो वजं उवसामेइ, णो परस्स।
-ठाणं, अ.४, उ.१, सु.२५६ ४६. उदयत्यमिए विवक्खया पुरिसाणं चउव्विहत्त परूवणं(१) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. उदियोदिए णाममेगे भरहे राया चाउरंतचक्कवट्टी णं
उदियोदिए, २. उदियत्थमिए णाममेगे बंभदत्ते णं राया
चाउरंतचक्कवट्टी उदियत्थमिए, ३. अत्यमियोदिए णाममेगे हरिएसबले णं अणगारे
अत्यमियोदिए, ४. अत्थमियत्थमिए णाममेगे काले णं सोयरिए
अथमियत्थमिए। -ठाणं. अ.४, उ. ३, सु.३१५ ४७. आघवयक विवक्खया पुरिसाणं चउभंग परूवणं(१) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. आघवइत्ता णाममेगे,णो पविभावइत्ता,
२. पविभावइत्ता णाममेगे,णो आघवइत्ता, ३. एगे आघवइत्ता वि, पविभावइत्ता वि, ४. एगे णो आघवइत्ता,णो पविभावइत्ता, (२) चत्तारि पुरिसजाया पण्णता,तं जहा१. आघवइत्ता णाममेगे,णो उछजीविसंपण्णे,
१३३५ ४. कुछ पुरुष न अपने दोष का उपशमन करते हैं और न दूसरे
के दोष का उपशमन करते हैं। ४६. उदय-अस्त की विवक्षा से पुरुषों के चतुर्विधत्व का प्ररूपण(१) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष उदितोदित होते हैं जो प्रारम्भ में भी उन्नत और अंत
में भी उन्नत होते हैं, जैसे चतुरंत चक्रवर्ती भरत, २. कुछ पुरुष उदितास्तमित होते हैं जो प्रारम्भ में उन्नत और अंत
में अवनत होते हैं, जैसे चतुरंत चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त, ३. कुछ पुरुष अस्तमितोदित होते हैं जो प्रारम्भ में अवनत और
अंत में उन्नत होते हैं, जैसे-हरिकेशबल अनगार, ४. कुछ पुरुष अस्तमितास्तमित होते हैं-जो प्रारम्भ में भी अवनत
और अन्त में भी अवनत होते हैं, जैसे-काल शौकरिक कसाई। ४७. आख्यायक की विवक्षा से पुरुषों के चतुर्भगों का प्ररूपण(१) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष आख्यायक (व्याख्याता) होते हैं, किन्तु प्रविभावक
(प्रभावना करने वाले) नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष प्रविभावक होते हैं, किन्तु आख्यायक नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष आख्यायक भी होते हैं और प्रविभावक भी होते हैं, ४. कुछ पुरुष न आख्यायक होते हैं और न प्रविभावक होते हैं। (२) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१, कुछ पुरुष आख्यायक (व्याख्याता) होते हैं किन्तु उंछजीविका
(भिक्षा से जीवन निर्वाह करने वाले) नहीं होते, २. कुछ पुरुष उछजीविका सम्पन्न होते हैं किन्तु आख्यायक नहीं
होते, ३. कुछ पुरुष आख्यायक भी होते हैं और उंछजीविका सम्पन्न भी
होते हैं, ४. कुछ पुरुष न आख्यायक होते हैं और न उंछजीविका सम्पन्न
होते हैं। ४८. अर्थ और मानकरण की अपेक्षा पुरुषों के चतुर्भगों का
प्ररूपण(१) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष अर्थ (कार्य) करते हैं परन्तु अभिमान नहीं करते हैं, २. कुछ पुरुष अभिमान करते हैं परन्तु कार्य नहीं करते हैं, ३. कुछ पुरुष कार्य भी करते हैं और अभिमान भी करते हैं, ४. कुछ पुरुष न कार्य करते हैं और न अभिमान करते हैं। (२) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष गण के लिए कार्य करते हैं परन्तु अभिमान नहीं
करते हैं, २. कुछ पुरुष अभिमान करते हैं परन्तु गण के लिए कार्य नहीं
करते, ३. कुछ पुरुष गण के लिए कार्य भी करते हैं और अभिमान भी
करते हैं, ४. कुछ पुरुष न गण के लिए कार्य करते हैं और न अभिमान
करते हैं।
२. उंछजीविसंपण्णे णाममेगे,णो आघवइत्ता,
३. एगे आघवइत्ता वि, उंछजीविसंपण्णे वि,
४. एगे णो आघवइत्ता, णो उछजीविसंपण्णे।
-ठाणं, अ.४, उ.४, सु.३४४ ४८. अट्ठमाणकरण य पडुच्च पुरिसाणं चउभंग परूवणं
(१) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. अट्ठकरे णाममेगे,णो माणकरे, २. माणकरे णाममेगे, णो अट्ठकरे, ३. एगे अट्ठकरे वि, माणकरे वि, ४. एगे णो अट्ठकरे,णो माणकरे। (२) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. गणट्ठकरे णाममेगे, णो माणकरे,
२. माणकरे णाममेगे, णो गणट्ठकरे,
३. एगे गणट्ठकरे वि, माणकरे वि,
४. एगे णो गणट्ठकरे, णो माणकरे।