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________________ मनुष्य गति अध्ययन (१५) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा १. अज्जे णाममेगे अज्जसेवी, २. अज्जे णाममेगे अणज्जसेवी, ३. अणज्जे णाममेगे अज्जसेवी, ४. अणजे नाममेगे अणज्जसेवी । (१६) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा १. अज्जे णाममेगे अज्जपरियाए २. अज्जे णाममेगे अणज्जपरियाए, ३. अणजे णाममेगे अज्जपरियाए ४. अणजे नाममेगे अणजपरियाए । (१७) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा१. अ णाममेगे अज्जपरियाले, २. अज्जे णाममेगे अणज्जपरियाले, ३. अणजे णाममेगे अज्जपरियाले, ४. अणजे णाममेगे अणजपरियाले । (१८) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा१. अजे नाममेगे अज्जभावे, - २. अज्जे णाममेगे अणजभावे, ३. अणज्जे णाममेगे अजभावे. ४. अणज्जे णाममेगे अणज्जभावे । - ठाणं. अ. ४, उ. २, सु. २८० ३०. पत्तिय- अपत्ति विवक्खया पुरिसाणं चउव्हित्त परूवणं (१) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा १. पत्तियं करेमीतेगे पत्तियं करेड़, २. पतियं करेमीतेगे अप्पत्तियं करेड. ३. अप्पत्तियं करेमीतेगे पत्तियं करेड, ४. अप्पतियं करेमीतेगे अप्पलियं करेड़ (२) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा १. अप्पणो णाममेगे पत्तियं करेड़, णो परस्स, २. परस्स णाममेगे पत्तियं करेइ, णो अप्पणी, ३. एगे अप्पणी वि पत्तियं करेड़, परस्स थि ४. एगे णो अप्पणो पत्तियं करेड णो परस्स (३) चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा १. पत्तियं पवेसामीतेगे पत्तियं पवेसेइ, २. पत्तियं पवेसामीतेगे अप्पलियं पवेसेड़, १३२३ (१५) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ पुरुष आर्य होते हैं और आर्य सेवी होते हैं, २. कुछ पुरुष आर्य होते हैं किन्तु अनार्य सेवी होते हैं, ३. कुछ पुरुष अनार्य होते हैं किन्तु आर्य सेवी होते हैं, ४. कुछ पुरुष अनार्य होते हैं और अनार्थ सेवी होते हैं। (१६) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ पुरुष आर्य होते हैं और आर्य पर्याय वाले होते हैं, २. कुछ पुरुष आर्य होते हैं किन्तु अनार्य पर्याय वाले होते हैं, ३. कुछ पुरुष अनार्य होते हैं किन्तु आर्य पर्याय वाले होते हैं, ४. कुछ पुरुष अनार्य होते हैं और अनार्य पर्याय वाले होते हैं। (१७) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ पुरुष आर्य होते हैं और आर्य परिवार वाले होते हैं, २. कुछ पुरुष आर्य होते हैं किन्तु अनार्य परिवार वाले होते हैं, ३. कुछ पुरुष अनार्य होते हैं किन्तु आर्य परिवार वाले होते है, ४. कुछ पुरुष अनार्य होते हैं और अनार्य परिवार वाले होते हैं। (१८) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ पुरुष आर्य होते हैं और आर्य भाव से युक्त (उदार) होते हैं, २. कुछ पुरुष आर्य होते हैं किन्तु भाव से अनार्य होते हैं, ३. कुछ पुरुष अनार्य होते हैं किन्तु भाव से आर्य होते हैं, ४. कुछ पुरुष अनार्य होते हैं और अनार्य भाव से युक्त होते हैं। ३०. प्रीति और अप्रीति की विवक्षा से पुरुषों के चतुर्विधत्व का प्ररूपण (१) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ पुरुष प्रीति क ऐसा सोचकर प्रीति करते हैं, २. कुछ पुरुष प्रीति करूं ऐसा सोचकर अप्रीति करते हैं, ३. कुछ पुरुष अप्रीति करूं ऐसा सोचकर प्रीति करते हैं, ४. कुछ पुरुष अप्रीति करूं ऐसा सोचकर अप्रीति करते हैं। (२) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ पुरुष (जो स्वार्थी होते हैं) अपने पर प्रीति करते हैं दूसरों पर नहीं करते, २. कुछ पुरुष दूसरों पर प्रीति करते हैं, अपने पर नहीं करते, ३. कुछ पुरुष अपने पर भी प्रीति करते हैं और दूसरों पर भी प्रीति करते हैं. ४. कुछ पुरुष अपने पर भी प्रीति नहीं करते और दूसरों पर भी प्रीति नहीं करते। (३) पुरुष चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. कुछ पुरुष दूसरे के मन में प्रीति (या विश्वास) उत्पन्न करना चाहते हैं और प्रीति उत्पन्न कर देते हैं, २. कुछ पुरुष दूसरे के मन में प्रीति उत्पन्न करना चाहते हैं, किन्तु अप्रीति उत्पन्न कर देते हैं।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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