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________________ ( १३२६ ) २. परंभरे णाममेगे,णो आयंभरे, ३. एगे आयंभरे वि, परंभरे वि, ४. एगे णो आयंभरे,णो परंभरे। -ठाणं. ४, उ. ३, सु. ३२७(१) ३६. इहत्यं परत्थं पडुच्च पुरिसाणं चउभंग परूवणं(१) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. इहत्थे णाममेगे,णो परत्थे, २. परत्ये णाममेगे,णो इहत्थे, द्रव्यानुयोग-(२) २. कुछ पुरुष परंभर होते हैं किन्तु आत्मभर नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष आत्मभर भी होते हैं और परंभर भी होते हैं, ४. कुछ पुरुष आत्मभर भी नहीं होते और परंभर भी नहीं होते। ३६. इहार्थ-परार्थ की अपेक्षा से पुरुषों के चतुभंगों का प्ररूपण(१) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष इहलौकिक प्रयोजन वाले होते हैं परन्त पारलौकिक प्रयोजन वाले नहीं होते, २. कुछ पुरुष पारलौकिक प्रयोजन वाले होते हैं परन्तु इहलौकिक प्रयोजन वाले नहीं होते, ३. कुछ पुरुष इहलौकिक प्रयोजन वाले भी होते हैं और पारलौकिक प्रयोजन वाले भी होते हैं, ४. कुछ पुरुष न इहलौकिक प्रयोजन वाले होते हैं और न पारलौकिक प्रयोजन वाले होते हैं। ३७. जाति-कुल-बल-रूप-श्रुत और शील की विवक्षा से पुरुषों के चतुर्भगों का प्ररूपण(१) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष जाति-सम्पन्न होते हैं, कुल-सम्पन्न नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष कुल-सम्पन्न होते हैं, जाति-सम्पन्न नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष जाति-सम्पन्न भी होते हैं और कुल-सम्पन्न भी ३. एगे इहत्थे वि, परत्थे वि, ४. एगे णो इहत्थे,णो परत्थे। -ठाणं. अ.४, उ. ३, सु. ३२७ ३७. जाइ-कुल-बल-रुव-सुय-सील विवक्खया पुरिसाणं चउभंग परूवणं(१) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. जातिसंपण्णे णाममेगे,णो कुलसंपण्णे, २. कुलसंपण्णे णाममेगे,णो जातिसंपन्ने, ३. एगे जातिसंपण्णे वि, कुलसंपण्णे वि, होते हैं, ४. एगेणो जातिसंपण्णे,णो कुलसंपण्णे। (२) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. जातिसंपण्णे णाममेगे,णो बलसंपण्णे, २. बलसंपण्णे णाममेगे, णो जातिसंपण्णे, ३. एगे जातिसंपण्णे वि, बलसंपण्णे वि, ४. एगे णो जातिसंपण्णे, णो बलसंपण्णे। (३) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. जातिसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, २. रूवसंपण्णे णाममेगे,णो जातिसंपण्णे, ३. एगे जातिसंपण्णे वि, रूवसंपण्णे वि, ४. एगे णो जातिसंपण्णे,णो रूवसंपण्णे। (४) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. जातिसंपण्णे णाममेगे,णो सुयसंपण्णे, २. सुयसंपण्णे णाममेगे, णो जातिसंपण्णे, ३. एगे जातिसंपण्णे वि, सुयसंपण्णे वि, ४. एगे णो जातिसंपण्णे,णो सुयसंपण्णे। (५) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. जातिसंपण्णे णाममेगे,णो सीलसंपण्णे, २. सीलसंपण्णे णाममेगे, णो जातिसंपण्णे, ३. एगे जातिसंपण्णे वि,सीलसंपण्णे वि, ४. कुछ पुरुष न जाति-सम्पन्न होते हैं और न कुल-सम्पन्न होते हैं। (२) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष जाति-सम्पन्न होते हैं, बल-सम्पन्न नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष बल-सम्पन्न होते हैं, जाति-सम्पन्न नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष जाति-सम्पन्न भी होते हैं और बल-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ पुरुष न जाति-सम्पन्न होते हैं और न बल-सम्पन्न होते हैं। (३) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष जाति-सम्पन्न होते हैं, रूप-सम्पन्न नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष रूप-सम्पन्न होते हैं, जाति-सम्पन्न नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष जाति-सम्पन्न भी होते हैं और रूप-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ पुरुष न जाति-सम्पन्न होते हैं और न रूप-सम्पन्न होते हैं। (४) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष जाति-सम्पन्न होते हैं, श्रुत-सम्पन्न नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष श्रुत-सम्पन्न होते हैं, जाति-सम्पन्न नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष जाति-सम्पन्न भी होते हैं और श्रुत-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ पुरुष न जाति-सम्पन्न होते हैं और न श्रुत-सम्पन्न होते हैं। (५) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष जाति-सम्पन्न होते हैं, शील-सम्पन्न नहीं होते हैं, २. कुछ पुरुष शील-सम्पन्न होते हैं, जाति-सम्पन्न नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष जाति-सम्पन्न भी होते हैं और शील-सम्पन्न भी होते हैं, ४. कुछ पुरुष न जाति-सम्पन्न होते हैं और न शील-सम्पन्न होते हैं। ४. एगेणो जातिसंपण्णे,णो सीलसंपण्णे।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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