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________________ १२८२ द्रव्यानुयोग-(२) १६. आहारदारंप. ते णं भंते ! जीवा किं आहारगा, अणाहारगा? उ. गोयमा! आहारए वा, अणाहारए वा। एवं अट्ठ भंगा। १७. विरइदारंप. ते णं भंते ! जीवा किं विरया, अविरया, विरयाविरया? उ. गोयमा ! नो विरया, नो विरयाविरया, अविरए वा, अविरया वा। १८. किरियादारप. तेणं भंते ! जीवा किं सकिरिया, अकिरिया? उ. गोयमा ! नो अकिरिया,सकिरिए वा,सकिरिया वा। १९. बंधगदारंप. तेणं भंते !जीवा किं सत्तविहबंधगा,अट्ठविहबंधगा? उ. गोयमा ! सत्तविहबंधए वा, अट्ठविहबंधए वा, १६. आहार द्वारप्र. भंते ! वे जीव आहारक हैं या अनाहारक हैं ? उ. गौतम ! कोई एक जीव आहारक है, अथवा कोई एक जीव अनाहारक है। इत्यादि आठ भंग कहने चाहिए। १७. विरतिद्वारप्र. भंते ! क्या वे जीव विरत, अविरत या विरताविरत हैं? उ. गौतम ! वे जीव विरत और विरताविरत नहीं हैं किन्तु एक जीव भी अविरत है और अनेक जीव भी अविरत हैं। १८. क्रियाद्वार प्र. भंते ! क्या वे जीव सक्रिय हैं या अक्रिय हैं ? उ. गौतम ! वे अक्रिय नहीं हैं, किन्तु एक जीव भी सक्रिय है और अनेक जीव भी सक्रिय हैं। १९. बंधक द्वारप्र. भंते ! वे जीव सप्तविध (सात कर्मों के) बंधक हैं या अष्टविध (आठ कर्मों के) बंधक हैं? उ. गौतम ! एक जीव सप्तविधबंधक है, एक जीव अष्टविधबंधक है। इत्यादि आठ भंग कहने चाहिए। २०. संज्ञाद्वारप्र. भंते ! वे जीव आहारकसंज्ञा के उपयोग वाले हैं, भयसंज्ञा के उपयोग वाले हैं, मैथुनसंज्ञा के उपयोग वाले हैं या परिग्रहसंज्ञा के उपयोग वाले हैं? उ. गौतम ! वे आहारकसंज्ञा के उपयोग वाले हैं। इत्यादि (लेश्याद्वार के समान) अस्सी (८०) भंग कहने चाहिए। २१. कषाय द्वारप्र. भंते ! वे जीव क्रोधकषायी हैं, मानकषायी हैं, मायाकषायी हैं या लोभकषायी हैं? उ. गौतम ! यहाँ भी (समान लेश्या के ) अस्सी (८०) भंग कहने चाहिए। २२. वेद द्वारप्र. भंते ! वे जीव स्त्रीवेदी हैं, पुरुष वेदी हैं या नपुंसकवेदी हैं ? एवं अट्ठ भंगा। २०. सण्णादारंप. ते णं भंते ! जीवा किं आहारसण्णोवउत्ता, भयसण्णोवउत्ता, मेहुणसण्णोवउत्ता, परिग्गहसण्णो वउत्ता? उ. गोयमा ! आहारसण्णोवउत्ता वा। असीई भंगा। २१. कसायदारंप. ते णं भंते ! जीवा कि कोहकसायी, माणकसायी, मायाकसायी,लोभकसायी? उ. गोयमा ! असीई भंगा। . २२. बेयदारंप. ते णं भंते ! जीवा किं इत्थिवेदगा, पुरिसवेदगा, नपुंसगवेदगा? उ. गोयमा ! नो इत्थिवेदगा, नो पुरिसवेदगा, नपुंसगवेदए वा, नपुंसगवेदगा वा। २३. बंधदारंप. ते णं भंते ! जीवा किं इत्थिवेदबंधगा, पुरिसवेदबंधगा, नपुंसगवेदबंधगा? उ. गोयमा ! इत्थिवेदबंधए वा, पुरिसवेदबंधए वा, नपुंसगवेदबंधए वा, छव्वीसं भंगा। २४. सण्णीदारंप. ते णं भंते !जीवा किं सण्णी,असण्णी? उ. गौतम ! वे स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी नहीं हैं, किन्तु एक जीव भी नपुंसकवेदी है और अनेक जीव भी नपुंसकवेदी हैं। २३. बंध द्वारप्र. भंते ! वे जीव स्त्रीवेद बंधक हैं, पुरुष वेद बंधक हैं या नपुंसकवेद बंधक हैं? उ. गौतम ! एक स्त्रीवेद बंधक, एक पुरुष वेद बंधक और एक नपुंसकवेद बंधक है। इत्यादि २६ भंग कहने चाहिए। २४. संज्ञी द्वारप्र. भंते ! वे जीव संज्ञी हैं या असंज्ञी हैं?
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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