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________________ वेदना अध्ययन (६) अब्भोवगमियाइ दुविहा वेयणाप. कइविहा णं भंते ! वेयणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! दुविहा वेयणा पण्णत्ता,तं जहा १. अब्भोवगभिया य, २. ओवक्कमिया य। प. दं.१.णेरइया णं भंते ! किं अब्भोवगमियं वेयणं वेदेति, ओवक्कमियं वेयणं वेदेति? उ. गोयमा ! णो अब्भोवगमियं वेयणं वेदेति, ओवक्कमियं वेयणं वेदेति। दं.२-१९.एवं जाव चउरिंदिया। दं.२०-२१. पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिया मणूसा य दुविहं पिवेयणं वेदेति। दं. २२-२४. वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा णेरइया। -पण्ण.प.३५सु.२०७२-२०७६ (७) णिदाइ दुविहा वेयणाप. कइविहा णं भंते ! वेयणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! दुविहा वेयणा पण्णत्ता,तं जहा १.णिदा य,२.अणिदाय। प. दं. १. णेरइया णं भंते ! किं णिदाय वेयणं वेदेति, अणिदायं वेयणं वेदेति? उ. गोयमा ! णिदायं पि वेयणं वेति, अणिदाय पि वेयणं १२२१ ) (६) आभ्युपगमिकादि द्विविध वेदना प्र. भंते ! वेदना कितने प्रकार की कही गई है? उ. गौतम ! वेदना दो प्रकार की कही गई है, यथा १. आभ्युपगमिकी (स्वेच्छा पूर्वक अंगीकार की गई।) २. औपक्रमिकी (वेदनीय कर्म जन्य) प्र. दं.१. भंते ! क्या नैरयिक आभ्युपगमिकी वेदना वेदते हैं या औपक्रमिकी वेदना वेदते हैं? उ. गौतम ! वे आभ्युपगमिकी वेदना नहीं वेदते हैं, औपक्रमिकी वेदना वेदते हैं। दं. २-१९. इसी प्रकार चतुरिन्द्रियों पर्यन्त कहना चाहिए। दं.२०-२१.पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक और मनुष्य दोनों प्रकार की वेदना वेदते हैं। दं. २२-२४. वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों के लिए नैरयिकों के समान कहना चाहिए। (७) निदादि द्विविध वेदना प्र. भंते ! वेदना कितने प्रकार की कही गई है? उ. गौतम ! वेदना दो प्रकार की कही गई है, यथा १.निदा (जानते हुए), २. अनिदा (अनजाने) प्र. दं.१.भंते ! क्या नैरयिक निदावेदना वेदते हैं या अनिदावेदना वेदते हैं? उ. गौतम ! वे निदावेदना भी वेदते हैं और अनिदावेदना भी वेदते हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "नैरयिक निदावेदना भी वेदते हैं और अनिदावेदना भी वेदते हैं ?" उ. गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. संज्ञीभूत, २. असंज्ञीभूत। १. उनमें जो संज्ञीभूत हैं वे निदा वेदना को वेदते हैं। २. जो असंज्ञीभूत हैं वे अनिदा वेदना को वेदते हैं। वेदेति। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ "णेरइया णिदायं पि वेयणं वेदेति, अणिदायं पि वेयणं वेदेति?" उ. गोयमा ! णेरइया दुविहा पण्णत्ता,तं जहा १. सण्णिभूया य, २. असण्णिभूया य। १. तत्थ णं जे ते सण्णिभूया ते णं निदायं वेयणं वेदेति, २. तत्थ णं जे ते असण्णिभूया ते णं अणिदायं वेयणं वेदेति। से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"णेरइया निदायं पि वेयणं वेदेति, अणिदायं पि वेयणं वेदेति।" दं.२-११.एवं जाव थणियकुमारा। प. दं. १२. पुढविक्काइयाणं भंते ! किं णिदायं वेयणं वेदेति, अणिदायं वेयणं वेदेति? उ. गोयमा ! णो णिदाय वेयणं वेदेति, अणिदायं वेयणं वेदेति। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ "पुढविक्काइया णो णिदायं वेयणं वेदेति, अणिदायं वेयणं वेदेति?" उ. गोयमा ! पुढविक्काइया सव्वे असण्णी असण्णिभूयं अणिदायं वेयणं वेदेति। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"नैरयिक निदावेदना भी वेदते हैं और अनिदा वेदना भी वेदते हैं।" दं.२-११. इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त कहना चाहिए। प्र. दं.१२.भंते ! क्या पृथ्वीकायिक जीव निदावेदना वेदते हैं या अनिदावेदना वेदते हैं? उ. गौतम ! वे निदावेदना नहीं वेदते, किन्तु अनिदावेदना वेदते हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि__ "पृथ्वीकायिक जीव निदावेदना नहीं वेदते, किन्तु 'अनिदावेदना वेदते हैं ?" उ. गौतम ! सभी पृथ्वीकायिक असंज्ञी होते हैं, इसलिए असज्ञियों में होने वाली अनिदावेदना वेदते हैं,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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