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________________ ( १३२४ ।। ३. अप्पत्तियं पवेसामीतेगे पत्तियं पवेसेइ, ४. अप्पत्तियं पवेसामीतेगे अप्पत्तियं पवेसेइ। (४) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा१. अप्पणो णाममेगे पत्तियं पवेसेइ,णो परस्स, २. परस्स णाममेगे पत्तियं पवेसेइ,णो अप्पणो, ३. एगे अप्पणो विपतियं पवेसेइ, परस्स वि, ४. एगे णो अप्पणो पत्तियं पवेसेइ, णो परस्स। -ठाणं. अ.४, उ.३.सु.३१२ ३१. मित्तामित्त दिट्टतेण पुरिसाणं चउभंग परूवणं(१) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. मित्ते णाममेगे मित्ते, २. मित्ते णाममेगे अमित्ते, ३. अमित्ते णाममेगे मित्ते, ४. अमित्ते णाममेगे अमित्ते। द्रव्यानुयोग-(२) ३. कुछ पुरुष दूसरे के मन में अप्रीति उत्पन्न करना चाहते हैं, किन्तु प्रीति उत्पन्न कर देते हैं, ४. कुछ पुरुष दूसरे के मन में अप्रीति उत्पन्न करना चाहते हैं और अप्रीति उत्पन्न कर देते हैं। (४) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष स्वयं पर प्रीति (या विश्वास) करते हैं, परन्तु दूसरों पर प्रीति नहीं करते, २. कुछ पुरुष दूसरों पर प्रीति करते हैं परन्तु स्वयं पर प्रीति नहीं करते, ३. कुछ पुरुष स्वयं पर भी प्रीति करते हैं और दूसरों पर भी प्रीति करते हैं, ४. कुछ पुरुष न स्वयं पर प्रीति करते हैं और न दूसरों पर प्रीति करते हैं। ३१. मित्र-अमित्र के दृष्टांत द्वारा पुरुषों के चतुर्भगों का प्ररूपण(१) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष व्यवहार से भी मित्र होते हैं और हृदय से भी मित्र होते हैं, २. कुछ पुरुष व्यवहार से मित्र होते हैं, किन्तु हृदय से मित्र नहीं होते हैं, ३. कुछ पुरुष व्यवहार से मित्र नहीं होते, परन्तु हृदय से मित्र होते हैं, ४. कुछ पुरुष न व्यवहार से मित्र होते हैं और न हृदय से मित्र होते हैं। (२) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष मित्र होते हैं और उनका व्यवहार भी मित्रवत् होता है, २. कुछ पुरुष मित्र होते हैं, परन्तु उनका व्यवहार अमित्रवत् होता है, ३. कुछ पुरुष अमित्र होते हैं, परन्तु उनका व्यवहार मित्रवत् होता है, ४. कुछ पुरुष अमित्र होते हैं और उनका व्यवहार भी अमित्रवत् होता है। ३२. आत्मानुकंप-परानुकंप के भेद से पुरुषों के चतुर्भगों का प्ररूपण(१) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष आत्मानुकंपक आत्म-हित में प्रवृत्त होते हैं, परन्तु परानुकंपक-परहित में प्रवृत्त नहीं होते (जैसे-जिनकल्पिक मुनि) २. कुछ पुरुष परानुकंपक होते हैं, परन्तु आत्मानुकंपक नहीं होते (जैसे-कृतकृत्य तीर्थंकर), ३. कुछ पुरुष आत्मानुकंपक भी होते हैं और परानुकंपक भी होते हैं (जैसे-स्थविरकल्पिक मुनि), ४. कुछ पुरुष न आत्मानुकंपक होते हैं और न परानुकंपक होते हैं (जैसे-क्रूरकर्मा पुरुष), (२) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. मित्ते णाममेगे मित्तरूवे, २. मित्ते णाममेगे अमित्तरूवे, ३. अमित्ते णाममेगे मित्तरूवे, ४. अमित्ते णाममेगे अमित्तरूवे। -ठाणं. अ.४, उ.४, सु.३६६ ३२. आयाणुकंप-पराणुकंप भेएण पुरिसाणं चउभंग परूवर्ण (१) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. आयाणुकंपए णाममेगे णो पराणुकंपए, २. पराणुकंपए णाममेगे णो आयाणुकंपए, ३. एगे आयाणुकंपए वि, पराणुकंपए वि, ४. एगे णो आयाणुकंपए,णो पराणुकंपए। -ठाणं.अ.४, उ.४,सु.३५२/६
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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