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________________ वेदना अध्ययन "जे वेयणासमए, न से निज्जरासमए, जेनिज्जरासमए, न से वेयणासमए । " प. दं. १. नेरइयाणं भंते ! जे वेयणासमए से निज्जरासमए, जे निज्जरासमए से वेयणासमए ? उ. गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे । प. से केणट्ठणं भंते ! एवं वुच्चइ "नेरइयाणं जे वेयणासमए न से निज्जरासमए, जे निज्जरासमए न से देवणासमए ?" उ. गोयमा ! नेरइया णं जं समयं वेदेति णो तं समय निज्जरेति, जं समय निज्ञ्जरेति नो तं समयं वेदेति, अन्नम्म समए वेदेंति, अन्नम्मि समए निज्जरेंति, अन्ने से वेयणासमए, अन्ने से निज्जरासमए । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ "जे वेयणासमए, न से निज्जरासमए, जे निज्जरासमए न से वेयणा समए ।" दं. २-२४. एवं जाव वेमाणियाणं । -विया. स. ७, उ. ३, सु. २०-२२ २६. तिकालवेक्खया वेयणा निज्जरासु अंतरं चउवीसदंड य परूवणं प. से नूणं भंते ! जं वेदेंसु तं निज्जरिंसु, जं निज्जरिंसु तं वेदेंसु ? उ. गोयमाणो इणट्ठे समट्ठे। प से केणट्ठणं भंते ! एवं वुच्चइ "जं वेदेंसु नो तं निज्जरेंसु, जं निज्जरेंसु नो तं वेदेंसु ?" उ. गोयमा ! कम्मं वेदेंसु नो कम्पं निज्जरिंसु । से तेणट्ठेन गोयमा ! एवं बुच्चइ "जं वेदेंसु नो तं निज्जरेंसु, जं निज्जरेंसु नो तं वेदेंसु । दं. १-२४. एवं नेरइया जाव वेमाणिया । प से नूणं भते ज वैदेति तं निज्जरेति, जं निज्जरेति तं वेदेति ? उ. गोयमा ! नो इणट्ठे समट्ठे । प से केणट्टे भंते! एवं युच्चइ "जं वेदेति नो तं निज्जरेति, जं निज्जरेति नो तं वेदेति ?" उ. गोयमा ! कम्म वेदेति नो कम्मं निज्जरेति । , से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ १२३७ "जो वेदना का समय है वह निर्जरा का समय नहीं है और जो निर्जरा का समय है, वह वेदना का समय नहीं है।" प्र. दं. १. भंते ! नैरयिक जीवों का जो वेदना का समय है, क्या वही निर्जरा का समय है और जो निर्जरा का समय है, क्या वही वेदना का समय है ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्र. भंते! ऐसा किस कारण से कहते हैं कि "जो वेदना का समय है, वह निर्जरा का समय नहीं है और जो निर्जरा का समय है, वह वेदना का समय नहीं है ?" उ. गौतम ! नैरयिक जीव जिस समय में वेदन करते हैं, उस समय में निर्जरा नहीं करते, जिस समय में निर्जरा करते हैं, उस समय में वेदन नहीं करते, अन्य समय में वे वेदन करते हैं और अन्य समय में निर्जरा करते हैं। उ. प्र. उनके वेदना का समय दूसरा है और निर्जरा का समय दूसरा है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि "जो वेदना का समय है वह निर्जरा का समय नहीं है और जो निर्जरा का समय है, वह वेदना का समय नहीं है।" दं. २-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिये। २६. त्रिकाल की अपेक्षा वेदना और निर्जरा में अंतर एवं चौबीस दंडकों में प्ररूपण प्र. भंते! जिन कर्मों का वेदन कर लिया, क्या उनको निर्जीर्ण कर लिया और जिन कर्मों को निर्जीर्ण कर लिया, क्या उनका वेदन कर लिया ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भंते! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि "जिन कर्मों का वेदन कर लिया उनको निर्जीर्ण नहीं किया और जिन कर्मों को निर्जीर्ण कर लिया, उनका वेदन नहीं किया ?" उ. गौतम ! वेदन कर्म का होता है और निर्जीर्ण नोकर्म का होता है। इस कारण से हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि "जिन कर्मों का वेदन कर लिया, उनको निर्जीर्ण नहीं किया और जिन कर्मों को निर्जीर्ण कर लिया, उनका वेदन नहीं किया।" दं. १ २४. इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. भंते ! क्या वास्तव में जिस कर्म को वेदते हैं, उसकी निर्जरा करते हैं और जिसकी निर्जरा करते हैं, उसको वेदते हैं ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्र. भंते! किस कारण ऐसा कहा जाता है कि "जिसको वेदते हैं, उसकी निर्जरा नहीं करते और जिसकी निर्जरा करते हैं, उसको वेदते नहीं है?" उ. गौतम कर्म को वेदते हैं और नोकर्म का निर्जीर्ण करते हैं। इस कारण से गौतम! ऐसा कहा जाता है कि
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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