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________________ १३०९ मनुष्य गति अध्ययन ३. ण जुज्झिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। -ठाणं अ.३, उ. २, सु.१६८(८०-८५) १६. जय विवक्खया पुरिसाणं सुमणस्साइ तिविहत्त परूवणं (१) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. जइत्ता णामेगे सुमणे भवइ, २. जइत्ता णामेगे दुम्मणे भवइ, ३. जइत्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। (२) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. जिणामीतेगे सुमणे भवइ, २. जिणामीतेगे दुम्मणे भवइ, ३. जिणामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। (३) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. जिणिस्सामीतेगे सुमणे भवइ, २. जिणिस्सामीतेगे दुम्मणे भवइ, ३. जिणिस्सामीतेगे णोसुमणे णोदुम्मणे भवइ। (४) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. अजइत्ता णोमेगे सुमणे भवइ, २. अजइत्ता णामेगे दुम्मणे भवइ, ३. अजइत्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। ३. कुछ पुरुष युद्ध नहीं करूँगा इसलिए न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। १६. जय की विवक्षा से पुरुषों के सुमनस्कादि त्रिविधत्व का प्ररूपण(१) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष जीतकर सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष जीतकर दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष जीतकर न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (२) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष जीतता हूँ इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष जीतता हूँ इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष जीतता हूँ इसलिए न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (३) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष जीतूंगा इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष जीतूंगा इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष जीतूंगा इसलिए न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (४) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष न जीतकर सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष न जीतकर दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष न जीतकर न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (५) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष जीतता नहीं हूँ इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष जीतता नहीं हूँ इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष जीतता नहीं हूँ इसलिए न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (६) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष नहीं जीतूंगा इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष नहीं जीतूंगा इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष नहीं जीतूंगा इसलिए न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। १७. पराजय की विवक्षा से पुरुषों के सुमनस्कादि त्रिविधत्व का प्ररूपण(१) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष पराजित करने के बाद सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष पराजित करने के बाद दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष पराजित करने के बाद न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (२) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष पराजित करता हूँ इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष पराजित करता हूँ इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, (५) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. ण जिणामीतेगे सुमणे भवइ, २. ण जिणामीतेगे दुम्मणे भवइ, ३. ण जिणामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। (६) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. ण जिणिस्सामीतेगे सुमणे भवइ, २. ण जिणिस्सामीतेगे दुम्मणे भवइ, ३. ण जिणिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। -ठाणं अ. ३, उ.२, सु.१६८(८६-९१) १७. पराजय विवक्खया पुरिसाणं सुमणस्साइ तिविहत्त परूवणं- (१) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. पराजिणित्ता णामेगे सुमणे भवइ, २. पराजिणित्ता णामेगे दुम्मणे भवइ, ३. पराजिणित्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। (२) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. पराजिणामीतेगे सुमणे भवइ, २. पराजिणामीतेगे दुम्मणे भवइ,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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