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( १२७८ ।। ३२. नील-काउलेस्स भवसिद्धीय एगिंदिय जीवाणं भेयप्पभेय
परूवणंजहा कण्हलेस्सा भवसिद्धीय सयं भणियं एवं नीललेस्स भवसिद्धीएहिं विसयं भाणियव्वं।
-विया.स.३३/७, उ.१-११ एवं काउलेस्सा भवसिद्धीएहिं वि सयं।
-विया. स.३३/८, उ.१-११ ३३. अभवसिद्धीय एगिंदिय जीवाणं भेयप्पभेय परूवणं
प. कइविहा णं भंते ! अभवसिद्धीया एगिंदिया पण्णत्ता?
द्रव्यानुयोग-(२) ३२. नील-कापोतलेश्यी भवसिद्धिक एकेन्द्रियों के भेद-प्रभेदों का
प्ररूपणजिस प्रकार कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीवों का शतक कहा, उसी प्रकार नीललेश्यी भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीवों का शतक भी कहना चाहिए। कापोतलेश्यी भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीवों का शतक भी इसी प्रकार
(पूर्ववत्) कहना चाहिए। ३३. अभवसिद्धिक एकेन्द्रियों के भेद-प्रभेदों का प्ररूपण
प्र. भंते ! अभवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे
गए हैं?
उ. गोयमा ! पंचविहा अभवसिद्धीया एगिंदिया पण्णत्ता, तं। उ. गौतम ! अभवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीव पाँच प्रकार के कहे गए जहा
हैं, यथा१. पुढविकाइया जाव ५. वणस्सइकाइया।
१. पृथ्वीकायिक यावत् ५. वनस्पतिकायिक। एवं जहेव भवसिद्धीय सयं।
जिस प्रकार भवसिद्धिक शतक कहा उसी प्रकार यहाँ भी
कहना चाहिए। णवर-नव उद्देसगा चरिम,अचरिम उद्देसगवज्ज।
विशेष-चरम-अचरम उद्देशक को छोड़कर शेष नौ उद्देशक
जानना चाहिए। सेसं तहेव। -विया. स. ३३/९, उ.१-११
शेष कथन पूर्ववत् है। ३४. कण्ह-नील काउलेस्स अभवसिद्धीय एगिदिय जीवाणं ३४. कृष्ण-नील-कापोतलेश्यी अभवसिद्धिक एकेन्द्रियों के भेदभेयप्पभेय परूवणं
प्रभेदों का प्ररूपणएवं कण्हलेस्सा अभवसिद्धीय सयं वि।
इसी प्रकार कृष्णलेश्यी अभवसिद्धिक एकेन्द्रिय का शतक भी -विया. स.३३/१०,उ.१-११ पूर्ववत् कहना चाहिए। नीललेस्सा अभवसिद्धीय एगिंदियाएहिं विसयं।
इसी प्रकार नीललेश्यी अभवसिद्धिक एकेन्द्रिय का शतक भी -विया. स.३३/११, उ.१-९ पूर्ववत् जानना चाहिए। काउलेस्स अभवसिद्धीएहिं वि सयं।
इसी प्रकार कापोतलेश्यी अभवसिद्धिक एकेन्द्रिय का शतक भी
पूर्ववत् जानना चाहिए। एवं चत्तारि वि अभवसिद्धीयसयाणि नव-नव उद्देसगा भवंति। अभवसिद्धिक चारों शतक के नौ-नौ उद्देशक कहने चाहिए।
-विया. स.३३/१२, उ.१-९,सु.१-२ ३५. उप्पल वणस्सइकाइयाणं उववायाइ बत्तीसद्दारेहिं परूवणं- ३५. उत्पलादि वनस्पतिकायिकों के उत्पातादि बत्तीस द्वारों के
प्ररूपण१. उववाओ, २. परिमाणं,
१. उपपात, २. परिमाण, ३. अपहार, ३-४. अवहारुच्चत्त, ५. बंध, ६. वेदे य।
४. अवगाहना (ऊँचाई)
५. कर्म (बंधक) ७.उदए, ८.उदीरणाए, ९.लेसा, १०. दिट्ठी य,
६. वेदक, ७. उदय, ८. उदीरणा, ११. नाणे य॥१२-१३.जोगुवओगे,
९. लेश्या, १०. दृष्टि, ११. ज्ञान, १४. वण्ण-रसमाइ, १५. ऊसासगे य, १६. आहारे।
१२. योग, १३. अपयोग, १४. वर्ण-रसादि, १७. विरई, १८.किरिया, १९. बंधे,
१५. उच्छ्वास, १६. आहार, १७. विरति, २०. सण्ण, २१-२२. कसायित्थि,
१८. क्रिया, १९. बन्धक, २०. संज्ञा, २३. बंधे य,२४-२५. सण्णिंदिय,
२१. कषाय, २२. स्त्रीवेदादि, २३. बन्ध, २६. अणुबंधे, २७-२८.संवेहाहार,
२४. संज्ञी, २५. इन्द्रिय, २६. अनुबन्ध, २९. ठिई, ३०. समुग्घाए।३१.चयणं मूलाईसुय,
२७. संवेध, २८. आहार, २९. स्थिति, ३२. उववाओ सव्वजीवाणं॥
३०. समुद्घात ३१. च्यवन, ३२.सभी जीवों का मूलादि में उपपात। (ये उत्पलादि के ३२
द्वार हैं) तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव पज्जुवासमाणे एवं उस काल और उस समय में राजगह नामक नगर था यावत वयासी
पर्युपासना करते हुए (गौतमस्वामी ने इस प्रकार पूछा