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________________ १२८० प. भंते! आउयस्स कम्मस्स किं बंधगा, अंबंधगा ? उ. गोयमा ! १. बंधए वा, २. अबंधए वा, ३. बंधगा वा, ४. अबंधगा वा, ५. अहवा बंधए य, अबंधए य, ६. अहवा बंधए य, अबंधगा य, ७. अहवा बंधगा य, अबंधगे य, ८. अहवा बंधगा य, अबंधगा य, एए अट्ठ भंगा, ६. वेदग दारं प. ते णं भंते! जीवा णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं वेदगा, अवेदगा ? उ. गोयमा ! नो अवेदगा, वेदएवा, वेदगा वा । एवं जाय अंतराइयस्स । प. ते णं भंते! जीवा किं सायावेयगा, असायावेयगा ? उ. गोयमा ! सायायेयए वा असायावेयए वा अट्ठ भंगा। ७. उदयदारं प. ते णं भंते ! जीवा नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं उदई, अणुवई ? उ. गोयमा ! नो अणुदई, उदई वा, उदइणो वा । एवं जाव अंतराइयस्स। ८. उदीरग दारं पते णं भते । जीवा नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं उदीरगा, अणुदीरगा ? उ. गोयमा ! नो अणुदीरगा, उदीरए वा, उदीरगा वा । एवं जाव अंतराइयरस णवरं येयणिञ्जाउएस अट्ठ भंगा। ९. लेस्सादार प. ते णं भंते! जीवा किं कण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काउलेस्सा, तेउलेस्सा ? उ. गोयमा ! कण्डलेस्से वा जाब तेउलेस्से या, कण्हलेस्सा वा, नीललेस्सा वा, काउलेस्सा वा तेउलेस्सावा, अहवा कण्हलेस्से य, नीललेस्से य, एवं एए दुधा संजोग लिया-संजोग, चक्कसंजोगेण य असीतिं भंगा भवंति । " द्रव्यानुयोग - (२) प्र. भंते! वे जीव आयु कर्म के बंधक हैं या अबंधक हैं ? उ. गौतम ! १. एक जीव बंधक है, २. एक जीव अबंधक है, ३. अनेक जीव बंधक हैं, ४. अनेक जीव अबंधक हैं, ५. अथवा एक जीव बंधक है और एक जीव अबंधक है, ६. अथवा एक जीव बंधक है और अनेक जीव अबंधक हैं, ७. अथवा अनेक जीव बंधक हैं और एक जीव अबंधक है, ८. अथवा अनेक जीव बंधक हैं और अनेक जीव अबंधक हैं. इस प्रकार ये आठ भंग हैं। ६. वेदकद्वार प्र. भंते! वे जीव ज्ञानावरणीय कर्म के वेदक हैं या अवेदक हैं ? उ. गौतम ! वे अवेदक नहीं हैं किन्तु एक जीव भी वेदक है और अनेक जीव भी वेदक हैं। इसी प्रकार अन्तराय कर्म पर्यन्त जानना चाहिए। प्र. भंते! वे जीव साता वेदक हैं या असाता वेदक हैं ? उ. गौतम ! एक जीव सातावेदक है और एक जीव असातावेदक है इत्यादि (पूर्वोक्त) आठ भंग जानने चाहिए। ७. उदयद्वार प्र. भंते! वे जीव ज्ञानावरणीय कर्म के उदय वाले हैं या अनुदय वाले हैं ? उ. गौतम ! वे अनुदय वाले नहीं हैं किन्तु एक जीव भी उदयवाला है और अनेक जीव भी उदय वाले हैं। इसी प्रकार अन्तराय कर्म पर्यन्त जानना चाहिए। ८. उदीरक द्वार प्र. भंते ! वे जीव ज्ञानावरणीय कर्म के उदीरक हैं या अनुदीरक हैं ? उ. गौतम ! वे अनुदीरक नहीं हैं किन्तु एक जीव भी उदीरक है। और अनेक जीव भी उदीरक हैं। इसी प्रकार अन्तराय कर्म पर्यन्त जानना चाहिए। विशेष- वेदनीय और आयु कर्म के आठ भंग करने चाहिए। ९. लेश्या द्वार प्र. भंते ! वे जीव क्या कृष्णलेश्या वाले, नीललेश्या वाले, कापोतलेश्या वाले या तेजोलेश्या वाले होते हैं ? उ. गौतम ! एक जीव कृष्णलेश्या वाला होता है यावत् तेजोलेश्या वाला होता है। अनेक जीव कृष्णलेश्या वाले नीललेश्या वाले, कापोतलेश्या वाले या तेजोलेश्या वाले होते हैं। P अथवा एक कृष्णलेश्या वाला और एक नीललेश्या वाला होता है। इस प्रकार ये द्विक्संयोगी, त्रिकसंयोगी और चतु:संयोगी सब मिला कर अस्सी (८०) भंग होते हैं।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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