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________________ १३०८ २. असुइत्ता णामेगे दुम्मणे भवइ, . ३. असुइत्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। (५) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. ण सुआमीतेगे सुमणे भवइ, २. ण सुआमीतेगे दुम्मणे भवइ, ३. ण सुआमीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। (६) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. ण सुइस्सामीतेगे सुमणे भवइ, २. ण सुइस्सामीतेगे दुम्मणे भवइ, ३. ण सुइस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। -ठाणं अ. ३, उ.२, सु. १६८ (७४-७९) १५. जुज्झण विवक्खया पुरिसाणं सुमणस्साइ तिविहत्त परूवणं- (१) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. जुज्झित्ता णामेगे सुमणे भवइ, २. जुज्झित्ता णामेगे दुम्मणे भवइ, ३. जुज्झित्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। (२) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. जुज्झामीतेगे सुमणे भवइ, २. जुज्झामीतेगे दुम्मणे भवइ, ३. जुज्झामीतेगेणोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। द्रव्यानुयोग-(२) २. कुछ पुरुष न सोकर दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष न सोकर न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (५) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष सोता नहीं हूँ इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष सोता नहीं हूँ इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष सोता नहीं हूँ इसलिए न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (६) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष नहीं सोऊँगा इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष नहीं सोऊँगा इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष नहीं सोऊँगा इसलिए न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। १५. युद्ध की विवक्षा से पुरुषों के सुमनस्कादि त्रिविधत्व का प्ररूपण(१) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष युद्ध करके सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष युद्ध करके दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष युद्ध करके न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं. (२) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष युद्ध करता हूँ इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष युद्ध करता हूँ इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष युद्ध करता हूँ इसलिए न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (३) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष युद्ध करूँगा इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष युद्ध करूँगा इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष युद्ध करूँगा इसलिए न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (४) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष युद्ध न करके सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष युद्ध न करके दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष युद्ध न करके न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (५) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष युद्ध नहीं करता हूँ इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष युद्ध नहीं करता हूँ इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, ३. कुछ पुरुष युद्ध नहीं करता हूँ इसलिए न सुमनस्क होते हैं और न दुर्मनस्क होते हैं। (६) पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ पुरुष युद्ध नहीं करूँगा इसलिए सुमनस्क होते हैं, २. कुछ पुरुष युद्ध नहीं करूँगा इसलिए दुर्मनस्क होते हैं, (३) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. जुज्झिस्सामीतेगे सुमणे भवइ, २. जुज्झिस्सामीतेगे दुम्मणे भवइ, ३. जुज्झिस्सामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। (४) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. अजुज्झित्ता णामेगे सुमणे भवइ, २. अजुज्झित्ता णामेगे दुम्मणे भवइ, ३. अजुज्झित्ता णामेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। (५) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. ण जुज्झामीतेगे सुमणे भवइ, २. ण जुज्झामीतेगे दुम्मणे भवइ, ३. ण जुज्झामीतेगे णोसुमणे-णोदुम्मणे भवइ। (६) तओ पुरिसजाया पण्णत्ता,तं जहा१. ण जुज्झिस्सामीतेगे सुमणे भवइ, २. ण जुज्झिस्सामीतेगे दुम्मणे भवइ,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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