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________________ १२३६ द्रव्यानुयोग-(२) अनुत्तरोपपातिक देव अल्पवेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"कितने ही जीव महावेदना और महानिर्जरा वाले हैं यावत् कितने ही जीव अल्प वेदना और अल्पनिर्जरा वाले हैं।" अणुत्तरोववाइया देवा अप्पवेयणा अप्पनिज्जरा। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"अत्थेगइया जीवा महावेयणा महानिज्जरा जाव अत्थेगइया जीवा अप्पवेयणा अप्पनिज्जरा।" -विया. स.६,उ.१,सु.१३ २४. वेयणा निज्जरासुभिन्नत्तं चउवीसदंडएसुय परूपणंप. से नूणं भंते ! जा वेयणा सा निज्जरा, जा निज्जरा सा वेयणा? उ. गोयमा ! णो इणठे समठे। , प. से केणठेणं भंते एवं वुच्चइ 'जा वेयणा न सा निज्जरा,जा निज्जरा न सा वेयणा? उ. गोयमा ! कम्मं वेयणा,णो कम्मं निज्जरा। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"जा वेयणा न सा निज्जरा,जा निज्जरा न सा वेयणा।" प. दं. १. नेरइयाणं भंते ! जा वेयणा सा निज्जरा, जा निज्जरा सा वेयणा? २४. वेदना और निर्जरा में भिन्नता और चौबीस दंडकों में प्ररूपणप्र. भंते ! क्या वास्तव में, जो वेदना है, वह निर्जरा कही जा सकती है और जो निर्जरा है, वह वेदना कही जा सकती है? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है____“जो वेदना है वह निर्जरा नहीं कही जा सकती और जो निर्जरा है, वह वेदना नहीं कही जा सकती? उ. गौतम ! वेदना कर्म है और निर्जरा नोकर्म है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"जो वेदना है वह निर्जरा नहीं कही जा सकती और जो निर्जरा है वह वेदना नहीं कही जा सकती।" प्र. दं.१. भंते ! क्या नैरयिकों की जो वेदना है उसे निर्जरा कहा जा सकता है और जो निर्जरा है उसे वेदना कहा जा सकता है? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "नैरयिकों की जो वेदना है, उसे निर्जरा नहीं कहा जा सकता और जो निर्जरा है, उसे वेदना नहीं कहा जा सकता?" उ. गौतम ! नैरयिक कर्म की वेदना करते हैं और नोकर्म की वेदना निर्जरा करते हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"नैरयिकों की जो वेदना है उसे निर्जरा नहीं कहा जा सकता और जो निर्जरा है उसे वेदना नहीं कहा जा सकता।" दं.२-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। उ. गोयमा ! णो इणठे समठे। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ "नेरइयाणं जा वेयणा न सा निज्जरा, जा निज्जरा न सा वेयणा?" उ. गोयमा ! नेरइयाणं कम्मं वेयणा, णो कम्मं निज्जरा। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"नेरइयाणं जा वेयणा न सा निज्जरा, जा निज्जरा न सा वेयणा।" दं.२-२४. एवं जाव वेमाणियाणं। -विया.स.७, उ.३,सु.१०-१२ २५. वेयणा निज्जरासमयसु पुहत्तं चउवीसदंडएसु य परूवणं प. से नूणं ! जे वेयणासमए से निज्जरासमए, जे निज्जरासमए से वेयणासमए? उ. गोयमा ! नो इणठे समठे। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ "जे वेयणासमए न से निज्जरासमए, जे निज्जरासमए न से वेयणासमए?" उ. गोयमा ! जं समयं वेदेति, नो तं समयं निज्जरेंति वेदना और निर्जरा के समयों में पृथक्त्व एवं चौबीस दंडकों में प्ररूपणप्र. भंते ! वास्तव में जो वेदना का समय है, क्या वही निर्जरा का समय है और जो निर्जरा का समय है, वही वेदना का समय है? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्र. भंते ! ऐसा किस कारण से कहते हैं कि "जो वेदना का समय है, वह निर्जरा का समय नहीं है और जो निर्जरा का समय है, वह वेदना का समय नहीं है?" उ. गौतम! जिस समय में वेदते हैं, उस समय में निर्जरा नहीं करते, जिस समय में निर्जरा करते हैं, उस समय में वेदन नहीं करते, अन्य समय में वेदन करते हैं और अन्य समय में ही निर्जरा करते हैं। वेदना का समय दूसरा है और निर्जरा का समय दूसरा है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि जं समयं निज्जरेंति, नो तं समयं वेदेति, अन्नम्मि समए वेदेति, अन्नम्मि समए निज्जरेंति, अन्ने से वेयणासमए, अन्ने से निज्जरासमए। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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