SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 538
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२७७ तिर्यञ्च गति अध्ययन २९. भवसिद्धीय एगिंदिय जीवाणं भेयप्पभेय परूवणं प. कइविहाणं भंते ! भवसिद्धीया एगिंदिया पन्नत्ता? उ. गोयमा ! पंचविहा भवसिद्धीया एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा१. पुढविकाइया जाव ५. वणस्सइकाइया। भेओ चउक्कओजाव वणस्सइकाइयत्ति। -विया.स.३३/५ उ.१-११ ३०. कण्हलेस्स भवसिद्धीय एगिदिय जीवाणं भेयप्पभेय परूवणं- प. कइविहा णं भंते ! कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिंदिया पन्नत्ता? उ. गोयमा ! पंचविहा कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिंदिया पन्नत्ता, तंजहा १. पुढविकाइया जाव ५. वणस्सइकाइया। प. कण्हलेस्सा भवसिद्धीया पुढविकाइया णं भन्ते! कइविहा पण्णता? उ. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १.सुहुमपुढविकाइया य २. बायरपुढविकाइया य। प. कण्हलेस्सा भवसिद्धीया सुहुमपुढविकाइया णं भन्ते ! कइविहा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १. पज्जत्तगाय २. अपज्जत्तगा य। एवं बायरा वि। एवं एएणं अभिलावेणं तहेव चउक्कओ भेओभाणियव्यो। -विया.स.३३/६, उ.१-११ सु.१-५ ३१. अणंतरोववनगाइ कण्हलेस्स भवसिद्धीय एगिंदिय जीवाणं भेयप्पभेय परूवणंप. कइविहा णं भंते ! अणंतरोववन्नगा कण्हलेस्सा भवसिद्धीया एगिंदिया पण्णत्ता? उ. गोयमा ! पंचविहा अणंतरोववन्नगा कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिंदिया पण्णत्ता,तं जहा १. पुढविकाइया जाव ५. वणस्सइकाइया। प. अणंतरोववन्नगा कण्हलेस्सा भवसिद्धीय पुढविकाइयाणं भंते ! कइविहा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १. सुहुमपुढविकाइया य,२. बायरपुढविकाइया य। एवं दुपओ भेओ। -विया. स. ३३/६, उ.१-११, सु.७-९ २९. भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीवों के भेद-प्रभेदों का प्ररूपणप्र. भंते ! भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे गए हैं? उ. गौतम ! भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीव पाँच प्रकार के कहे गए हैं,यथा१. पृथ्वीकायिक यावत् ५. वनस्पतिकायिक। वनस्पतिकायिक पर्यन्त इनके चार-चार भेद पूर्ववत् कहने चाहिए। ३0. कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीवों के भेद-प्रभेदों का प्ररूपणप्र. भंते ! कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे गए हैं? उ. गौतम ! कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीव पाँच प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. पृथ्वीकायिक यावत् ५. वनस्पतिकायिक। प्र. भंते ! कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक पृथ्वीकायिक कितने प्रकार के कहे गए हैं? उ. गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. सूक्ष्मपृथ्वीकायिक २. बादर पृथ्वीकायिक। प्र. भंते ! कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक सूक्ष्मपृथ्वीकायिक कितने प्रकार के कहे गए हैं? उ. गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. पर्याप्तक २. अपर्याप्तक। इसी प्रकार बादरपृथ्वीकायिक के भी दो भेद जानने चाहिए। इसी प्रकार इसी अभिलाप से प्रत्येक के चार-चार भेद कहने चाहिए। ३१. अनन्तरोपपन्नकादि कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक एकेन्द्रियों के भेद-प्रभेदों का प्ररूपणप्र. भंते ! अनन्तरोपपन्नक कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे गए हैं? उ. गौतम ! अनन्तरोपपन्नक कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीव पाँच प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. पृथ्वीकायिक यावत् ५. वनस्पतिकायिक। प्र. भंते ! अनन्तरोपपन्नक कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक पृथ्वीकायिक कितने प्रकार के कहे गए हैं? उ. गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. सूक्ष्मपृथ्वीकायिक २. बादर पृथ्वीकायिक। इसी प्रकार शेष अकायिक आदि के भी दो-दो भेद कहने चाहिए। इसी प्रकार इसी अभिलाप से औधिक शतक के अनुसार अचरम पर्यन्त पूर्ववत् ग्यारह ही उद्देशक कहने चाहिए। एवं एएणं अभिलावेणं एक्कारस वि उद्देसगा तहेव भाणियव्वा जहा ओहियसए जाव अचरिमो त्ति। -विया. स.३३/६, उ.१-११,सु.११
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy