SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 499
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२३८ "जं वेदेति, नो तं निज्जरेंति,जं निज्जरेंति नो तं वेदेति।" दं.१-२४. एवं नेरइया जाव वेमाणिया। प. से नूणं भंते ! जं वेदिस्संति तं निज्जरिस्संति, जं. निज्जरिस्सति तं वेदिस्संति? . उ. गोयमा !णो इणढे समठे। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ "जं वेदिस्संति नो तं निजरिस्संति, जं निज्जरिस्संति नो तं वेदिस्संति?" उ. गोयमा ! कम्मं वेदिस्संति, नोकम्मं निज्जरिस्संति। से तेणठेणं गोयमा !एवं वुच्चइ"जं वेदिस्संति णो तं निज्जरिस्संति,जं निज्जरिस्संति णो तं वेदिस्संति।" द.१-२४.एवं नेरइया जाव वेमाणिया। -विया.स.७, उ.३, सु.१३-१९ २७. विविह दिट्ठतेहिं महावेयण-महानिज्जरजुत्तजीवाणं परूवणंप. से नूणं भंते ! जे महावेयणे से महानिज्जरे,जे महानिज्जरे से महावेयणे? द्रव्यानुयोग-(२) "जिसको वेदते हैं उसकी निर्जरा नहीं करते और जिसकी निर्जरा करते हैं, उसका वेदन नहीं करते।" दं. १-२४. इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. भंते ! क्या वास्तव में, जिस कर्म का वेदन करेंगे, उसकी निर्जरा करेंगे और जिस कर्म की निर्जरा करेंगे, उसका वेदन करेंगे? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्र. भंते ! ऐसा किस कारण से कहते हैं कि "जिस कर्म का वेदन करेंगे उसकी निर्जरा नहीं करेंगे और जिस कर्म की निजरा करेंगे उसका वेदन नहीं करेंगे?" उ. गौतम ! कर्म का वेदन करेंगे और नो कर्म की निर्जरा करेंगे। इस कारण से गौतम! ऐसा कहा जाता है कि"जिसका वेदन करेंगे, उसकी निर्जरा नहीं करेंगे और जिसकी निर्जरा करेंगे, उसका वेदन नहीं करेंगे।" इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। महावेयणस्स य अप्पवेयणस्स य से सेए जे पसत्थनिज्जराए? उ. हता, गोयमा !जे महावेयणे जाव पसत्थनिज्जराए। प. छट्ठी-सत्तमासुणं भंते ! पुढवीसु नेरइया महावेयणा? उ. हंता गोयमा ! महावेयणा। प. ते णं भंते ! समणेहितो निग्गंथेहितो महानिज्जरतरा? उ. गोयमा ! णो इणढे समठे। २७. विविध दृष्टांतों द्वारा महावेदना और महानिर्जरा युक्त जीवों का प्ररूपणप्र. भंते ! क्या यह निश्चित है कि जो महावेदना वाला है, वह महानिर्जरा वाला है और जो महानिर्जरा वाला है, वह महावेदना वाला है? तथा क्या महावेदना वाले और अल्पवेदना वाले इन दोनों में वही जीव श्रेष्ठ है जो प्रशस्तनिर्जरा वाला है? उ. हां, गौतम ! जो महावेदना वाला है यावत् वही प्रशस्त निर्जरा वाला है। प्र. भंते ! क्या छठी और सातवीं (नरक) पृथ्वी के नैरयिक महावेदना वाले हैं? उ. हां, गौतम ! वे महावेदना वाले हैं। प्र. भंते ! तो क्या वे (नैरयिक) श्रमण-निर्ग्रन्थों की अपेक्षा भी महानिर्जरा वाले हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। (अर्थात् वे नैरयिक श्रमण-निर्ग्रन्थों की अपेक्षा महानिर्जरा वाले नहीं हैं।) प्र. भंते ! किस कारण से यह कहा जाता है कि___"जो महावेदना वाला है यावत् वही प्रशस्त निर्जरा वाला है? उ. गौतम ! १. मान लो कि दो वस्त्र हैं, उनमें से एक वस्त्र कर्दम (कीचड़) के रंग से रंगा हुआ हो और दूसरा वस्त्र खंजन (गाड़ी के पहिये की कीट) के रंग से रंगा हुआ है। तो हे गौतम ! इन दोनों वस्त्रों में से कौन-सा वस्त्र दुर्घोत्तर (मुश्किल से धुलने योग्य), दुर्वाम्यतर कठिनाई से धब्बे उतारे जा सकने योग्य और दुष्परिकर्मतर (कठिनाई से दर्शनीय बनाया जा सकने योग्य) है। कौन-सा वस्त्र सुधोत्तर (सुगमता से धोने योग्य) सुवाम्यतर सरलता से दाग उतारे जा सकने योग्य (तथा सुपरिकर्मतर सुगमता से दर्शनीय बनाया जा सकने योग्य ) है, ऐसा वस्त्र कर्दमराग-से रक्त है या खंजनराग से रक्त है? प. सेकेणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ "जे महावेयणे जाव पसत्यनिज्जराए? उ. गोयमा ! १. से जहानामए दुवे वत्थे सिय एगे वत्थे कद्दमरागरत्ते,एगे वत्थे खंजणरागरते। एएसि णं गोयमा ! दोण्हे वत्थाणं कयरे वत्थे दुधोयतराए चेव, दुवामतराए चेव दुपरिकम्मतराए। कयरे वा वत्थे सुधोयतराए चेव, सुवामतराए चेव, सुपरिकम्मतराए चेव। जे वा से वत्थे कद्दमरागरत्ते, जे वा से वत्थे खंजणरागरते?
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy