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३. दढे णाममेगे किसे, ४. दढे णाममेगे दढे।
(२) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तंजहा१. किसे णाममेगे किस सरीरे,
२. किसे णाममेगे दढसरीरे, ३. दढे णाममेगे किससरीरे, ४. दढे णाममेगे दढसरीरे।
(३) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. किससरीरस्स णाममेगस्स णाणदंसणे समुप्पज्जइ, णो
दढसरीरस्स, २. दढसरीरस्स णाममेगस्स णाणदंसणे समुप्पज्जइ, णो
किससरीरस्स, ३. एगस्स किससरीरस्स वि, णाणदंसणे समुप्पज्जइ,
दढसरीरस्स वि, ४. एगस्स णो किससरीरस्स णाणदंसणे समुप्पज्जइ, णो
दढसरीरस्स। __-ठाणं अ.४, उ.२, सु.२८३ ४५. वज्जपासण-उदीरण उवसामण विवक्खया पुरिसाणं चउभंग
परूवणं(१) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. अप्पणो णाममेगे वज्जं पासइ,णो परस्स,
द्रव्यानुयोग-(२) ३. कुछ पुरुष शरीर से दृढ़ होते हैं, किन्तु मनोबल से कृश होते हैं, ४. कुछ पुरुष शरीर से भी दृढ़ होते हैं और मनोबल से भी दृढ़
होते हैं। (२) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष भावना से भी कृश होते हैं और शरीर से भी कृश
होते हैं, २. कुछ पुरुष भावना से कृश होते हैं, किन्तु शरीर से दृढ़ होते हैं, ३. कुछ पुरुष भावना से दृढ़ होते हैं, किन्तु शरीर से कृश होते हैं, ४. कुछ पुरुष भावना से भी दृढ़ होते हैं और शरीर से भी दृढ़
होते हैं। (३) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कृश शरीर वाले पुरुष के ज्ञान-दर्शन उत्पन्न होते हैं, किन्तु दृढ़
शरीर वाले के उत्पन्न नहीं होते हैं, २. दृढ़ शरीर वाले पुरुष के ज्ञान-दर्शन उत्पन्न होते हैं, किन्तु
कृश शरीर वाले के उत्पन्न नहीं होते हैं, ३. कृश शरीर वाले पुरुष के भी ज्ञान-दर्शन उत्पन्न होते हैं और
दृढ़ शरीर वाले के भी उत्पन्न होते हैं, ४. कृश शरीर वाले पुरुष के भी ज्ञान-दर्शन उत्पन्न नहीं होते हैं
__ और दृढ़ शरीर वाले के भी उत्पन्न नहीं होते हैं। ४५. वर्ण्य के दर्शन उपशमन और उदीरण की विवक्षा से पुरुषों
के चतुर्भगों का प्ररूपण(१) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष अपना वर्ण्य (दोष) देखते हैं, दूसरे का दोष नहीं
देखते, २. कुछ पुरुष दूसरे का दोष देखते हैं, अपना दोष नहीं देखते, ३. कुछ पुरुष अपना भी दोष देखते हैं और दूसरे का भी दोष
देखते हैं, ४. कुछ पुरुष न अपना दोष देखते हैं और न दूसरे का दोष
देखते हैं। (२) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष अपने दोष की उदीरणा करते हैं, दूसरे के दोष की
उदीरणा नहीं करते, २. कुछ पुरुष दूसरे के दोष की उदीरणा करते हैं, किन्तु अपने
दोष की उदीरणा नहीं करते, ३. कुछ पुरुष अपने दोष की भी उदीरणा करते हैं और दूसरे के
दोष की भी उदीरणा करते हैं, ४. कुछ पुरुष न अपने दोष की उदीरणा करते हैं और न दूसरे
के दोष की उदीरणा करते हैं। (३) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा- . १. कुछ पुरुष अपने दोष का उपशमन करते हैं, किन्तु दूसरे के
दोष का उपशमन नहीं करते हैं, २. कुछ पुरुष दूसरे के दोष का उपशमन करते हैं, किन्तु अपने
दोष का उपशमन नहीं करते हैं, ३. कुछ पुरुष अपने दोष का भी उपशमन करते हैं और दूसरे के
दोष का भी उपशमन करते हैं,
२. परस्स णाममेगे वजं पासइ, णो अप्पणो, ३. एगे अप्पणो वि वज्ज पासइ, परस्स वि,
४. एगे णो अप्पणो वज्ज पासइ,णो परस्स।
(२) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. अप्पणो णाममेगे वज्ज उदीरेइ,णो परस्स,
२. परस्स णाममेगे वज्ज उदीरेइ, णो अप्पणो,
३. एगे अप्पणो वि वजं उदीरेइ, परस्स वि,
४. एगे णो अप्पणो वज्जं उदीरेइ, णो परस्स।
(३) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. अप्पणो णाममेगे वज्ज उवसामेइ, णो परस्स,
२. परस्स णाममेगे वजं उवसामेइ,णो अप्पणो,
३. एगे अप्पणो वि वज्जं उवसामेइ, परस्स वि,