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________________ १३२५ मनुष्य गति अध्ययन ३३. अप्पणो-परस्स अलमंथु विवक्खया पुरिसाणं चउभंग परूवणं(१) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. अप्पणो णाममेगे अलमंथू भवइ, पो परस्स, २. परस्स णाममेगे अलमंथू भवइ, णों अप्पणो, ३. एगे अप्पणो वि अलमंथू भवइ, परस्स वि, ४. एगे णो अप्पणो अलमंथू भवइ, णो परस्स। -ठाणं. अ.४, उ.२, सु. २८९ ३४. आय-पर अंतकाइ विवक्खया पुरिसाणं चउभंग परूवणं (१) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. आयंतकरणाममेगे, णो परंतकरे, २. परंतकरे णाममेग, णो आयंतकरे, ३. एगे आयंतकरे वि, परंतकरे वि, ४. एगे णो आयंतकरे, णो परंतकरे। (२) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. आयंतमे णाममेगे, णो परंतमे, ३३. स्व-पर का निग्रह करने की विवक्षा से पुरुषों के चतुर्भगों का प्ररूपण(१) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष अपना निग्रह करने में समर्थ होते हैं, किन्तु दूसरे का निग्रह करने में समर्थ नहीं होते, २. कुछ पुरुष दूसरे का निग्रह करने में समर्थ होते हैं, किन्तु अपना निग्रह करने में समर्थ नहीं होते, ३. कुछ पुरुष अपना भी निग्रह करने में समर्थ होते हैं और दूसरों का भी निग्रह करने में समर्थ होते हैं, ४. कुछ पुरुष न अपना निग्रह करने में समर्थ होते हैं और न दूसरों का निग्रह करने में समर्थ होते हैं। ३४. आत्म-पर के अंतकरादि की विवक्षा से पुरुषों के चतुर्भगों का प्ररूपण(१) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष अपने भव का अंत करते हैं, किन्तु दूसरे के भव का अंत नहीं करते हैं (जैसे-गजसुकुमाल) २. कुछ पुरुष दूसरे के भव का अंत करते हैं, किन्तु अपने भव का अंत नहीं करते हैं (जैसे-अचरम शरीरी आचार्य) ३. कुछ पुरुष अपने भव का भी अंत करते हैं और दूसरे के भव का भी अंत करते हैं। (जैसे-तीर्थंकर भगवंत) ४. कुछ पुरुष न अपने भव का अन्त करते हैं और न दूसरे के भव का अंत करते हैं। (जैसे-प्रभव स्वामी) (२) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष स्वयं को खेद-खिन्न करते हैं किन्तु दूसरे को खेद-खिन्न नहीं करते, । २. कुछ पुरुष दूसरे को खेद-खिन्न करते हैं, किन्तु स्वयं को खेद-खिन्न नहीं करते, ३. कुछ पुरुष स्वयं को भी खेद-खिन्न करते हैं और दूसरे को भी खेद-खिन्न करते हैं, ४. कुछ पुरुष न स्वयं को खेद-खिन्न करते हैं और न दूसरे को खेद-खिन्न करते हैं। (३) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष अपना दमन करते हैं, किन्तु दूसरे का दमन नहीं करते, २. कुछ पुरुष दूसरे का दमन करते हैं, किन्तु अपना दमन नहीं करते, ३. कुछ पुरुष अपना भी दमन करते हैं और दूसरे का भी दमन करते हैं, ४. कुछ पुरुष न अपना दमन करते हैं और न दूसरे का दमन करते हैं। ३५. आत्मभर परंभर की अपेक्षा से पुरुषों के चतुर्भगों का प्ररूपण(१) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष आत्मभर (अपना भरण पोषण करने वाले) होते हैं, किन्तु परंभर (दूसरों का भरण पोषण करने वाले) नहीं होते हैं, २. परंतमे णाममेगे, णो आयंतमे, ३. एगे आयंतमे वि, परंतमे वि, ४. एगे णो आयंतमे, णो परंतमे। (३) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. आयंदमेणाममेगे,णो परंदमे, २. परंदमे णाममेगे,णो आयंदमे, ३. एगे आयंदमे वि, परंदमे वि, ४. एगे णो आयंदमे, णो परंदमे। -ठाणं. अ. ४, उ. २, सु. २८७ ३५. आयंभर-परंभरं पडुच्च पुरिसाणं चउभंग परूवणं(१) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. आयंभरे णामेमेगे णो परंभरे,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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