SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 598
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( मनुष्य गति अध्ययन २. वणपरिमासी णाममेगे,णो वणकरे, ३. एगे वणकरे वि, वणपरिमासी वि, ४. एगेणो वणकरे,णो वणपरिमासी। (२) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. वणकरे णाममेगे,णो वणसारक्खी , २. वणसारक्खी णाममेगे,णो वणकरे, ३. एगे वणकरे वि, वणसारक्खी वि, ४. एगे णो वणकरे,णो वणसारक्खी , (३) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. वणकरे णाममेगे,णो वणसरोही, - १३३७ ) २. कुछ पुरुष व्रण का उपचार करते हैं, किन्तु व्रण नहीं करते हैं, ३. कुछ पुरुष व्रण भी करते हैं और उसका उपचार भी करते हैं, ४. कुछ पुरुष न व्रण करते हैं और न उसका उपचार करते हैं। (२) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष व्रण करते हैं, किन्तु उसका संरक्षण (देखभाल) नहीं करते, २. कुछ पुरुष व्रण का संरक्षण करते हैं किन्तु व्रण नहीं करते, ३. कुछ पुरुष व्रण भी करते हैं और उसका संरक्षण भी करते हैं, ४. कुछ पुरुष न व्रण करते हैं और न उसका संरक्षण करते हैं। (३) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष व्रण करते हैं किन्तु उसका संरोह नहीं करते अर्थात् उसे भरते नहीं, २. कुछ पुरुष व्रण का संरोह करते हैं किन्तु व्रण नहीं करते, ३. कुछ पुरुष व्रण भी करते हैं और उसका संरोह भी करते हैं, ४. कुछ पुरुष न व्रण करते हैं और न उसका संरोह करते हैं। २. वणसरोहीणाममेगे,णो वणकरे, ३. एगे वणकरे वि, वणसरोही वि, ४. एगे णो वणकरे, णो वणसरोही। -ठाणं.अ.४, उ.४, सु.३४३ ५२. वनसंड दिळेंतेण पुरिसाणं चउभंग परूवणं(१) चत्तारि वणसंडा पण्णता,तं जहा१. वामे णाममेगे वामावत्ते, २. वामे णाममेगे दाहिणावत्ते, ३. दाहिणे णाममेगे वामावत्ते, ४. दाहिणे णाममेगे दाहिणावत्ते। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. वामे णाममेगे वामावत्ते, २. वामे णाममेगे दाहिणावत्ते, ३. दाहिणे णाममेगे वामावत्ते, ४. दाहिणे णाममेगे दाहिणावत्ते। -ठाणं अ.४, उ. २, सु.२८९ ५३. उण्णय-पणय रुक्ख दिट्टतेण पुरिसाणं चउभंग परूवणं (१) चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता,तं जहा१. उण्णए णाममेगे उण्णए, ५२. वन खंड के दृष्टांत द्वारा पुरुषों के चतुर्भगों का प्ररूपण(१) वन खंड (उद्यान) चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ वन खण्ड वाम होते हैं और वामावर्त होते हैं, २. कुछ वन खण्ड वाम होते हैं और दक्षिणावर्त होते हैं, ३. कुछ वन खण्ड दक्षिण होते हैं और वामावर्त होते हैं, ४. कुछ वन खण्ड दक्षिण होते हैं और दक्षिणावर्त होते हैं। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष वाम होते हैं और वामावर्त होते हैं, २. कुछ पुरुष वाम होते हैं और दक्षिणावर्त होते हैं; ३. कुछ पुरुष दक्षिण होते हैं और वामावर्त होते हैं, ४. कुछ पुरुष दक्षिण होते हैं और दक्षिणावर्त होते हैं। ५३. उन्नत-प्रणत वृक्षों के दृष्टान्त द्वारा पुरुषों के चतुर्भगों का प्ररूपण(१) वृक्ष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ वृक्ष शरीर से भी उन्नत होते हैं और जाति से भी उन्नत होते हैं, जैसे-शाल, २. कुछ वृक्ष शरीर से उन्नत होते हैं किन्तु जाति से प्रणत (हीन) होते हैं, जैसे-नीम, ३. कुछ वृक्ष शरीर से प्रणत होते हैं किन्तु जाति से उन्नत होते हैं, जैसे-अशोक, ४. कुछ वृक्ष शरीर से भी प्रणत होते हैं और जाति से भी प्रणत होते हैं, जैसे-खैर। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष शरीर से भी उन्नत होते हैं और गुणों से भी उन्नत होते हैं, २. कुछ पुरुष शरीर से उन्नत होते हैं किन्तु गुणों से प्रणत होते हैं, ३. कुछ पुरुष शरीर से प्रणत होते हैं किन्तु गुणों से उन्नत होते हैं, २. उण्णए णाममेगे पणए, ३. पणए णाममेगे उण्णए, ४. पणए णाममेगे पणए। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. उण्णए णाममेगे उण्णए, २. उण्णए णाममेगे पणए, ३. पणए णाममेगे उण्णए,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy