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________________ १२५७ नरक गति अध्ययन उ. गोयमा ! अणिटुंजाव अमणाम। एवं जाव अहेसत्तमापुढविनेरइया। उ. गौतम ! वे अनिष्ट यावत् अमनाम (मन के प्रतिकूल पुद्गल परिणाम) का अनुभव करते हैं। इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी पर्यन्त के नैरयिकों का कथन करना चाहिए। इसी प्रकार वेदना परिणाम का भी (अनुभव करते हैं) यावत्प्र. भन्ते ! अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिक किस प्रकार के परिग्रहसंज्ञा परिणाम का अनुभव करते हैं? उ. गौतम ! वे अनिष्ट यावत् अमनाम (परिग्रहसंज्ञा परिणाम का) __ अनुभव करते हैं। ६. नैरयिक का मनुष्य लोक में अनागमन के चार कारण चार कारणों से नरक लोक में तत्काल उत्पन्न नैरयिक शीघ्र ही मनुष्य लोक में आना चाहता है, किन्तु आ नहीं पाता, यथा एवं वेदणा परिणाम जाव' प. अहेसत्तमापुढविनेरइया णं भन्ते ! केरिसय परिग्गहसण्णापरिणामं पच्चणुभवमाणा विहरंति? उ. गोयमा ! अणिटुंजाव अमणाम। -विया. स. १४, उ.३, सु.१४-१७ ६. नेरइयाणं माणुसलोगे अणागमस्स चउकारणाणि चउहि ठाणेहिं अहुणोववन्ने णेरइए णिरयलोगंसि इच्छेज्जा माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए,तं जहा१. अहुणोववन्ने णेरइए णिरयलोगंसि समुभूयं वेयणं वेयमाणे इच्छेज्जा, माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए, णो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए। २. अहुणोववन्ने णेरइए णिरयलोगंसि णिरयलपालेहिं भुज्जो-भुज्जो अहिट्ठिज्जमाणे इच्छेज्जा माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए,णो चेवणं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए। ३. अहुणोववन्ने णेरइए णिरयवेयणिज्जसि कमंसि अक्खीणंसि अवेइयंसि अणिज्जिन्नंसि इच्छेज्जा माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए णो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए। ४. अहुणोववन्ने णेरइए णिरयाउयंसि कम्मंसि अक्खीणंसि अवेइयंसि अणिज्जिन्नंसि इच्छेज्जा माणुसं लोगं हव्वमागच्छित्तए णो चेवणं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए। इच्चेएहिं चउहिँ ठाणेहिं अहुणोववन्ने नेरइए जाव णो चेव णं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए। -ठाणं. अ.४, उ.१, सु. २४५ ७. चउ-पंचजोयणसय निरयलोय नेरइयसमाइण्ण परूवण १. तत्काल उत्पन्न नैरयिक नरक लोक में होने वाली पीड़ा का वेदन करते हुए शीघ्र ही मनुष्य लोक में आना चाहता है, किन्तु आ नहीं पाता। २. तत्काल उत्पन्न नैरयिक नरक लोक में नरकपालों द्वारा बार-बार आक्रान्त होने पर शीघ्र ही मनुष्य लोक में आना चाहता है, किन्तु आ नहीं पाता। ३. तत्काल उत्पन्न नैरयिक शीघ्र ही मनुष्यलोक में आना चाहता है किन्तु नरक में भोगने योग्य कर्मों के क्षीण हुए बिना, उन्हें भोगे बिना, उनका निर्जरण हुए बिना, वह आ नहीं पाता। प. अन्नउत्थिया णं भन्ते ! एवमाइक्खंति जाव परूवेंति से जहानामए जुवई जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरगाउत्ता सिया एवामेव जाव चत्तारि पंच जोयणसयाई बहुसमाइण्णे मणुयलोए मणुस्सेहिं से कहमेयं भन्ते ! एवं? तत्काल उत्पन्न नैरयिक शीघ्र ही मनुष्य लोक में आना चाहता है किन्तु नरकायु के क्षीण हुए बिना, उसे भोगे बिना, उसका निर्जरण हुए बिना आ नहीं पाता। इन चार कारणों से तत्काल उत्पन्न नैरयिक यावत् इच्छा रखते हुए भी आ नहीं पाता। ७. चार सौ पाँच सौ योजन नरकलोक नैरयिकों से व्याप्त होने का प्ररूपणप्र. भन्ते ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं यावत् प्ररूपण करते हैं किजैसे कोई युवक अपने हाथ से युवती का हाथ कसकर पकड़े हुए हो अथवा जैसे आरों से एकदम सटी हुई पहिये की नाभि हो इसी प्रकार यावत् चार सौ पाँच सौ योजन तक यह मनुष्य लोक मनुष्यों से ठसाठस भरा हुआ है। भन्ते ! क्या यह कथन ऐसा ही है? उ. गौतम ! जो वे अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं-यावत् चार सौ पाँच सौ योजन मनुष्य लोक मनुष्यों से व्याप्त है, वे जो यह कहते हैं उनका यह कथन मिथ्या है। मैं इस प्रकार कहता हूँ यावत् प्ररूपणा करता हूँ कि-चार सौ पांच सौ योजन पर्यन्त नरकलोक नैरयिक जीवों से ठसाठस भरा हुआ है। उ. गोयमा ! जं णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव चत्तारि पंचजोयण सयाइंबहुसमाइण्णे मणुयलोए मणुस्सेहिं,जे ते एवमाहंसु मिच्छा ते एवमाहंसु। अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि एवामेव चत्तारि पंच जोयणसयाई बहुसमाइण्णे निरयलोए नेरइएहिं। -विया. स.५, उ.६, सु.१३ १. जीवा. पडि.३,उ.२
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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