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________________ (तिर्यञ्च गति अध्ययन १०. दिट्ठिदारंप. ते णं भंते ! जीवा किं सम्मदिदट्ठिी मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी? उ. गोयमा ! नो सम्मद्दिट्ठी, नो सम्मामिच्छाट्ठिी , मिच्छादिट्ठी वा, मिच्छादिट्ठिणो वा ११. नाणदारंप. ते णं भंते ! जीवा किं नाणी,अन्नाणी? उ. गोयमा ! नो नाणी, अन्नाणी वा,अन्नाणिणो वा। १२. जोगदारंप. ते णं भन्ते ! जीवा किं मणजोगी, वइजोगी,कायजोगी? उ. गोयमा ! नो मणजोगी, नो वइजोगी, कायजोगी वा, कायजोगिणो वा। १३. उवओगदारंप. ते णं भंते ! जीवा किं सागारोवउत्ता, अणागारोवउत्ता? उ. गोयमा ! सागारोवउत्तेवा,अणागारोवउत्तेवा। अट्ठ भंगा। १४. वण्ण-रसाइदारंप. तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरगा कतिवण्णा, कतिरसा, कतिगंधा, कतिफासा पन्मत्ता? उ. गोयमा! पंचवण्णा, पंचरसा, दुगंधा, अट्ठफासा पन्नत्ता। ते पुण अप्पणा अवण्णा, अगंधा, अरसा, अफासा पन्नत्ता। १५. उस्सासगदारंप. ते णं भंते ! जीवा किं उस्सासा, निस्सासा, नो उस्सासनिस्सासा? उ. गोयमा !१. उस्सासए वा, २. निस्सासएवा, ३. नो उस्सास-निस्सासए वा ४. उस्सासगा वा ५. निस्सासगा वा, ६. नो उस्सास-निस्सासगा वा, ७-१०.अहवा उस्सासए य, निस्सासए य, १२८१) १०. दृष्टि द्वारप्र. भंते ! वे जीव सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि या सम्यगमिथ्या दृष्टि हैं ? उ. गौतम ! वे सम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि नहीं हैं किन्तु एक भी मिथ्यादृष्टि है और अनेक भी मिथ्यादृष्टि हैं। ११. ज्ञान द्वारप्र. भंते ! वे जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? उ. गौतम ! वे ज्ञानी नहीं हैं किन्तु एक जीव भी अज्ञानी है और ___ अनेक जीव भी अज्ञानी हैं। १२. योग द्वार प्र. भंते ! वे जीव क्या मनोयोगी हैं, वचनयोगी हैं या ___ काययोगी हैं? उ. गौतम ! वे मनोयोगी और वचनयोगी नहीं है, किन्तु एक जीव भी काययोगी है और अनेक जीव भी काययोगी हैं। १३. उपयोग द्वारप्र. भंते ! वे जीव साकारोपयोगी हैं या अनाकारोपयोगी है ? उ. गौतम ! वे साकारोपयोगी भी हैं और अनाकारोपयोगी भी है इत्यादि पूर्ववत् आठ भंग कहने चाहिए। १४. वर्णरसादिद्वारप्र. भंते ! उन जीवों के शरीर कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श वाले कहे गए हैं? उ. गौतम ! उनके शरीर पांच वर्ण, पांच रस, दो गंध और आठ स्पर्श वाले कहे गए हैं। किन्तु वे स्वयं वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से रहित कहे गए हैं। १५. उच्छ्वासकद्वारप्र. भंते ! वे जीव उच्छ्वासक हैं, निःश्वासक हैं या उच्छवासक निःश्वासक हैं? उ. गौतम ! (उनमें से) १. कोई एक जीव उच्छ्वासक है, २. कोई एक जीव निःश्वासक है, ३. कोई एक जीव अनुच्छ्वासक-निःश्वासक है। ४. अनेक जीव उच्छ्वासक हैं, ५. अनेक जीव निःश्वासक हैं, ६. अनेक जीव अनुच्छ्वासक-निःश्वासक हैं, ७-१0. अथवा एक जीव उच्छ्वासक है और एक निःश्वासक है, ११-१४. अथवा एक जीव उच्छ्वासक और अनुच्छ्वासक निःश्वासक है, १५-१८. अथवा एक जीव निःश्वासक और अनुच्छ्वासक निःश्वासक है, १९-२६. अथवा एक जीव उच्छ्वासक निश्वासक और अनुच्छ्वासक-निःश्वासक है। इत्यादि आठ भंग होते हैं। ये सब मिलकर छब्बीस (२६) भंग होते हैं। ११-१४.अहवा उस्सासए य, नो उस्सास निस्सासए य, १५-१८.अहवा निस्सासए य, नो उस्सास निस्सासए य। १९-२६. अहवा उस्सासए य, निस्सासए य, नो उस्सास निस्सासए य। अट्ठ भंगा। एए छव्वीसं भंगा भवंति।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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